‘‘उम्र गुजर गयी। शरीर पुराना हो गया। उत्साह समाप्त हो गया। नीरसता के इस माहौल में उजाले की तलाश है। मैं इतना जानती हूं कि काया मिटने वाली है। कांपती हुई देह को सुकून की तलाश है।’ काकी ने मेरी तरफ देखा।
बूढ़ी काकी ने आगे कहा,‘शरीर की चमक-दमक कितने दिनों की होती है। यह हम बखूबी जानते हैं। कुछ लोगों को उसपर गुमान भी होता है। लेकिन बुढ़ापा जो है, वह इसलिए बना है ताकि सच से सामना हो सके। ईश्वर चाहता है कि इंसान की आंखें खुद खुल जायें। वह हमें अनगिनत अवसर उपलब्ध कराता है। आखिर में उसे हस्तक्षेप करना पड़ता है, वह भी दुखी मन से। फिर इंसान को यकीन होता है कि वह सही नहीं था। वैसे हम गलत ही होते हैं, सिर्फ ईश्वर सही है।’
काकी की बातों में उलझ जाता हूं मैं। हैरानी होती है मुझे। मैंने काकी से पूछा,‘तो सच का सामना बुढ़ापे से बेहतर कहीं नहीं हो सकता?’
इसपर काकी बोली,‘देखो, पहले भी मैंने तुम्हें बताया था कि बुढ़ापा जीवन का सार होता है। जीवन भर में कष्टों भरी राहें मिलती हैं। हम उनसे दो-चार होते हैं। लेकिन बुढ़ापा उतना सरल नहीं, इसे निभाना पड़ता है। सच कहूं तो बुढ़ापा ढोया जाता है। जीवन के अंतिम छोर पर खड़े होते हैं हम। इंतजार होता है जग छोड़ने का। वृद्धावस्था वह समय है जब इंसान जीवन की असलियत से रुबरु होता है। उसे एहसास होता है कि वह कितना सफर तय कर चुका। उसे यह भी मालूम होता है कि सफर खत्म होने जा रहा है। पीछे बहुत कुछ छूटने जा रहा है। अपने भी और पराये भी। कुछ बातें रह जायेंगी जिन्हें हमसे लगाव रखने वाले शायद ही कभी भूल पायें। हम उन्हें कब तक याद रख पाते हैं यह हम नहीं जानते, लेकिन जीवन तक तो याद रखेंगे ही। वक्त कम था इसलिए सारी बातें नहीं की। अब वक्त तलाशा नहीं जा सकता, उसे एकत्रित नहीं किया जा सकता। जितना करना था, उतना किया। जितना चलना था, उतना सफर तय किया। बस आराम चाहिए इन बूढ़ी हडिड्यों को, कुछ पल का आराम।’
‘अनुभवों को सिमेट कर हमने इकट्ठा किया होता है। ये अनुभव जीवन में घटी घटनाओं पर आधारित होते हैं। बुढ़ापा इंसान से कहता है कि नई पीढ़ी को अनुभव बांटों ताकि वे कड़वे-मीठे का भेद जान सकें। बुढ़ापा चाहता है कि आने वाले कल के लोग वे सब न सहें जिन्हें उसने सहा है। वाकई बुढ़ापा फ़िक्र करता है सबकी। वह सलामती चाहता है हर किसी की। उसे दर्द होता है जब किसी अपने को चोट पहुंचती है। उसे चाहें किसी हाल में रहना पड़े, दुख सहना पड़े, वह हमेशा अपने बारे में नहीं सोचता। वह दूसरों का दर्द समेटने की ख्वाहिश रखता है। यह जिंदगी का सच है। हम सच का सामना असल में बुढ़ापे में ही करते हैं। जीवन की सच्चाई वृद्धावस्था में छिपी है। जो लोग बूढ़े नहीं हुए, उन्हें मालूम होना चाहिए कि बुढ़ापा अपने में इतना कुछ समेट चुका होता है कि वह संपूर्ण जीवन की बारीकियों का निचोड़ हो जाता है।’
बुढ़ापे पर बूढ़ी काकी के विचार मुझे सोचने पर विवश करते हैं। मैं उसकी बातें सुनकर एक बार नहीं अनेक बार गंभीर हुआ हूं। मैं जानता हूं कि काकी की बातों में जो सच्चाई छिपी है, उससे हम किनारा करने की कोशिश क्यों करते हैं। जबकि हम खुद जानते हैं कि सच का सामना एक दिन जरुर होना है। इसमें घबराहट नहीं होनी चाहिए, किसी तरह का डर नहीं होना चाहिए क्योंकि यह उतना बुरा नहीं जितना लोग समझते हैं। काकी की बातों से तो यही लगता है कि बुढ़ापे में भी अगर व्यक्ति चाहे तो समय आसानी से कट सकता है।
-harminder singh
Thursday, August 13, 2009
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
aapko bhi badahiye.
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