जब मैं घर लौटा तो रात के आठ बजे थे। मैं ठिठुरता हुआ पहुंचा था। मोहित प्रोजेक्ट तैयार कर रहा था। उसी सिलसिले में उसे मेरी मदद की जरुरत थी। ये आजकल के बच्चे भी न, मेहनत उतनी करना चाहते नहीं, बातें बड़ी-बड़ी करते हैं। कुछ फोटो मैंने उसे सीडी में करवाये ताकि बाद में घर जाकर उनका प्रिंट आउट निकाला जा सके। हमें काफी देर हो चुकी थी। करीब एक घंटा होने जा रहा था। वह निश्चिंत था, मैं नहीं। जिस रुम में हम बैठे थे वहां का तापमान सामान्य था। हमारे अलावा भी वहां कई लोग थे जो काफी बिजी लग रहे थे, बिल्कुल हमारी तरह। गूगल पर सर्च मैं कर रहा था, बता मोहित रहा था।
हम जैसे ही वहां से बाहर निकले, मैंने अपने हाथों को जेबों में सुरक्षित किया। हमारे आगे एक व्यक्ति ऐसे जा रहा था, जैसे सैर पर हो। पता नहीं कुछ लोगों को ठंड में भी ठंड क्यों नहीं लगती। उस व्यक्ति के बराबर में जो महिला थी, उसने शाल ओढ़ रखा था। दोनों पति-पत्नि मालूम पड़ते थे। मैंने अपनी चाल तेज+ की, जबकि मोहित ऐसा लगता था जैसे मोबाइल अंकल की बातें सुनने में इंटीरेस्टिड हो। मैंने कहा,‘घर नहीं चलना क्या?’ वह हल्का मुस्कराया, फिर कदमों को गति दी।
कंधों को लगभग सिकोड़ चुका मैं चाउमीन वाले ठेले के पास से गुजरा। उसपर कोई ग्राहक नहीं था। उसकी नजरें आने-जाने वालों पर टिकी थीं। सरसरी निगाह से मैंने उसे देखा, उसमें थोड़ी आस जगी कि शायद मैं कुछ खरीदूंगा लेकिन मैं आगे बढ़ गया। मुझे पता है कि वह रोज शाम को उसी स्थान पर खड़ा मिलेगा क्योंकि यह सब वह कमाने के लिए करता है ताकि उसका परिवार पल सके। शायद उसके अपने बच्चों ने कभी चाउमीन का स्वाद ढंग से चखा हो। उसके ठेले से कुछ दूरी पर जगमगाहट इतनी है कि वहां हर किसी की नजर गुजरते हुए जरुर फिसल जाती है। वहां चेहरों को स्पष्ट पहचाना जा सकता है, जबकि उसका चेहरा उतना साफ नहीं।
‘गुड नाइट’ कहकर मोहित घर चला गया। मैंने कदमों को और गति दी। ठंड से मेरी टांगें अकड़ सी गयी थीं। अंधेरे में अंदाज लगाकर मैं आगे बढ़ता रहा। सड़क पर सवारियां बीच-बीच आतीं तो रास्ता नजर आ जाता। मैंने एक मोड़ पर आकर यह सोचा कि मैंने खुद को इतना ढक रखा है, फिर भी कांप रहा हूं। उन लोगों का क्या जिनके तन पर कपड़े नहीं।
-harminder singh
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
|
हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
|
|
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
|
|
|
अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
उन लोगों का क्या जिनके तन पर कपडे नहीं हैं ....उन लोगों का भी क्या जिनके सर पर छत नहीं ...जिन्हें दो जून खाना नसीब नहीं ....खाना खाने के बाद रजाई में दुबके टीवी पर मौसम की रिपोर्ट देखते कई बार यह खयाल सताता है ....!!
ReplyDelete