बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

LATEST on VRADHGRAM:

Monday, June 8, 2009

महिलाएं नहीं बदलेंगी

रेलगाड़ी के डिब्बे में कई महिलाएं सफर कर रही थीं। मेरे समीप एक अधेड़ महिला बैठी थी। उसकी दो बेटियां जिनकी उम्र 10 से 15 के बीच होगी अपनी मां से जिद कर रही थीं कि उन्हें जादुई अंगूठी चाहिए। मां ने पहले मना किया फिर दस रुपये के दो नोट निकाल कर दो अंगूठियां ले लीं। कुछ समय बाद उसने खुद भी एक अंगूठी खरीद अंगुली में पहन ली। उसके सामने दो बुजुर्ग महिलाएं बैठी थीं। उन्होंने भी देखादेखी अंगूठियां खरीद लीं। अंगूठी बेचने वाला व्यक्ति यह कह रहा था कि कोई ऐसी-वैसी अंगूठी नहीं है। काले घोड़े की नाल से बनी है। इससे गृह क्लेश, दुख और परेशानी कुछ समय में ही दूर हो जायेगी।

फिर खिड़की के बराबर में बैठी दो महिलाएं ने आपस में विचार-विमर्श किया। मुझे हैरानी हुई कि उन्होंने भी अपने लिए अंगूठियां लीं। वे पढ़ी-लिखी लग रही थीं।

अंधविश्वास को सबसे अधिक महिलाएं मानती हैं। यही कारण है कि वे अपने परिवार की शांति के लिए विभिन्न तरह के क्रियाकलापों में व्यस्त रहती हैं। जहां भी उन्हें लगता है कि यहां से कुछ उम्मीद है, वे वहीं मत्था टेक आयेंगी या प्रसाद चढ़ायेंगी।

यह सच है कि महिलाएं आसानी से भावनाओं में बह जाती हैं। उनकी मानसिकता है कि वे देखा-देखी बहुत कुछ कर जाती हैं। उनमें दूसरी महिला की बराबरी करने की आदत होती है या उससे आगे निकलने की अजीब होड़। अधिकतर महिलायें दूसरी महिला से इर्ष्या का भाव रखती हैं- ऐसा कई शोध खुलासा कर चुके हैं। महिलाओं को सबसे अधिक ठगा जाता है। इसका मतलब है कि वे कई मायनों में भोली होती हैं।

-harminder singh

8 comments:

  1. जिन के जीवन में पग पग पर बुरा हो रहा हो, वहाँ यह जानते हुए भी कि इस से कुछ नहीं होगा एक अंधविश्वास पर विश्वास कर कुछ देर के लिए सुखद अहसास कर लेना भी उपलब्धि बन जाता है। इसी का लाभ लोग उठा रहे हैं। इस काम में पुरुष भी कम नहीं। अशोक जड़ेजा भी तो यहीं पैदा होते हैं।

    ReplyDelete
  2. इन्ही महिलाओं और बच्चों पर ही तो सारा व्यापर चल रहा है..इसी लिए विज्ञापन भी महिलाओं और बच्चों पर ही केन्द्रित होते है...

    ReplyDelete
  3. kabhie kabhie lagtaa hean ki har koi mahila ko badlana chahtaa haen lekin jaese hi koi mahila badal jaatee haen wo "asaamajik" tatv ban jaatee haen

    ReplyDelete
  4. Bhaukta hi kabhi-kabhi kamjori ban jati hai. Accha pryas hai aapka.

    ReplyDelete
  5. काफी हद तक सही लिखा है।लेकिन इस से एक बात तो साबित होती है कि महिलाओ को परिवारिक सुख शांती की कितनी चिन्ता रहती है।

    ReplyDelete
  6. मुझे तो लगता है स्त्री पुरुष दोनों मूर्ख बनते रहते हैं,परन्तु अलग अलग के प्रचार, बिक्री आदि के। बेचने वाले सबकी कमजोरियाँ समझते हैं और भुनाते हैं।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  7. तू मुरख तो मैं ज्ञानी, यह बात तो सारी दुनिया ने है मानी।
    कहा जाता है कि जब तक इस दुनिया में बेवकूफ जिंदा है अक्लमंद कभी भूखे नहीं मर सकते। अंधविश्वास के कारण ही तो करोड़ों का कारोबार इस देश में चल रहा है। अब इसके शिकार महिला हो या पुरुष क्या फर्क पड़ता है।

    ReplyDelete

Blog Widget by LinkWithin
coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com