बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Sunday, June 13, 2010

.............क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं



राम कल बहुत गुस्से में था। उसने अंजलि को पता नहीं क्या-क्या कह दिया। उसने कहा:

"एक आखिरी कमेंट सुनती जाओ अपने फ़्रेंड्स के बारे में। रियलेटी यह है कि तुम्हारा कोई अच्छा दोस्त है ही नहीं। दरअसल तुम्हारे में ऐसी कोई खासियत ही नहीं है जो कोई तुम्हारा दोस्त बन सके। जिस दिन तुमने ये जो थोड़ा बहुत पढ़ती हो बंद कर दिया- then you will be completely out from your friend circle. न तुम किसी के साथ एडजस्ट कर सकती हो और न कोई तुम्हारे साथ।

तुम पहले भी अकेली थीं और अब भी अकेली हो........और अगर तुम ऐसी ही रहीं तो शायद पूरी जिंदगी अकेली ही रहो। जिस उम्र में तुम हो मैं उससे गुजर चुका हूं। रियलेटी को एक्सैप्ट करना सीखो.........वैसे रियलेटी उतनी बुरी भी नहीं है।

मैं जानता हूं कि तुम्हें काफी बुरा लग रहा होगा। तुम्हें लगता है, मैं तुम्हारे बारे में बुरा सोच सकता हूं। कभी नहीं होगा ऐसा और न ऐसा कभी हो सकता है। तुम्हें एक न एक दिन सच्चाई को मानना ही होगा।

............लेकिन................लेकिन दिल छोटा मत करो, क्योंकि दुनिया के किसी कोने में एक ऐसा शख्स है जो हमेशा तुम्हारे साथ है, और रहेगा, हमेशा।

मेरे लिए तुम हमेशा ‘स्पेशल’ रहोगी, और मैं स्पेशल लोगों को दुखी नहीं देख सकता, कभी नहीं।

प्लीज कभी दुखी मत होना,..............क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं।"

-harminder singh

8 comments:

  1. आपने बिलकुल ठीक कहा,
    इससे पहले थोडा दुःख तो होता है, पर अंत में काफी फायेदा मिलता है |

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  2. ये बात आपने सच कही , कुछ न कुछ उस व्यक्ति में स्पेशल होगा, तभी तो वो एडजेस्ट नहीं कर पाती .
    क्योंकि पूरा सच कभी एडजेस्ट हो ही नहीं सकता.
    अकेला वही होता है जो सच के साथ हो.
    तभी तो मशहूर कवी निदफ़हाज़ली ने कहा है
    "दुश्मन वहुत है उसके ,जरुर आदमी अच्छा होगा "

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  3. Jise pyar karte hain...usse har dam nicha nahi dikhaya karte..

    One should respect his/her beloved's freedom.

    Divya

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  4. जिसे हम प्यार करते हैं उसके लिए अक्सर ऐसा होता ही है, जब हम उन्हे समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन जब वे हमारी बात नहीं समझते तो हमे गुस्सा आ जाता है और हम अपनी बात गुस्से मे कह जाते हैं तो सामने वाले को थोड़ा बुरा जरूर लगता है पर बाद मे उन्हे सच्चाई का एहसास हो ही जाता है।

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  5. लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आया कि हम प्यार क्यों करते हैं?

    हां हमारे लिए कोई बहुत खास हो सकता है और हम उसके लिए।

    हम नहीं चाहते कि वह दुखी हो, लेकिन क्या प्यार में टकरार होना जरुरी है?

    ReplyDelete
  6. शानदार पोस्ट है...

    ReplyDelete
  7. प्यार में तकरार रिश्तों में रंग भर देती है ...बस यह तकरार एक दूसरे को अपमानित करने जैसी नहीं होनी चाहिए ...
    गौरतलब है कि प्यार साथ ना चल पाए तो पीछे चलता है ....कभी आगे नहीं भागता ...
    औकात नहीं देखता .....औकात नहीं दिखलाता ...!!

    ReplyDelete

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हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com