बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Saturday, November 21, 2009

मैडम मौली



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मैडम मौली की बड़ी-बड़ी आंखों को देखकर सभी घबराते थे। उनकी आवाज की आहट भर से ही पूरी क्लास में शांति छा जाती। मुझे, सच कूहूं, सबसे अधिक भय मैडम मौली से लगता था। उनका हैयर-स्टाइल समय-समय पर बदलता रहता। उनके माथे की बड़ी बिंदिया का रंग रोज बदलता था। साथ ही वे घड़ियों की शौकीन थीं। लेकिन कंगन या गहना पहनती नहीं थीं।

  उन्होंने ब्लैक-बोर्ड पर एक सवाल किया। मैं अगली सीट पर बैठा था। वे मेरे ठीक सामने खड़ी थीं। उन्होंने मेरी तरफ उंगली दिखाई और कहा,‘‘तुम, यह सवाल हल करो।’’ मैं एकदम घबरा गया।

  मैं हल करुं तो कैसे? सवाल मुझे आता ही नहीं। मैडम मौली ने मुझे घूरा। मैं सोचने का बहाना करने लगा। वह बोलीं,‘‘क्या सोच रहे हो। सवाल करो।’’

  मैं नीचे मुंह कर खड़ा रहा।

  ‘‘इधर आओ।’’ मैडम मौली ने कहा।

  उन्होंने मुझसे आगे कहा,‘‘मैं कुछ मदद करुं।’’

  मैं कुछ नहीं बोला। मैं सोच में पड़ गया कि आखिर मैडम इतनी नम्र कैसे हो गयीं?
 
  बच्चों में खुसर-पुसर शरु हो गयी थी।

  तभी मैडम मौली ने कठोर शब्दों में कहा,‘‘चुप, किसी की आवाज आई तो खैर नहीं।’’ क्लास में सन्नाटा छा गया।

  मैं कांप रहा था। मुझे डर था कहीं मेरे चांटा न लग जाए। मेरी इज्जत न उतर जाए।

  ‘‘तुम।’’ मैडम मौली ने मेरी तरफ देखकर कहा। ‘‘सीट पर जाकर खड़े हो जाओ।’’

  ‘‘विनय इधर आकर सवाल करो।’’ मैडम मौली ने कहा। विनय ने सवाल को झट से कर दिया। उसके बाद मैडम ने मुझसे कहा,‘‘देखो कितना आसान था। समझ गए तुम।’’

  मैंने ‘हां’ में सिर हिला दिया। मगर मेरी समझ में सवाल बिल्कुल नहीं आया था। मैंने जल्दी से सवाल कोपी में हल सहित उतार लिया।

  मैडम मौली ने एक-एक बच्चे को पहाड़े सुनाने के लिए खड़ा किया। मेरी बारी आ गयी थी।

  ‘‘तेरह का पहाड़ा सुनाओ।’’ मैडम मौली ने कहा। मैं फिर मुंह नीचे कर खड़ा था।

  ‘‘यह तुम्हारा दूसरा साल है न।’’ उन्होंने कहा। ‘‘होमवर्क दिया गया था, किया नहीं।’’

  मैं भीतर-भीतर घबरा रहा था कि कहीं मैडम मौली मुझे कड़ी सजा न दें। जिसका डर था वही हुआ। उन्होंने मेरा कान पकड़ लिया और मुझे क्लास के बाहर खड़ा कर कहा,‘‘छुट्टे से पहले क्लास में मत आना। इंटरवेल में भी बाहर इसी तरह खड़े रहकर पहाड़े याद करोगे।’’

  मुंह पर किताब लगाये मैं दीवार से सटा खड़ा रहा। मेरी टांगे जबाव दे गयीं। नेत्रा ने मुझे देख लिया था।

  घर पहुंचकर नेत्रा ने माता-पिता को बताया दिया। मैंने सफाई देने की कोशिश की।
 
  मां ने कहा,‘‘पढ़ाई करते तो क्लास के अंदर बैठते।’’ पिताजी बोले,‘‘यह लड़का दिन-ब-दिन नालायक होता जा रहा है। बस टी.वी. और खेल में ध्यान है साहब का।’’

  नेत्रा कहां पीछे रहने वाली थी। वह बोली,‘‘मुझे भईया पढ़ने को मना करते हैं। कल मेरे सिर पर किताब भी मारी थी।’’

  ‘‘ये नहीं सुधरेगा।’’ पिताजी बोले। ‘‘अबकी बार भी उसी क्लास में रहेगा। पढ़ता नहीं, ठाठ देखो कैसे हैं।’’

  ‘‘मैं कहती हूं, इसे होस्टल में भर्ती करवा दो। अक्ल ठिकाने आ जाएगी।’’ मां गुस्से में बोली।

  मैंने अपने कान बंद करने चाहे, मगर मैं ऐसा कर न सका। मैंने मन ही मन सोचा कि आगे से शिकायत का मौका नहीं दूंगा। बहुत हो गयी डांट।

-harminder singh

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प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

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राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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