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सुबह काफी समय तक मैं सोया रहा। नींद पूरी हो गयी। पता नहीं चला कब आंख लग गई। कलम और डायरी को सादाब ने मेरे पास से उठाकर कोने में रख दिया। वह मेरा कितना ख्याल रखता है। उसने बताया कि मुझे चादर उसने उढ़ाई थी। मैं उसे एकटक निहारता रहा। वह अधिक कुछ बोला नहीं। जितना बोलता है, कीमत का बोलता है। कहते हैं न-‘सबका तरीका अपना होता है।’
भगवान हर किसी का ख्याल रखता है। यह हम अच्छी तरह जानते हैं। इंसान इंसानियत को लेकर पैदा हुआ है। हमारे भी कई कर्तव्य हैं जिनकी पूर्ति हमें करनी होती है। मुझे मालूम नहीं कि मेरा जीवन कितना है, लेकिन जितना है उतने समय बहुत कुछ करने की मेरी तमन्ना है। लोगों को समझाना चाहता हूं कि इंसानियत कितनी अहम है, हम भी और हमारा जीवन भी। वह हर चीज अहम है जो संसार में बसती है। इंसान भी संसार में बरसते हैं। फिर क्यों इंसान ने इंसान को कष्ट पहुंचाया है?
कई प्रश्न जटिल होते हैं। उन्हें सुलझाया नहीं जाता। सादाब ने बताया कि वह आज मुझे बहुत कुछ बताने वाला है। उसने कहा,‘‘शायद किस्मत को मोड़ना कठिन है। मैं किस्मत के हाथों परास्त हुआ हूं। मेरे अब्बा तो बचपन में गुजर गये थे। अम्मी को घर का चौका-बरतन ही पता था। वह बाहर की दुनिया को उतने करीब से नहीं जानती थी। हमारे घर की दीवारें पहले ही कमजोर थीं, अब्बा की मौत से स्थिति और खराब हो गयी। परदानशीं औरतों के लिए बाहर का माहौल अटपटा होता है। अम्मी कई मायनों में अंजान थी। हम तीन भाई-बहन हैं। सबसे बड़ी रुखसार केवल दस साल की थी। उससे छोटी जीनत आठ साल की और मैं पांच साल का। दोनों बहनें मुझे बहुत प्यार करती थीं। एक भाई की खुशी बहन की खुशी होती है।
‘‘स्कूल में केवल मेरा दाखिला कराया गया था। उस दिन अब्बा बहुत खुश नजर आ रहे थे। उन्हें लग रहा था जैसे कोई बड़ा सपना साकार होने जा रहा था। सपने बड़े ही होते हैं, जब उम्मीदें बड़ी हों। एक पिता को अपनी औलाद से बहुत उम्मीद होती है। उम्मीद पूरी होने पर तसल्ली होती है।’’ इतना कहकर सादाब कुछ पल के लिए चुप हो गया। उसकी आंखें गीली थीं।
सादाब को याद है कि उसके पिता ने उससे काफी कुछ कहा था।
वह कहता है,‘‘जब मैं छोटा था तब मेरे अब्बा ने मुझे कई अच्छी बातें बताई थीं। उन्हें मैं भूलना नहीं चाहता क्योंकि जिंदगी उनसे प्रभावित होती है और ऐसी चीजों का प्रभाव हर बार अच्छा ही होता है। मेरा ताल्लुक सदा ऐसे लोगों से रहा जिनके विचार टूटे हुए नहीं थे। वे ऐसे लोग थे जिनके सपने ऊंचे जरुर थे, मगर इरादे कमजोर बिल्कुल नहीं। वे आज कामयाबी को अपने नीचे रखते हैं। मेरे अब्बा ने कहा था कि हम एक बार जीते हैं, एक बार मरते हैं। इसलिए इतने काम कर जाएं कि लोग हमें याद रखें। ऐसा मेरे दादा ने मेरे पिता से कहा था।’’
मेरा बेटा मेरे पास होता तो शायद उससे भी मैं यही कहता। बेटी को भी उतना ही हौंसला देता। खैर, वे मेरे पास नहीं। मैं फिर भावुक हो रहा हूं। ये भावुकता भी इंसान को मजबूर कर देती है। मैं मजबूरी को समझ रहा हूं। मजबूरी मुझे समझने में असमर्थ जान पड़ती है।
जारी है.......
-harminder singh
Ek Achhi Gadya Rachna Ka Jikra Aapke Dwara. Is Tarah Ki Rachnayen Badi Hi Rochak Hoti Hai.
ReplyDeleteThank You For Sharing.