बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

LATEST on VRADHGRAM:

Wednesday, August 27, 2008

महान शिक्षाविद श्योराज सिंह नहीं रहे



प्रमुख शिक्षाविद सरदार श्योराज सिंह का ह्रदय गति रूक जाने से निधन हो गया। वे 65 वर्ष के थे। उनकी मृत्यू के समाचार से पूरे प्रदेश के शिक्षा जगत में शोक छा गया। इस समाचार से कई कालेजों में छुटटी कर दी गयी और शोक सभा कर उन्हें श्रृद्धा सुमन अर्पित किये।

सरदार श्योराज सिंह जे. पी. नगर जिले के ग्राम नंगलिया बहादुरपुर में एक साधारण कृषक परिवार में पैदा हुए। उन्होंने संसाधनों के आभाव में उच्च शिक्षा प्राप्त की। क्षेत्र के ग्रामाचलों में शिक्षा का उचित प्रबंध न होने के कारण वे क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था के प्रति हमेशा चिन्तित रहते थे। इसी कारण इन्होंने मूढा खेड़ा गांव में एक स्कूल की स्थापना की। अल्प समय में ही सरदार जी के प्रयास से यह संस्था जनता इंण्टर कालेज के नाम से विख्यात हुई। आस-पास के गावों के ऐसे बच्चों को यहां विशेष लाभ पहुंचा जो मंडी धनौरा, अमरोहा या गजरौला आदि स्थानों पर पढने नहीं जा सकते थे। कालेज के संस्थापक और प्रधानाचार्य दोनों उत्तरदायित्वों को निभाते रहे। यह कालेज उनके कार्यकाल में अनुशासन तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ कालेजों में गिना जाने लगा। यहां प्रवेश लेने वालों की भीड़ लग गयी। दूर दराज के छात्रों के लिये उन्होंने छात्रावास की व्यवस्था की जो सफलता के साथ चल रही है।

सरदार श्योराज सिंह की योग्यता को देखते हुए शिक्षा विभाग ने उन्हे माध्यमिक शिक्षक सेवा चयन आयोग का सदस्य बनाया गया। वहां भी वे सबसे कर्मठ और इमानदार शिक्षाविद के रूप में सेवायें देते रहे। उस समय जे. पी. नगर के साथ ही मुरादाबाद और रामपुर जनपदों के शिक्षा मंदिरों के हित में जो किया उसका शिक्षा जगत हमेशा ऋणी रहेगा। सरदार श्योराज सिंह ने विधिवत तीन वर्ष पूर्व प्रधानाचार्य के पद से सेवनिवृति प्राप्त की लेकिन वे एक दिन भी शिक्षा जगत की निस्वार्थ सेवाओं से विरत नहीं रहे। वे केवल मूंढा खेड़ा के कालेज की सेवा में ही नहीं बल्कि कई अन्य शिक्षण संस्थाओं को भी शिक्षा निर्देश देते रहे। अनेक शिक्षक और कालेज उनसे सलाह लेने आते थे। ऐसे लोगों का उन्होंने उचित मार्गर्शन कर शिक्षा जगत की भरपूर और निस्वार्थ सेवा की।

ग्राम कौराला के एक नव युवक स जगजीत सिंह की प्रार्थना पर उन्होंने एक इंटर कालेज और कन्या डिग्री कालेज के निमार्ण संचालक और शिक्षा व्यवस्था में अपनी योग्यता और प्रतिभा का भरपूर योगदान किया। ये दोनों संस्थायें आज क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं में से है। यह सब स. श्योराज सिंह के दिशा निर्देश और परिश्रम का फल है।

विगत दिनों जुबीलेंट आरगेनोसिस लि0 नामक सबसे बड़ी औद्योगिक ईकाई की और से स. श्योराज सिंह को शिक्षा जगत की अभूतपूर्व की सेवाओं के लिये सम्मानित किया गया था। वे शिक्षा के क्षेत्र के अलावा कई धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहे। सरदार जी ने कभी भी अपनी सेवाओं के प्रचार प्रसार का प्रयास नहीं किया जैसा कि संप्रति हर क्षेत्र में हो रहा है। वे नाम के लिये नहीं बल्कि काम के लिये काम करते रहे। और यही उनकी महानता का कारण है। 24 अगस्त को काल के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे हमेशा के लिये छीन लिया। उस समय वे अपने पुत्र के पास गुड़गाव गये थे। 25 अगस्त को ब्रजघाट गंगा तट पर उनका अन्तिम संस्कार कर दिया गया।

संबंधित लिंक >>>
अनुशासन के तरफदार

-harminder singh

1 comment:

Blog Widget by LinkWithin
coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com