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सादाब ने बताया कि जब वह घर लौटा तो उसके होश उड़ गये। रुखसार ने सबसे पहले अम्मी को संभाला। हाथ-पैर खोले तथा पानी पिलाया। रुखसार और जीनत दोनों अम्मी से लिपटकर बहुत रोयीं। सादाब इतने गुस्से में था कि मामा को ढूंढने निकल पड़ा। रुखसार ने उसे रोकना चाहा, पर वह रुका नहीं।
सादाब को क्रोध इसका अधिक था कि उसका मामा बिल्कुल बदला नहीं था। कुछ पैसों के लिए अपने ईमान को खराब कर गया। उसके लिए पैसा ही सबकुछ है। कितना गिरा हुआ इंसान है वह? तमाम विचार सादाब को और उत्तेजित करते रहे। तिराहे की एक पान की दुकान पर आकर वह रुका। उसने देखा सामने सड़क पर एक आदमी गठरी लेकर जा रहा है। सादाब उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।
सड़क किनारे रोशनी नहीं थी, रात हो चुकी थी। चंद्रमा की चांदनी उतनी साफ नहीं थी। वह आदमी सादाब को अपने मामा की तरह लग रहा था। सादाब ने कदमों को तेज किया। वह आदमी शायद भांप गया था। उसकी चाल भी तेज हो गई। अचानक वह दौड़ने लगा।
सादाब चिल्लाया,‘मामा रुक जाओ।’
सादाब भी दौड़ पड़ा। सादाब को पक्का यकीन हो गया था कि वह मामा ही था। वह व्यक्ति नजदीक के रेलवे स्टेशन की ओर भागने लगा। सादाब ने तेज दौड़कर उसे पीछे से पकड़ लिया। उसने गठरी सादाब के मुंह पर मारी और भागने लगा। लेकिन सादाब उसका पीछा कहां छोड़ने वाला था। वह कंधे पर गठरी टांग मामा के पीछे दौड़ा।
मामा पटरियां-पटरियां दौड़ रहा था, सादाब उसके पीछे। जैसे-जैसे कदम तेज हो रहे थे, थकान बढ़ती जा रही थी और सांस तेज। मामा को ठोकर लगी। वह गिर पड़ा। उसका चेहरा पत्थरों पर लगने से बुरी तरह छिल गया। सादाब ने मामा को उठाना मुनासिब न समझा। गठरी को किनारे रख दिया। उसे कहीं से एक लोहे का सरिया हाथ लगा।
क्रोध की सीमा जब पार हो जाती है तो इंसान एक अलग रुप में नजर आता है। सादाब के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। उसने मामा पर सरिये से प्रहार शुरु कर दिया। मामा अपने भांजे से दया की भीख मांगता रहा। अपने पापों को कुबूल करता रहा। अपनी बेटियों की दुर्गति की जिम्मेदारी भी उसने ली। लेकिन सादाब उस जड़ को ही खत्म करने का इरादा किये था।
मामा चीखता रहा पर सादाब रुका नहीं। लोगों की भीड़ जमा हो गयी। जबतक पुलिस आई तबतक मामा अंतिम हिचकी ले चुका था।
कुछ समय पहले की दौड़ निर्णायक मोड़ पर आकर समाप्त हो गयी। एक चलता पुर्जा अब लाश में तब्दील हो चुका था। न वह बोल सकता था, न सुन सकता था, न देख सकता था जबकि उसके चारों ओर जो भीड़ जमा थी, वह यह सब कर सकती थी, तभी वह शांत था और लोग अशांत।
मामा के पापों की कहानी उसी के साथ समाप्त हो गयी। सादाब को हत्या के जुर्म में जेल में डाल दिया गया।
’वे कहते थे कि मैंने एक निर्दोष की हत्या की है। जबकि मैं जानता हूं कि मेरा मामा कितना नीच था। उसे न मारा जाता तो वह कई पाप और करता। जिसने पत्नि, सगी बेटियों, बहन को दुख दिया हो, वह जीने के काबिल नहीं।’ यह कहकर सादाब चुप हो गया।
मेरा मन कर रहा था कि मैं उसे सांत्वना दूं, लेकिन मैं रुक गया।
हम दूसरों को देखकर कई बार खुद दुख महसूस करने लगते हैं। इंसान होेने और न होने में यही फर्क है। हमारा संसार जैसा भी रहा हो दूसरों के संसार को संवारने की कोशिश मेरे जैसे लोग करते हैं। मुझे एहसास हुआ कि दर्द को सीने में दफन करना उतना आसान नहीं। कभी न कभी वह उभर ही आता है। परेशान आदमी फिर दिल को खोलकर रख देता है। मेरी कहानी का सच आना बाकी है। मैं फिलहाल चुप हूं। मैं नहीं चाहता कि मेरे जख्मों को हवा लगे। दुखती रग पर हाथ जाने से सब डरते हैं। मुझे थोड़ी खुशी इसकी है कि कोई तो मिला जो वास्तविकता को बता गया मुझपर भरोसा कर।
to be continued..........
-harminder singh
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कुछ लोग होते हैं मामा के जैसे ही ...कभी नहीं बदलते जिंदगी में ...कोई कितनी भी अच्छाई कर ले इनके साथ , इस श्रेणी के लोग अपनी दुष्ट से बाज नहीं आते ...मौत ही उनको सुधार पाती है ...मगर इसके लिए सादाब को गुनाहगार होना पड़ा ...दुखद ....!!
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