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वृद्धावस्था एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज मौत के अलावा और कुछ नहीं। जब अवस्था अपने अवसान के द्वार तक पहुंचती है तो वृद्ध मानव उस समय बहुत थक चुका होता है। उसे उस समय किसी ऐसे व्यक्ति की चाह होती है जो उसे ढांढस बंधाये और उसे अपनत्व दिखाये। बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिन्हें जीवन के अंतिम पड़ाव में अपनों ने सहारा दिया हो, उनके दुख-दर्द को बांटा हो। अधिकांश लोग अपने वृद्ध मां-बाप को एक बोझ मानने लगते हैं तथा उनसे जल्दी से जल्दी छुटकारा चाहते हैं। वे लोग वास्तव में कितने बेवकूफ होते हैं? उन्हें यह मालूम नहीं कि उन्हें भी कुछ दिन इसी स्थिति से गुजरना होगा। जिन बच्चों को वह अपना मानकर उनकी हर आवश्यकता पूरी करने के लिये भारी मशक्कत और अमानवीय कार्य कर रहा है। जिस प्रकार उसके मां-बाप ने बचपन में सबकुछ अपनी संतान पर समर्पित कर दिया और उसके प्रतिफल में घोर निराशा, अभाव भरा समय और उससे भी कठिन अपने दुख-दर्दों को बयान तक करने पर प्रतिबंध।
वृद्धावस्था व्यतीत कर रहे किसी व्यक्ति की स्थिति का वर्णन आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब में किसी संत ने यों किया है-
नैनहू नीर बहे तन खीना केश भये दुध बानी। रुंधा कंठ सबद नहीं उचरै अब क्या करै परानी।।
अर्थात् आंखों से पानी बह रहा है, शरीर क्षीण हो चुका, केश दूध की तरह सफेद हो गये, गला रुंध गया जिससे शब्दों का उच्चारण भी नहीं कर सकता।
ऐसी स्थिति होने पर वह क्या करे? पूरी तरह निराश्रय होने पर उसे ईश्वर के अलावा और कोई सहारा नहीं दिखायी देता। संत जी इस दुख के निराकरण के लिये कहते हैं कि- ‘राजा राम हाए वैद बनवारी। अपने जन को लेहु उबारी।’ अर्थात् वृद्धावस्था रुपी रोग की दवाई केवल ईश्वर के पास ही है। यदि उसकी डोर पकड़ ले तो वे अपने भक्त को जरुर उबारेंगे।
गुरु ग्रंथ साहिब में ही गुरु तेग बहादुर जी की वाणी भी यही कहती है। तथा राम नाम न जपने वाले को बावरा कहकर नाम के लिये प्रेरित करते हैं-‘विरध भयो सूझै नहीं, काल पहुंचयो आन। कहु नानक नर बावरे क्यों ना भजै भगवान।।’
हमारे संतों की वाणी बुढ़ापे के दुखों के निराकरण का भक्ति ही अमोघ अस्त्र मानती है। लेकिन परमात्मा की भक्ति भी वही लोग नहीं करने देते जिन्हें उन्होंने जन्म दिया, पाल पोस कर इस योग्य बनाया कि वे अपना तथा अन्य जरुरतमंदों को सहारा दे सकें। कई वृद्धों की दारुण स्थिति देखकर हृदय रो उठता है लेकिन उनके वारिसों का हृदय द्रवित नहीं होता।
पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार और राज्य सरकारों ने वृद्ध जनों के लिये कुछ कल्याणकारी कदम उठायें हैं जैसे वृद्धावस्था पेंशन आदि। इस तरह की योजनायें देखने सुनने में बहुत ही लुभावन लगती हैं। यदि इसकी हकीकत में पहुंचते हैं तो इस तरह की व्यवस्था को क्रियान्वित करने वाले समाज कल्याण विभाग के कर्मचारियों की प्रणाली पर बहुत ही क्षोभ और दर्द होता है। कई वृद्ध तथा विधवा महिलायें विकास खंड कार्यालयों पर भूखी-प्यासी संबंधित कर्मचारियों की प्रतीक्षा में सुबह से शाम तक बैठी रहती हैं। उनके आंसू पोंछने वला कोई नहीं दिखाई देता है। अधिक परेशान होने पर उन्हें दलाल की शरण लेनी पड़ती है। जो दो-चार सौ रुपये मिलने होते हैं उनमें पहले ही बंदरबांट शरु हो जाती है। बी.डी.ओ. से लेकर सी.डी.ओ. तक इस हरकत से पूरी तरह वाकिफ होते हैं लेकिन उनकी माता-पिता के सदृश्य उनसे वे बचकर निकल जाते हैं। सभाओं में गोष्ठी और भाषणों में इनकी बातों से ऐसा लगता है मानों वे वृद्धों की स्थिति से बहुत ही दुखी हों और उनके लिये बहुत कुछ कर रहे हों। अधिक कमजोर और कृश्काय वृद्ध बेचारे कहीं आ जा भी नहीं सकते। जे.पी. नगर जनपद की सुमिरन नामक एक दलित वृद्धा सी.डी.ओ. कार्यालय पर किसी तरह अपने गांव से पहुंच गयी लेकिन इसे उसकी बदकिस्मती कहें या भ्रष्टाचारी सरकारी नौकरों की कारस्तानी। उसके ऊपर को टैक्ट्रर उतर गया जिससे वह बुरी तरह घायल हो गयी और जल्दी ही मर भी गयी। उसे मिलने वाली राशि पता नहीं कहां चली गयी। यह किसी एक ही सुरमन की व्यथा नहीं बल्कि देश भर में न जाने कितनी सुरमन जीवन के अंतिम पड़ाव में कष्ट भोग रही है। भरे पूरे परिवारों में उनकी ओर कोई नहीं झांकता। कई महिला हितों के हिमायती एन.जी.ओ. भी जानबूझकर इधर से आंखें बंद किये हैं।
-harminder singh



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