बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Thursday, September 4, 2008

बुढ़ापे का मर्म


अभिवादन शीलस्य नित्यम् वृद्धोप सेवनम् च।

चत्वारि तस्य वर्धंन्ते आयु विद्या यशोबलम्।।

अर्थात् अभिवादन के योग्य और वृद्धों की सेवा करने से उसकी आयु, विद्या, यश और बल, चार चीजें बढ़ती हैं।

हमारे शास्त्रों का उपरोक्त वचन सौ फीसदी सत्य है। जो लोग अथवा समाज इसका पालन करते हैं, वे सभी प्रगति की ओर अग्रसर होते हैं। प्राचीन काल में ऐसे अधिकांश लोग थे जो इसका पालन करते थे। यही कारण था कि हमारा देश हमेशा से ऋषि-मुनियों और साधु-संतों का रहा है। अपने से बड़े और प्रतिष्ठित पदों पर विराजमान लोगों का सम्मान करना लोग अपना कर्तव्य मानते थे।

जब हम आधुनिक भौतिकवादी युग के लोगों की प्राचीन मानव से तुलना करते हैं तो पता चलता है कि उपरोक्त संस्कारों से हम कटते जा रहे हैं। यही कारण है कि हमारे पारिवारिक रि’ते भी आये दिन तार-तार होते नजर आते हैं। संयुक्त परिवार टूट कर बिखर रहे हैं। लोग सम्मान चाहने का प्रयास तो करते हैं लेकिन वे दूसरों का सम्मान नहीं करना चाहते।

जिन लोगों ने परिवार की रक्षा करते, उन्हें अच्छा भोजन और शिक्षा दिलाने अपनी बहुमूल्य युवावस्था को खर्च कर दिया। उनमें से अनेकों वृद्ध अपनी दुर्दशा को देखकर मर्माहत हैं। अपनी सारी संपत्ति बेटे और अन्य लोगों को देने वाले वृद्धों का और भी बुरा हाल है। कई अपनों की उपेक्षा के शिकार हैं। वे मरना चाहते हैं लेकिन ऐसा भी नहीं हो पाता। बहुत कम वृद्ध ऐसे हैं जिनकी संतानें उनके अंतिम दिनों में उन्हें किसी परेशानी का अहसास नहीं होने देते। घर और बाहर उपेक्षित होने वालों की भी कमी नहीं।

अपने सुख में व्यवधान न पड़े, ऐसे युवक अपने बुजुर्गों को अलग-थलग कर तन्हाई में छोड़ देते हैं। उन्हें उनके सुख-दुख से कोई सरोकार नहीं। वे यह नहीं सोचते कि उनके सिर पर भी बुढ़ापा प्रतीक्षा में है कि जल्दी से जल्दी उन्हें भी वह अपनी गिरफ्त में ले ले।

फिल्मों में भी वृद्ध उपेक्षित हैं। नायक कहता है-‘बुढ़ापे तेरा मुंह काला-जवानी तेरा बोलबाला।’ और भी-‘ना बाबा ना बाबा पिछवाड़े बुड्ढा खांसता’ या ‘क्या करुं राम, मुझे बुड्ढा मिल गया।’

जिधर भी देखो वहीं इस बुढ़ापे का उपहास हो रहा है। ‘वृद्धोप सेवनम्’ की जगह उन्हें परेशान किया जा रहा है और वह भी उनके द्वारा जिन्हें वृद्धों ने उठना, बैठना और चलना सिखाया है। उनके उज्जवल भविष्य के लिये वह सब किया है जितना वे करने में समर्थ भी न थे।

-harminder singh


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बुढ़ापे का इश्क
बुढ़ापा ये नहीं कहता कि जिंदगी का सफरनामा यहीं तक। बूढ़ों को भला कोई रोक सकता इश्क करने से। अरे, इश्क कीजिये, फिर समझिये कि जिंदगी क्या चीज है। लेकिन अब तो जिंदगी उतनी बची नहीं, लेकिन जितनी बची है उतनी में बहुत कुछ सोचा जा सकता है


आखिरी पलों की कहानी
दुनिया को करीब से देखा है इन्होंने। दुनिया बोलती आंखों का सितारा है। मोह भी यहीं है और माया भी। बच्चे बड़े हो रहे हैं और नौजवान बूढ़े। यह तो होता ही आया है कि बीज उगता है तो दूसरा पेड़ बन कर गिर भी जाता है। उम्र का सारा खेल यह है। इसका कोई शातिर खिलाड़ी भी तो नहीं


अभी तक कहां जीता रहा?
उलझे हुये बोलों को सुनने की कोई गुंजाइश नहीं है। मैं अपने को स्थिति के साम्य करने की कोशिश कर रहा हूं। पल दो पल की मुस्कराहटों का मुझसे क्या लेना देना

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है....जानकारी भी है .....क्रम जारी रखें

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कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
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hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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