सादाब को काफी गुस्सा आ गया था। उससे मैंने कहा कि अब उसे आराम करना चाहिए। उसकी कहानी तसल्ली से किसी दिन सुन लेंगे।
पता नहीं क्यों वह जैसे मुझे सबकुछ बताना चाह रहा था। उसने आगे बताना शुरु किया,‘‘मामा की छोटी बेटी शायना मुश्किल से छह साल की थी और बड़ी फरीदा नौ की। वह रात को देर से आता था। घर में जुआ खेलता। कई लोगों को साथ लाता। बेटियों से उनके लिए चाय-पानी मंगवाता और रात का खाना बनवाता। कहा न मानने पर उनके सामने ही बाल पकड़कर अपनी बेटियों को बेरहमी से पीटता। बच्चियां थीं, मासूम थीं, अंजान भी, इसलिए बाप की मर्जी को बेचारी आंसू पोंछते-पोंछते मान लेतीं। एक कसाई से कम नहीं था हमारा मामा।’’
‘‘शायना और फरीदा ने कभी मेरी अम्मी से यह नहीं बताया। अम्मी को अपने सगे भाई की असलियत पता नहीं थी। एक रोज मामा शाम को हमारे घर रोता हुआ आया। उसने कहा कि शायना का सुबह से पता नहीं चला। सारा मोहल्ला छान मारा वह मिली नहीं। इसपर अम्मी परेशान हो गयी। लड़कियों की उन्हें बहुत फिक्र रहती थी। शायना फिर कभी नहीं लौटी। मालूम पड़ा कि मामा ने उसे जुए में दांव पर लगाया था। दांव हार जाने पर शायना को उस खूसट जमील को सौंप दिया। जमील उस रात मामा के यहां से नागपुर जा रहा था जहां वह जूते बनाने की एक कंपनी में काम करता था। वहां शायना का क्या हुआ होगा मुझे पता नहीं। लेकिन मामा अच्छा नहीं कर रहा था। अब उसकी नियत यह थी कि किसी तरह फरीदा से भी छुटकारा पा ले।’’
‘‘वह फरीदा को मेला दिखाने ले गया। फरीदा अंजान थी। मेला एक बहाना था। फरीदा का कुछ हजार में पहले ही सौदा किया जा चुका था। सौदेबाज तैयार थे। भीड़ में फरीदा का हाथ छूट गया। उसे किसी ओर ने थामा। कुछ पलों में फरीदा की जिंदगी का फैसला हो चुका था। उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी। वह बिक चुकी थी। और ऐसे लोगों के हाथ में थी जिनके लिए वह केवल मांस का लोथड़ा भर थी, कोई मामूली खरीदी हुई वस्तु जिसकी कीमत चुकायी जा चुकी थी।’’
सादाब का दर्द और गहरा होता जा रहा था। मैं उसकी पीड़ा समझ सकता था। एक व्यक्ति कितना गिर सकता है, मैंने सोचा नहीं था। कितना दुख होता है जब कोई आपका अपना आप पर भरोसा करे और अपने स्वार्थ के लिए आप उसे ऐसे लोगों के हवाले कर दें जो जिंदगियों का सौदा करते हैं। उनके यहां मरी हुई आत्माओं का बाजार सजता है जिनके खरीददार होते हैं। छी है ऐसे इंसानों पर जिनके लिए इंसान मंडी की सजावट से अधिक कुछ नहीं। मैं इसके आगे इसपर लिखना नहीं चाहूंगा।
लोगों की चमड़ी एक सी होती है, फर्क रंग का होता है। लोग एक से होते हैं, यहां भी फर्क रंग का होता है। रंग बदलते देर नहीं लगती। गिरगिट को ही देख लें। जिस जगह बैठा, वैसा उसका रंग हो जाता है।
इंसानों की कला जानवरों से कई गुना शक्तिशाली और अनोखी है। वह जितनी अजीब है, उतनी भयानक भी।
सादाब ने बताया कि उसका मामा अम्मी के सामने फूट-फूटकर रोया। मेले की झूठी कहानी गढ़ दी। उसकी अम्मी को मामा पर यकीन आ जाता था।
to be contd.......
-harminder singh
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