Monday, October 19, 2009
जिंदगी कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है
मैं ‘बेचारा’ कहलाना नहीं चाहता। इस शब्द से मुझे नफरत है। लोग कहते हैं कि मजबूर की मदद करो। मुझे लगता है कोई मजबूर नहीं। सब हालातों के हाथ कठपुथली हैं। इस हिसाब से सारा संसार किसी न किसी मौके बेचारा है। फिर मैं भी एक बेचारे से कम नहीं, लेकिन मैं खुद को बेचारा नहीं कहना चाहता। मैं हौंसले से जीवन की सच्चाई का मुकाबला करना चाहता हूं। पर यह कठिन लगता है। मैं अपनों से बहुत दूर हो कर भी उनके पास हूं, पर उनकी याद के सहारे धुंधले पड़ गए हैं। मेरा संसार रुका हुआ सा हो गया है, उधड़ा हुआ सा हो गया है। एक अजीब सी कशमकश फिर से उभरी है। शायद उभरती रहेगी टीस बनकर।
सहारे की तलाश जीवन भर रहती है। इंसान सहारा चाहता है। बिना सहारे के शायद जीवन अधूरा है। अपनों का सहारा मिलता है तो बहुत बेहतर होता है। मेरे पास कोई नहीं जो संभाल सके। जब हम निराश होते हैं, दुखी होते हैं तब हमें ऐसे व्यक्ति की तलाश रहती है जो हमें हौंसला दे सके और हमारे दर्द को समझ सके। मुझे कई लोग ऐसे मिले जो मेरे काफी करीब आये, लेकिन वे मुझसे दूर चले गये। उनकी कहानी भी मेरी ही तरह थी। जब कभी अधिक निराश होता हूं तो इस गीत को गुनगुनाता हूं-
‘जिंदगी कुछ भी नहीं,
तेरी मेरी कहानी है।’
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
सही बात है मगर आशा छोड देना भी सही नheeMह है । दो शेर
ReplyDeleteहम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते्रहे
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबी हमे यूँ रुलाते रहे
राह कितनी कठिन क्यों न हो हम चले
होंठ अपने सदा मुस्कुराते रहे
शुभकामनायें
haramindar jee aapkaa ye prayaas prasansaniya hai
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट !!
ReplyDeleteजिंदगी ...सबकी यही कहानी है ....!!
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