बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Monday, August 17, 2009

बारिश को करीब से देखा मैंने

बारिश को करीब से देखा मैंने,
बूंदों को इठलाते देखा मैंने,

इतरा रहा था कोई,
बूंदों को समेट कर,

प्यासी धरती को तृप्त होते देखा मैंने,
बारिश को करीब से देखा मैंने।

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बुलबुलों को फुदकते देखा मैंने,
गीली होती हरियाली को देखा मैंने,

फड़फड़ा रहा था कोई,
भीगता हुआ मचल कर,

चोंच से अमृत को भरते देखा मैंने,
बारिश को करीब से देखा मैंने।

-harminder singh

3 comments:

  1. चोंच से अमृत को भरते देखा मैंने,
    बारिश को करीब से देखा मैंने।
    soch gazab ki rakhate hai aap.......aise hi likhate rahe.........atisundar

    ReplyDelete
  2. nishchay hi barish ki bundon ko karib se dekhna sukhad hota hai aur wo tab jab barish aisi rachna ki ho jaha chonch me amrit bhar rah ho koi

    ReplyDelete
  3. Thanks for publishing this amazing article. I really big fan of this post thanks a lot. Recently i have learned about News in Hindi CG which gives a lot of information to us.

    Visit them and thanks again and also keep it up...

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