कहानी की शुरुआत होती है। .......और जल्द ही वह सिमट भी जाती है। कुछ लोग मिल जाते हैं और कम समय में हमारे लिए ‘स्पेशल’ भी हो जाते हैं। फिर कहानी मोड़ लेती है क्योंकि कुछ नये लोग उसमें दाखिल हो जाते हैं। फिर कहा जाता है-‘‘यह कहानी ही तो थी। ऐसी अनोखी, जहां से शुरु, वहीं खत्म हो गयी।’’
अब उम्मीद है कि कुछ नया होगा। नये पात्रों का उदय होगा। पुरानी बातें शायद फिर न दोहराई जाएं क्योंकि आज उनका महत्व नहीं रहेगा। उन खुश्नुमा पलों की शायद याद आये, कभी जब दो अनजान लोग मिलकर हंसे थे एक साथ। आज दरार में फासला इतना बढ़ चुका कि नजरें चुराने का मन करता है।
कुछ कुंठाएं पता नहीं कैसे विकसित हो गयीं। मन को पक्का करने की कोशिशें जारी हैं। ......लेकिन मन कहां मानने वाला है।.......फिर से भावनाओं में बहना चाहता है। उस ‘स्पेशल’ इंसान से ढेर सारी बातें करना चाहता है। मगर वह रुक जाता है यही सोचकर कि कहानी को यहीं विराम दिया जाए।
अब नये सवेरे की तलाश है जब फिर से किसी के लिए कोई ‘स्पेशल’ होगा। पुरानी गलतियों से सबक जो हासिल हुआ है उसका पालन किया जायेगा। .......लेकिन जो एक बार ‘अहम’ हो गया, इतना आसान नहीं उससे दूर जाना। फिर क्या इंसान पुरानी कहानी को संवारने की कोशिश करेगा। शायद हां.......पर वह एक बार सोचेगा कि काफी देर हो चुकी। उन पलों को सिर्फ यादें ताजा रखेंगी।
काश! ऐसा न होता। हमसे कोई न छूटता। लेकिन परिस्थितियां हमारे बस में नहीं होतीं। टूटकर बहुत कुछ बिखर गया, अब एहसास होता है। टुकड़े बिखरे जरुर हैं लेकिन उस ‘स्पेशल’ इंसान का चेहरा उनमें अभी भी वैसा ही चमक रहा है, जगमगाता हुआ, हंसता हुआ।
कल कुछ था, आज कुछ। सच मानो, वक्त ही ऐसा था। दूर हो गया कोई किसी से, बिना बोले, बिना कहे, फिर से न मिलने के वादे के साथ।
उम्मीद है वह खुश रहे हमेशा। इसी तरह चहकता रहे सदा।
दुनिया के किसी कोने में कोई शख्स ऐसा भी है जो मुस्करा कर उस ‘स्पेशल’ इंसान से कहेगा-‘‘मैं खुश हूं, क्योंकि तुम खुश हो।’’
-harminder singh
Monday, June 7, 2010
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
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