सवेरे के बाद शाम हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
आराम के बाद थकान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
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शरीर कह रहा अब बस,
बहुत हुआ खेल,
जवानी के सुखों का भाग,
बुढ़ापा रहा झेल,
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बुझा चेहरा मंद मुस्कान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
सुनहरी कभी, जिंदगी वीरान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
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मैं उदास हूं, सिर चौखट से लगाए,
उजाला खो गया,
चादर ओढ़ जर्जरता की,
इंसान सो गया,
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कभी बहती थी धारा, आज सूनसान हुई,
यूं ही चलते-चलते,
देख बुढ़ापा, जवानी हैरान हुई,
यूं ही चलते-चलते।
-harminder singh
Sunday, September 13, 2009
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
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