बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

LATEST on VRADHGRAM:

Friday, May 29, 2009

यादें संजोने की जरुरत

एक व्यक्ति से मैं काफी बातें कर लेता हूं। हालांकि वह मेरा मित्र नहीं है, लेकिन हमारे विचार काफी मिलते हैं। वह साधारण किस्म का इंसान है। उसे मैं अनोखा कहता हूं क्योंकि वह बातें सबसे अलग करता है। वह प्रचार से दूर रहना चाहता है। इसलिए मैं उसका नाम नहीं लिखने जा रहा। उसने मुझसे कहा था,‘अपने बारे में लिखकर हमें लगता है कि हम ‘स्पेशल’ हैं।’ मैंने अचरज में कहा,‘हां, सचमुच ऐसा ही है।’ वह साहित्य से लगाव रखता है। पहले वह भी मेरी तरह था. उसका साहित्य से कोई विशेष लगाव नहीं था, लेकिन जबसे उसने अपने बारे में लिखना शुरु किया है उसने पाया कि साहित्य पढ़ना भी कुछ मायने रखता है। अच्छे लेखकों को हमें पढ़ना चाहिए। मैंने उससे कहा कि कितनी खुशी होगी तब, जब हम बुजुर्ग होंगे, नाती-पोतों वाले। उस समय अपनों के साथ बैठकर पुराने दिनों को पढ़ेंगे और उन्हें सुनायेंगे। हम तब तक अपने बारे में बहुत कुछ अक्षरों से उकेर चुके होंगे। मुझे लगता है कि यादों को यदि पन्नों पर उतारा जाए और उतारने वाले भी हम ही हों तो कैसा रहे। यादों में बहुत ताकत होती है।
कुछ लोग आप-बीती को कलमबद्ध करते हैं। समय शायद निकालना पड़ता है। इसी वजह से सोने से पहले का वक्त सबसे उपयुक्त है। हम दिनभर की घटनाओं को एक डायरी में नोट कर सकते हैं। ऐसा करने में अधिक समय नहीं लगता। मेरे हिसाब से हर किसी को अपने बारे में कुछ न कुछ लिखना चाहिए। समय के साथ-साथ इतना कुछ इक्ट्ठा हो जाएगा कि जब हम सालों बाद उसे पढ़ेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।

रामायण से सीख
मुझे याद है जब रामायण सीरियल दूरदर्शन पर आता था। तब कुछ लोगों के घरों में ही टी.वी. हुआ करते थे। कई लोग एक घर में इकट्ठे होकर टीवी देखते थे। नुक्कड़-चैराहों पर भीड़ जुटी होती थी। सीरियल के नायक अरुण गोविल को लोग राम ही मानने लगे थे। वे जहां भी जाते लोग उन्हें देखने के लिए भारी संख्या में एकत्र हो जाते। यहां तक की महिलाएं अपने बच्चों को अरुण गोविल के चरणों में मत्था टेकने को कहतीं और श्रद्धा भाव से हाथ जोड़कर खड़ी रहतीं। मां-बाप अपने बच्चों से कहते कि रामायण से कुछ सीखो। देखो किस तरह भाई एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। देखो किस तरह बेटे अपने माता-पिता की सेवा करते हैं। रामायण का असर जनमानस पर जरुर हुआ। बहुत से बेटे सुबह उठकर माता-पिता के पैर छूने लगे थे। काफी समय से एनडीटीवी इमेजिन पर रामायण की कहानी चल रही है। लोग उसे भी देख रहे हैं, लेकिन शायद उतनी शिक्षा नहीं ले रहे।

-harminder singh

No comments:

Post a Comment

Blog Widget by LinkWithin
coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com