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मैं आज फिर से उदास हूं। मेरा एक साथी कैदी सादाब चुप सा रहने लगा है। पिछले कई दिनों से पता नहीं क्या हुआ कि वह मायूस रहता है। उसका चेहरा काफी शांत लगता है। मैंने उससे पूछा नहीं, लेकिन लगता है कि वह अंदर ही अंदर दुखी है। ऐसा होता है जब हम हृदय से अधिक सोचना शुरु कर देते हैं। हमारा मन कुछ सोचता है, दिमाग कुछ। तब अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मैं उसके हृदय को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता। इसलिए मैंने उससे बिल्कुल नहीं पूछा कि वह उदास क्यों है? हम ऐसा करते भी नहीं क्योंकि हर किसी का अपना व्यक्तिगत जीवन होता है जिसके बारे में हर कोई बताना भी तो नहीं चाहता।
सादाब काफी हंसता था। हालांकि वह खुश नहीं था, मगर वह हंस देता था। शायद इससे उसका दुख कम हो जाता था। उसकी एक मुस्कराहट से मुझे भी काफी राहत मिलती थी। ऐसा अक्सर होता था। कोई बात होती तो गंभीरता से उसपर वार्तालाप होता। जब कुछ अधिक गहरापन आ जाता तो वह अपनी हंसी को बीच में लाकर उसमें उथलापन ला देता। उसके विचार मुझे प्रभावित करते हैं। मैं सोचता हूं कि वह पहले मुझसे काफी कुछ कहता आया है, फिर कुछ दिनों से क्यों अपनी व्यथा नहीं बताना चाहता। मैं किसी को दुखी नहीं देखना चाहता।
इंसान इसलिए इंसान कहलाता है क्योंकि उसमें इंसानियत है और इंसानियत कहती है कि दूसरों की जरुरत पड़ने पर जहां तक हो सके मदद करो। उन्हें यदि किसी चीज की जरुरत है उसे उपलब्ध कराओ। मैं चाहता हूं कि वह इस तरह गुमसुम न रहे। उसने मुझे कई बार हौंसला दिया है। मैं भी कम हताशा से भरा नहीं, बल्कि अपने आसपास कई लोगों के कारण कभी-कभी बहुत कमजोर हो जाता हूं। इंसान कमजोर नहीं होता, उसे लोग ऐसा बना देते हैं। कुछ बातों का असर होता है, कुछ स्थितियों का, लेकिन हम खुद को विचारों से लड़ता हुआ असहाय पाते हैं। फिर कहते हैं कि जीना उतना आसान नहीं। वाकई जीना उतना आसान नहीं। शायद मरना भी कठिन है।
-harminder singh
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