एक व्यक्ति से मैं काफी बातें कर लेता हूं। हालांकि वह मेरा मित्र नहीं है, लेकिन हमारे विचार काफी मिलते हैं। वह साधारण किस्म का इंसान है। उसे मैं अनोखा कहता हूं क्योंकि वह बातें सबसे अलग करता है। वह प्रचार से दूर रहना चाहता है। इसलिए मैं उसका नाम नहीं लिखने जा रहा। उसने मुझसे कहा था,‘अपने बारे में लिखकर हमें लगता है कि हम ‘स्पेशल’ हैं।’ मैंने अचरज में कहा,‘हां, सचमुच ऐसा ही है।’ वह साहित्य से लगाव रखता है। पहले वह भी मेरी तरह था. उसका साहित्य से कोई विशेष लगाव नहीं था, लेकिन जबसे उसने अपने बारे में लिखना शुरु किया है उसने पाया कि साहित्य पढ़ना भी कुछ मायने रखता है। अच्छे लेखकों को हमें पढ़ना चाहिए। मैंने उससे कहा कि कितनी खुशी होगी तब, जब हम बुजुर्ग होंगे, नाती-पोतों वाले। उस समय अपनों के साथ बैठकर पुराने दिनों को पढ़ेंगे और उन्हें सुनायेंगे। हम तब तक अपने बारे में बहुत कुछ अक्षरों से उकेर चुके होंगे। मुझे लगता है कि यादों को यदि पन्नों पर उतारा जाए और उतारने वाले भी हम ही हों तो कैसा रहे। यादों में बहुत ताकत होती है।
कुछ लोग आप-बीती को कलमबद्ध करते हैं। समय शायद निकालना पड़ता है। इसी वजह से सोने से पहले का वक्त सबसे उपयुक्त है। हम दिनभर की घटनाओं को एक डायरी में नोट कर सकते हैं। ऐसा करने में अधिक समय नहीं लगता। मेरे हिसाब से हर किसी को अपने बारे में कुछ न कुछ लिखना चाहिए। समय के साथ-साथ इतना कुछ इक्ट्ठा हो जाएगा कि जब हम सालों बाद उसे पढ़ेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।
रामायण से सीख
मुझे याद है जब रामायण सीरियल दूरदर्शन पर आता था। तब कुछ लोगों के घरों में ही टी.वी. हुआ करते थे। कई लोग एक घर में इकट्ठे होकर टीवी देखते थे। नुक्कड़-चैराहों पर भीड़ जुटी होती थी। सीरियल के नायक अरुण गोविल को लोग राम ही मानने लगे थे। वे जहां भी जाते लोग उन्हें देखने के लिए भारी संख्या में एकत्र हो जाते। यहां तक की महिलाएं अपने बच्चों को अरुण गोविल के चरणों में मत्था टेकने को कहतीं और श्रद्धा भाव से हाथ जोड़कर खड़ी रहतीं। मां-बाप अपने बच्चों से कहते कि रामायण से कुछ सीखो। देखो किस तरह भाई एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। देखो किस तरह बेटे अपने माता-पिता की सेवा करते हैं। रामायण का असर जनमानस पर जरुर हुआ। बहुत से बेटे सुबह उठकर माता-पिता के पैर छूने लगे थे। काफी समय से एनडीटीवी इमेजिन पर रामायण की कहानी चल रही है। लोग उसे भी देख रहे हैं, लेकिन शायद उतनी शिक्षा नहीं ले रहे।
-harminder singh
Friday, May 29, 2009
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..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
![]() >>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
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