बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Monday, May 12, 2008

बुढ़ापे का सहारा

बूढ़े हंसते नहीं हैं। हम यह कहते हैं। बूढ़े रोते भी हैं और हंसते भी हैं, वे कुछ पल के सुख को खुलकर जीने की तमन्ना रखते हैं। उनका व्यवहार अजीब लगता है उन्हें जो अभी बूढ़े नहीं हुये।

परिवारों में बूढ़ों की दुदर्शा किसी से छिपी नहीं है। उन्हें किस तरह और क्यों सताया जाता है, दुख पहुंचाया जाता है, और किस तरह वे जीते हैं। यह चर्चा का विषय है। उनके जीवन में रस समाप्त हो जाता है और वे चुपचाप रहते हैं। नीरस हैं, दुखी हैं, सताये हैं, फिर भी एक आस के साथ जीते हैं बूढ़े। एक आस जीवन की और उस दिन की जब वे यहां नहीं होंगे। कहीं भी होंगे लेकिन वे होंगे।


गरीबदास का दर्द

गुरीबदास हंसते नहीं हैं, रोते अधिक हैं। वे उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं।

उनका बेटा उनके साथ अभद्र व्यवहार करता है

वे रोते हुये कहते हैं,‘‘इससे तो बेऔलाद ही भला था।’’




आइये एक ऐसे वृद्ध से मिलते हैं जिन्हें आज तक सबने सम्मान दिया। उन्होंने स्वीकार किया। उनके इकलौते पुत्र ने उन्हें ऐसा समय दिखाया कि वे आज भी रोते हैं और कहते हैं,‘‘इससे तो बेऔलाद भला था।’’

फाजलपुर के गरीब दास को उनके आसपास पास के लोग भली भांति जानते हैं। वे एक मामूली इंसान हैं, लेकिन जितने लोगों के बीच वे रहते हैं उनके बीच उनका सम्मान है। सम्मान इतना कि वे लोग उन्हें बहुत बड़ा मानते हैं। उनके बेटे ने उनके लिये कुछ नहीं किया। वे आंखों में आंसू लिये रहते हैं।

हाल के कुछ दिनों में उनके साथ ऐसा हुआ है कि वे अब अपने आप से लड़ रहे हैं, अपने बेटे से कुछ कह नहीं सकते। इतना दुख है कि किसी से बताते नहीं और पहले ही आंखें गीली हो जाती हैं। अपनी संगिनी और पोते के साथ कुछ पल गुजार कर धन्य हो जाते हैं। उनकी मुस्कान मंद पड़ गयी है।

नाम के गरीबदास हैं और पुत्र की तरफ से भी गरीब। पिछले दिनों उनके बेटे ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें बुरा-भला कहा। यह सब अखबार में भी छपा।

उनका बेटा शराबी है और नशे के लिये आयेदिन उनसे झगड़ा करता रहता है। यह दस्तूर पहले से चला आ रहा है। उनकी पत्नि उन्हीं की तरह कमजोर हो चली है। बहु भी पिछले साल गुजर गयी। आग से जली थी या जलायी गयी थी वह, पता नहीं चल सका। उसकी मौत संदेहास्पद थी। बेटे ने जमीन बेच दी। एक टेंट हाउस गरीबदास जी ने चला रखा है, उसपर भी यदि बेटा बैठता है तो वह दिनभर की कमाई को अपने नशे में उड़ा देता है।

औलाद ही है जो बुढ़ापे के लिये लाठी होती है और यदि चाहे तो बुढ़ापा तबाह कर देती है। गुरीबदास हंसते नहीं हैं, रोते अधिक हैं। वे उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं।

बुढ़ापे में मां-बाप को सहारा ही तो चाहिये। एक ऐसा सहारा जो उन्हें थोड़ा आराम दे सके। ये आराम है तो अल्प समय का लेकिन औलाद का सुख कुछ और ही होता है।

हरमिन्दर सिंह द्वारा

3 comments:

  1. हरमिन्दर भाई, पता नही यही प्यार हे बुढे मां वाप बेटो ओर बहुओ से बेइज्जत हो कर भी, उन्हे नही छोडते,फ़िर भी उन्ही के गम मे घुटते हे,बच्चो पर थोडी सी भी मुसिबत आती हे तो तडप उठाते हे,मे कई बार सोचता हू ऎसा कयो लेकिन इस क्यो का जबाब..

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  2. पढ़ कर दुःख हुआ. अभागे हैं वह जो माँ-बाप की सेवा नहीं कर पाते. कारण चाहे कोई भी हो, माँ-बाप का अपमान ईश्वर का अपमान है. इस की सजा मिलेगी, कोई छूट नहीं है. ईश्वर से यही प्रार्थना है की गरीबदास जी का बेटा समझ जाए और माँ-बाप की सेवा करके अपना पाप कुछ कम करले.

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  3. कितने घरो को इसी कारण बरबाद होते देखा है ,यही सब सोचकर आजकल सोचता हूँ की एक पॉलिसी केवल बुदापे के लिए अलग से रख लूँ.

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>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

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...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

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कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

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बुढ़ापे के आंसू

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बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

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कुछ समय का अनुभव

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क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

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करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

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दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
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कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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