
अपनों का मोह और उनकी करीबी बुजुर्गों को उनसे जोड़े रखती है। पर क्या वे जर्जर काया वालों से मोह करते हैं? शायद इसका जबाव न में अधिक मिले।
जब तक जवानी का दौर रहता है शरीर कुलांचे मारता है। सुबह का सूरज उगता है, दोपहर में पूरे वेग पर होता है और शाम को अस्त हो जाता है।
अस्त हो रहा है आज सूरज। किरणों की संख्या अनगिनत आज भी है, लेकिन उन्हें गिनने वाला कोई नहीं। यह कहना जरुरी हो रहा है कि बात करने वाले दूरी बना रहे हैं। ‘‘बूढ़ों वाली गंध आ रही है’’ कहने वालों की कोई कमी नहीं।

जवानी बात करती है, कूदती फांदती है, इतराती है, लेकिन इस समय सब बेकार है। चुपचाप रहना ही बेहतर है।
-harminder singh
मत पूछिये जनाब वृद्धों की हालत ! ऐसे ऐसे दुष्ट देखे हैं जो अपनी बूढी विधवा माँ को सिर्फ इसलिए वृधाश्रम नहीं भेज रहे क्योंकि शहरों में नौकर जल्दी से नहीं मिलते !!
ReplyDeleteआखिरी पलों की यह कहानी बहुत दुखद है ...आस पास रोज वृद्ध होते माता पिता को इन आखिरी पलों का बोझ उठाये देखते हैं ..!!
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