बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Friday, August 7, 2009

उसने कहा था

‘तुम मेरी प्रेरणा हो। तुम्हारी वजह से मेरा जीवन बदल गया। मैंने महसूस किया कि अगर तुम न होतीं तो मेरा क्या होता? –ऐसा उसने कहा था।’ इतना कहकर काकी चुप हो गई।

‘उसने कहा था कि मैं उसके जीवन की अभिलाषा हूं, जीने की आशा हूं। जबसे वह मुझसे मिली उसके अनुसार उसका संसार सुन्दर हो गया। वह मेरी सहेली थी, सबसे अच्छी सखा। मैं उसे कैसे भूल सकती हूं। नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि कुछ लोग बहुत अलग होते हैं। इतने अलग कि उनसे प्रभावित हुए नहीं रहा जा सकता। मुझे भी ऐसे ही समझ लो।’

बूढ़ी काकी पुराने जीवन के पन्नों को उलट रही है। धीरे–धीरे उसके चेहरे पर खुशी की लकीरें फूट रही हैं। वह मुझे अपनी सच्ची सखा से रुबरु करा रही है।

मैंने काकी से कहा,‘आपने वाकई महसूस किया कि मित्र का होना जरुरी है। बिना उसके जीवन अधूरा है। मेरे पास ऐसा कोई नहीं जिसे मैं अपने हृदय का हाल बता सकूं। कभी–कभी लगता है जैसे जीवन नीरस हो गया। कभी–कभी लगता है जैसे मैं पीड़ा को छिपा कर दफन कर दूं, पर ऐसा हो नहीं सकता। मुझे खुद दफन होना होगा।’

बूढ़े लोगों की बातों को मैं ध्यान से समझता हूं। उनसे सीखें बिखरती हैं जिन्हें हमें चुनता रहना चाहिए। इन सबका मतलब होता है जिसके परिणाम आज नहीं, तो कल अवश्य मिलेंगे। भविष्य पर हक कोई जता नहीं सकता। हां, इंतजार किया जा सकता है। इसके लिए मैं तैयार हूं।

काकी आगे कहती है,‘उसने यह भी कहा कि हमारी मित्रता लंबी चलने वाली है। इतनी लंबी कि हमें खुद पता न लगे कि हम इतने घनिष्ठ अब ही हुए हैं, या पहले से थे। जन्मों तक नाता न तोड़ने का वादा हमारे मन को अजीब एहसास से भर गया। शायद कुछ रिश्ते ऐसे ही होते हैं जो व्यक्ति को व्यक्ति से हद तक जोड़ देते हैं। मेरा रिश्ता उसके साथ ऐसा ही था। वह घंटों मेरे साथ बातों में खोयी रहती। समय बीतता जाता, मगर बातें खत्म नहीं होतीं। खून के रिश्तों से अलग होता है दोस्ती का रिश्ता।’

‘वह चली गयी। मैं पीछे छूट गयी, यहां इसी जगह तुमसे बातें करने को। अकेली हूं, पर वह मेरे ख्यालों में उसी तरह बसी है। शायद हम इतने अधिक प्रेम में पड़ जाते हैं कि जिन्हें हम लगाव करते हैं, उन्हें भूल नहीं पाते। जिंदगी कहती है कि कुछ लोग इतनी आसानी से भूले नहीं जाते। यादों में रहकर हम उन्हें याद करते रहते हैं। इसी तरह वे हमसे बातें करते हैं, इसी तरह।’

लोग बूढ़े हो जाते हैं, विचार बूढ़े नहीं होते। यही कारण होता है कि बुढ़ापे में विचारों की उथलपुथल सामान्य नहीं होती। मन में कई बातें होती हैं जिन्हें किसी अपने से कहने की इच्छा होती है। यदि उसे हम पहले से जानते हैं तो सब आसान हो जाता है। और यदि सखा मिल जाए तो शुष्क शाखायें हरी होने में देर नहीं करतीं। ऐसा कुछ शेष नहीं रह जाता जो कहा न जाए। बातों की नदियां बह जाती हैं। दुख–दर्द मानो सिमट गये हैं– ऐसा अहसास होता है। उस समय संसार निर्जन, सूखा रेगिस्तान नहीं रह जाता। सूखे पत्ते फड़फड़ाहट नहीं करते, बल्कि उनकी शुष्कता तरंगित होती दिखती है। सुख की बीणा बजती है। उल्लास छा जाता है। फिर से लौट आते हैं वे पल जो किसी कोने में पड़े रह गये थे, यूं ही। जिन्हें कभी भुला दिया गया था, फिर याद न करने के लिए, वे सब छंट कर सजीव हो जाते हैं। मित्र की मित्रता निराली है। सुख का भागी, दुख का साथी। सब कुछ और बहुत कुछ है वह। मित्र का हाथ थामा है, कभी न छोड़ने के वादे के साथ।

-harminder singh


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