बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

LATEST on VRADHGRAM:

Wednesday, July 22, 2009

जुबीलेंट ने सम्मानित किया 34 वृद्धों को

जुबीलेंट भरतिया फाउंडेशन एवं जुबीलेंट आरगेनोसिस लि. के संयुक्त तत्वाधान में एक सादे समारोह में 34 वरिष्ठ नागरिकों को सम्मानित किया गया। समारोह की अध्यक्षता पूर्व प्रधानाचार्य होराम सिंह ने की। सीडीओ आर.एस. यादव मुख्य अतिथि थे।

संचालन कर रहे जयप्रकाश शर्मा और डा. कृपाल सिंह ने पूरी व्यवस्था को हाथ में लेकर बोलने वालों को थोड़ा-थोड़ा समय दिया। इनमें गन्ना समिति के पूर्व चेयरमेन चौ. शिवराज सिंह ने कहा,‘जुबीलेंट प्रबंधकों से मेरा अनुरोध है कि यदि वे अपनी फैक्टरी के प्रदूषण को नियंत्रित कर लें तो हमारे जैसे बुजुर्गों की सेहत स्वत: ठीक रहेगी।’ उनके इस कथन पर जहां उपस्थित जनसमूह के चेहरों से खुशी झलक उठी। वहीं फैक्टरी के वरिष्ठ अधिकारी विनोद त्रिवेदी हक्के-बक्के रह गये। चौधरी ने आगे कहा कि वायुमंडल और जल शुद्ध रहेगा तो बुजुर्ग भी स्वस्थ रहेंगे।

कई और बुर्जुगों ने भी विचार व्यक्त किये। उन्होंने इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में जारी रखने का सुझाव दिया और जुबीलेंट का आभार व्यक्त किया।

सेंट मैरी कान्वेंट की प्रधानाचार्य सिस्टर जेन ने बुर्जुगों से आशीर्वाद मांगा तथा उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना की। उन्होंने सुझाव दिया कि इस तरह के कार्यक्रमों में नवयुवकों को भी बुलाया जाना चाहिए ताकि वृद्धजनों से कुछ सीख सकें और दोनों के बीच प्रेम और सदभाव का वातावरण उत्पन्न हो।

मुख्य अतिथि आर0एस. यादव ने जहां वृद्धों को नवयुवकों को ऊर्जा प्रदान करने का स्रोत बताया वहीं उन्होंने वृद्धों से युवकों के काम में दखल न देने का उपदेश भी दिया। उन्होंने मौजूद वरिष्ठ नागरिकों को नसीहत दी कि यदि वे अपना अंतिम समय सम्मान के साथ जीना चाहतें हैं तो युवकों के काम में कोई दखल न दें। आप यह न समझें कि वे बिल्कुल मूर्ख हैं तथा आपके बिना उनका काम नहीं चल सकता। आर.एस. यादव ने जोर देकर कहा कि वे यह भी न सोचें कि उनकी संतान उनकी मोहताज है। युवा उनसे अधिक जानते हैं। उन्होंने विस्तार से उदाहरण दिया कि एक चार साल का बच्चा भी उनसे ज्यादा ज्ञान रखता है। वह एक वीडीओ गेम खेल सकता है जिसे आप बिल्कुल भी नहीं जानते। मुख्य विकास अधिकारी ने एक और उदाहरण दिया कि एक बार किसी किसी बात पर उनके पिता भी उनके छोटे भाई को किसी बात पर डांटने लगे तो उन्हें बर्दाश्त नहीं हुई और पिताजी पर बिगड़ गये। सीडीओ के अनुसार किसी भी बुजुर्ग को यह अधिकार नहीं कि वह अपने बेटे की किसी गलती पर उसे डांटे। बल्कि वृद्धों को तो छोटों को रोकने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। सीडीओ के कथन को सभी बुजुर्ग ध्यान से उत्सुकता के साथ चुपचाप सुनते रहे।

सीडीओ स्वयं को कहीं जल्दी पहुंचने को लेकर केवल पांच मिनट ही बोलने को कहकर माइक तक आये थे, लेकिन शायद वरिष्ठ जनों को उनकी औकात बताने की कसम खाकर ही यहां आये थे। वे बोलते गये। उन्होंने वृद्धों को सूखे पत्ते कहकर उन्हें बेकार की वस्तु सिद्ध किया और कहा,‘सूखे पत्ते शोर बहुत करते हैं।’ उनका संकेत वृद्धों की ओर था। उन्होंने एक महिला वक्ता को संकेत करते हुए कहा कि उनकी भांति वे भी लिखने का शौक रखते हैं। उन्होंने 'सूखे पत्ते' शीर्षक से एक कहानी भी लिखी थी। श्री यादव ने कहानी का सारांश बताया जिसमें अपने साथ चल रही एक महिला ने अपने ससुर को इंगित करके कहा था कि सूखे पत्ते शोर बहुत करते हैं। उस समय वे सूखे पत्तों पर चल रहे थे।

वास्तव में सीडीओ वृद्धों का जितना उपहास कर सकते थे उन्होंने किया। हालांकि कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा उनके करकमलों से 34 वृद्धों को शाल और अभिनंदन पत्र दिलवाये। श्री यादव ने वृद्धों के चरण स्पर्श भी किये। वे उनसे ऊर्जा मांगने में भी नहीं शर्माये।

वृद्ध अभिनंदन समारोह की अध्यक्षता मा. होराम सिंह, मुख्य अतिथि आरएस यादव तथा संचालन जयप्रकाश शर्मा और मास्टर कृपाल सिंह ने किया।

मुंशी भोला सिंह, चौ0 महेन्द्र सिंह मलिक, वैद डूंमर वन गोस्वामी समेत 34 वयोवृद्धों का अभिनंदन कर उन्हें एक-एक शाल और अभिनंदन-पत्र मिष्ठान सहित प्रदान किया गया।

-साभार गजरौला टाइम्स
photo by mohit

1 comment:

Blog Widget by LinkWithin
coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com