
दीवाली का समय जैसे-जैसे,
करीब आ रहा था,
दम मेरा धीरे-धीरे,
निकला जा रहा था,
अकाल पड़ा है, पानी नहीं बरसा,
कैसे मनेगी दीवाली?
रंग-रोगन, मिठाई, नए कपड़े,
है मेरी जेब खाली,
कहती पत्नि देकर ताने,
‘ये लाओ, वो लाओ,
चरणों में रख दो,
पूरा बाजार ही उठा लाओ।’
बच्चों की समस्या अलग,
कष्ट पहुंचाने की,
कुछ मेरी जेब,
कुछ मुझे खाने की,
‘नहीं पापा हम एटम-बम,
रोकेट छोड़ेंगे जरुर’,
बच्चे मेरे हैं, मेरे जैसे,
नहीं उनका कसूर।
हद कर दी दीवाली ने,
दिवाला निकलवा दिया,
जेब में धमाका, कड़का कर,
कड़का बना दिया,
शपथ लेता हूं,
होगी नहीं आगे ऐसी बर्बादी,
शपथ तोड़ता हूं,
मैंने जो कर रखी है शादी।
-हरमिन्दर सिंह
आपकी चिंता बिल्कुल जायज है.।
ReplyDeleteनिशि दिन खिलता रहे आपका परिवार
ReplyDeleteचंहु दिशि फ़ैले आंगन मे सदा उजियार
खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से
हिल-मिल मनाएं दीवाली का त्यौहार
सही कहा !!
ReplyDeleteपल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
ReplyDeleteदीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
सादर
-समीर लाल 'समीर'