बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Thursday, November 19, 2009

सादाब की कहानी

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सुबह काफी समय तक मैं सोया रहा। नींद पूरी हो गयी। पता नहीं चला कब आंख लग गई। कलम और डायरी को सादाब ने मेरे पास से उठाकर कोने में रख दिया। वह मेरा कितना ख्याल रखता है। उसने बताया कि मुझे चादर उसने उढ़ाई थी। मैं उसे एकटक निहारता रहा। वह अधिक कुछ बोला नहीं। जितना बोलता है, कीमत का बोलता है। कहते हैं न-‘सबका तरीका अपना होता है।’

भगवान हर किसी का ख्याल रखता है। यह हम अच्छी तरह जानते हैं। इंसान इंसानियत को लेकर पैदा हुआ है। हमारे भी कई कर्तव्य हैं जिनकी पूर्ति हमें करनी होती है। मुझे मालूम नहीं कि मेरा जीवन कितना है, लेकिन जितना है उतने समय बहुत कुछ करने की मेरी तमन्ना है। लोगों को समझाना चाहता हूं कि इंसानियत कितनी अहम है, हम भी और हमारा जीवन भी। वह हर चीज अहम है जो संसार में बसती है। इंसान भी संसार में बरसते हैं। फिर क्यों इंसान ने इंसान को कष्ट पहुंचाया है?

कई प्रश्न जटिल होते हैं। उन्हें सुलझाया नहीं जाता। सादाब ने बताया कि वह आज मुझे बहुत कुछ बताने वाला है। उसने कहा,‘‘शायद किस्मत को मोड़ना कठिन है। मैं किस्मत के हाथों परास्त हुआ हूं। मेरे अब्बा तो बचपन में गुजर गये थे। अम्मी को घर का चौका-बरतन ही पता था। वह बाहर की दुनिया को उतने करीब से नहीं जानती थी। हमारे घर की दीवारें पहले ही कमजोर थीं, अब्बा की मौत से स्थिति और खराब हो गयी। परदानशीं औरतों के लिए बाहर का माहौल अटपटा होता है। अम्मी कई मायनों में अंजान थी। हम तीन भाई-बहन हैं। सबसे बड़ी रुखसार केवल दस साल की थी। उससे छोटी जीनत आठ साल की और मैं पांच साल का। दोनों बहनें मुझे बहुत प्यार करती थीं। एक भाई की खुशी बहन की खुशी होती है।

‘‘स्कूल में केवल मेरा दाखिला कराया गया था। उस दिन अब्बा बहुत खुश नजर आ रहे थे।  उन्हें लग रहा था जैसे कोई बड़ा सपना साकार होने जा रहा था। सपने बड़े ही होते हैं, जब उम्मीदें बड़ी हों। एक पिता को अपनी औलाद से बहुत उम्मीद होती है। उम्मीद पूरी होने पर तसल्ली होती है।’’ इतना कहकर सादाब कुछ पल के लिए चुप हो गया। उसकी आंखें गीली थीं।

सादाब को याद है कि उसके पिता ने उससे काफी कुछ कहा था।

वह कहता है,‘‘जब मैं छोटा था तब मेरे अब्बा ने मुझे कई अच्छी बातें बताई थीं। उन्हें मैं भूलना नहीं चाहता क्योंकि जिंदगी उनसे प्रभावित होती है और ऐसी चीजों का प्रभाव हर बार अच्छा ही होता है। मेरा ताल्लुक सदा ऐसे लोगों से रहा जिनके विचार टूटे हुए नहीं थे। वे ऐसे लोग थे जिनके सपने ऊंचे जरुर थे, मगर इरादे कमजोर बिल्कुल नहीं। वे आज कामयाबी को अपने नीचे रखते हैं। मेरे अब्बा ने कहा था कि हम एक बार जीते हैं, एक बार मरते हैं। इसलिए इतने काम कर जाएं कि लोग हमें याद रखें। ऐसा मेरे दादा ने मेरे पिता से कहा था।’’

मेरा बेटा मेरे पास होता तो शायद उससे भी मैं यही कहता। बेटी को भी उतना ही हौंसला देता। खैर, वे मेरे पास नहीं। मैं फिर भावुक हो रहा हूं। ये भावुकता भी इंसान को मजबूर कर देती है। मैं मजबूरी को समझ रहा हूं। मजबूरी मुझे समझने में असमर्थ जान पड़ती है।

जारी है.......

-harminder singh

1 comment:

  1. Ek Achhi Gadya Rachna Ka Jikra Aapke Dwara. Is Tarah Ki Rachnayen Badi Hi Rochak Hoti Hai.

    Thank You For Sharing.

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कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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