बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

LATEST on VRADHGRAM:

Wednesday, May 5, 2010

सूनापन दुनिया है

[jail+diary.jpg]


संसार को बनाने की कोशिश की जाती रही, लेकिन हर बार इंसान हार गया क्योंकि जीत उतनी आसान नहीं। मैंने खुद को प्रभावित होने से बचाने की तमाम कोशिशें की हैं। ऐसा हो नहीं सका। मैं इंसानों के बीच एक इंसान ही रहा। बदलाव को पकड़ता हुआ चल रहा हूं। यह एक जबरदस्ती सी लगती है, जैसे कुछ थोपा जा रहा हो। पल्लू पकड़ने की आदत नहीं, फिर भी चले जा रहा हूं। आदतें हमें ऐसा करने पर मजबूर करती हैं।

व्यक्ति हमेशा इतना तय करता है कि वह एक दिन मंजिल को पा लेगा जिसकी वह कामना करता है। मेरी मंजिल कोई नहीं। मैं बिना हौंसले के चलने वाला सवार हूं। मंजिल को शायद मुझे तलाशने की जरुरत न पड़े।

यह काफी निराशापूर्ण समय है। ऐसे में बहुत कुछ सोचने की फुर्सत नहीं है। अपने बारे में बस इतना मालूम हो जाए कि मेरा भविष्य मुझे मेरे अपनों से कब मिलायेगा या ऐसे ही कोरा रह जाएगा। हिम्मत को जुटाने के लिए उपाय करने की जरुरत महसूस नहीं होती। मेरे अंदर का इंसान शांत और सूना-सूना पड़ा है। उसे यह मालूम है कि सूनापन ही उसकी दुनिया है। यह मन के लगभग मर जाने के बराबर है। हां, मेरा मन कांप कर ठंडा पड़ चुका है। उसमें इतना साहस नहीं कि वह सांस ले सके, पर वह सांस लेता नहीं और मेरा साथ जैसा मैं जीता हूं, वैसा उसका हाल है। उसका इरादा और ख्वाहिशें मुझसे मिलकर चलते हैं।

सादाब मेरी तरफ बड़े गौर से देखता है। मुझे लगता है कि वह मुझ पर तरस खा रहा है या पता नहीं बात क्या है? उसका चेहरा गंभीर हो जाता है। मैं उससे नजरें मिला नहीं सकता, यह भी मैं नहीं जानता। वह एक अलग किस्म का इंसान लगा मुझे, बिल्कुल अलग।

हम उन्हें अलग मान लेते हैं जो कुछ जुदा अंदाज में होते हैं, सादाब वाकई अनोखा है। उसके चेहरे के भावों को हालांकि मैं पढ़ नहीं पाया और पढ़ भी न पाउं। वह सूने चेहरे से बहुत कुछ कह जाता है। हां, वह चुप जरुर है, लेकिन उसका चेहरा इतना अधिक कह जाता है कि मैं हैरान हो जाता हूं। वह हैरानी इस तरह की होती है कि मैं कई बार देर रात तक उसके विषय में सोचता रहा। मैंने सोचा कि वह ऐसा क्यों है? कम बोलने वाला व्यक्ति गहराई समेटे होता है। सादाब उतना बोलता नहीं क्योंकि प्रवृत्ति को बदला नहीं जा सकता और वह ऐसा चाहता भी नहीं। खुश है वह इसी तरह दुख में। यह भी पता नहीं कि कष्टों पर किस तरह की प्रसन्नता का अहसास होता है। लेकिन सादाब कहता है कि वह इतने दुखों के बाद दुखी नहीं। यह शायद झूठ भी हो, या वह मुझे दुखी नहीं देखना चाहता। मेरे दर्द को अपना समझता है। उसकी निराशा इसे लेकर भी है कि वह पशोपेश में पड़ गया है। अपनी अम्मी और बहनों से वह कई दिनों से नहीं मिला है। पहले वह दूसरे बैरक में था। वह बताता है कि वे उससे मिलने समय-समय पर आते रहते हैं।


to be contd........

-harminder singh

No comments:

Post a Comment

Blog Widget by LinkWithin
coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com