बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Tuesday, July 22, 2008

बुढ़ापे का इश्क

बुढ़ापा ये नहीं कहता कि जिंदगी का सफरनामा यहीं तक। बूढ़ों को भला कोई रोक सकता इश्क करने से। अरे, इश्क कीजिये, फिर समझिये कि जिंदगी क्या चीज है। लेकिन अब तो जिंदगी उतनी बची नहीं, लेकिन जितनी बची है उतनी में बहुत कुछ सोचा जा सकता है।

उम्र को आड़े आने को कौन कह रहा है। भई हौंसला होना चाहिये और कदम बढ़ने चाहिंये। यहां बिग बी की परदे की नकली कहानी नहीं है, यह तो रियल लाइफ है। रील और रियल में वास्तविकता का अंतर होता है। इश्क अपने से कीजिये। इश्क अपनी यादों से कीजिये। इश्क अपनी बातों से कीजिये। यहां इश्क करने के लिये इतना कुछ है कि इश्क करते-करते कब अंतिम सांस आ जाये पता ही न चले। इश्क में खो जाईये। जवान होने का दिखावा न कीजिये, दिल से जवान बनिये। कौन कहता है कि बुढ़ापे में जवानी नहीं आती। आयेगी जवानी आयेगी और इस कदर आयेगी कि जवानों को बचके निकला पड़ेगा संकरी गली से। कमाल है न, इश्क का भई मिजाज ही कुछ ऐसा है।
जरा गौर फरमायें। मैं कहता हूं:
इश्क अच्छे-अच्छों को बना देता है जवान,
और मिटा देता है बुढ़ापे के निशान।’

आलम ये रहेगा कि आप को पता ही नहीं चलेगा कि कब गुजर गये वो दिन जब तन्हाईयां हमसे बातें करती थीं और यादों में हम सिमटे रहते थे। सलवटों को ध्यान में रखकर ही तो हमने तय किया कि क्यों न अपने बुढ़ापे से ही इश्क किया जाये। बुजुर्गो जरा ध्यान दें, जरुरी नहीं कि आप इस कदर बूढ़ें हों कि इश्क-मिजाजी को बुरा मानें, बल्कि यह मान कर चलें कि अपने को भी तो जीना है चाहें कुछ दिन का ही क्यों न हो। तो क्यों न ऐसे जिया जाये कि जीने की तारीफ वहां भी की जाये जहां हमारा रास्ता जन्म लेने से पहले ही पक्का हो गया था।

चुप रहने में क्या रखा है। मैं मानता हूं कि बदलेंगे हम, बदलेंगे हमारे ख्यालात और बदलेंगे हम उन्हें जो हमें बूढ़ा कहते हैं, ताने मारते हैं। समझ अपनी है, वक्त अपना होगा और हम खुद को महसूस ही नहीं होने देंगे कि हम कौन सी अवस्था में जी रहे हैं। यह आसान नहीं, तो मुश्किल भी नहीं।

चलिये हम भी अभी से बुढ़ापे के इश्क की तैयारी करते हैं।
प्रस्तुत हैं मेरी कुछ पंक्तियां:
‘कुछ दूर चलें, हम भी तुम भी।
वहां न हम होंगे न तुम,
बस कुछ यूं ही होगा हर पल,
रुसवा हुआ, चुप भी, तन्हा भी,
वह मिजाज बदल देगी इक बात,
फिर होगा इश्क खुद से,
तबियत होगी खुश,
उड़ती यादों में,
डूब जायेंगे हम, कुछ पुरानी यादें,
सिमटी होंगी, इक तस्वीर में,
अब रंगीन होंगी यादें, वे पल,
क्योंकि यहां इश्क की बयार है,
बहती जैसे गंग लहर है,
फिर खामोश होगा सब कुछ,
न हम होंगे, न तुम, न पल,
पता नहीं क्या था,
पता नहीं अब क्या है?’

-HARMINDER SINGH

2 comments:

  1. डूब जायेंगे हम, कुछ पुरानी यादें,
    सिमटी होंगी, इक तस्वीर में,
    अब रंगीन होंगी यादें, वे पल,
    क्योंकि यहां इश्क की बयार है,
    बहती जैसे गंग लहर है,


    --यही ज़ज्बा होना चाहिये, बहुत खूब. क्या मजे से कटेगा बुढ़ापा तब!!!

    ReplyDelete
  2. वृद्ध होना जीवन जीवन का एक पड़ाव है न कि जीवन में आया एक ठहराव। जीवन चलता रहता है जब तक साँसें हैं।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete

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कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
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>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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