tag:blogger.com,1999:blog-60101244147383420532024-02-07T10:18:40.239+05:30वृद्धग्रामवृद्धों का पहला ब्लॉगharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.comBlogger223125tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-62879874416603149652010-06-18T18:07:00.001+05:302010-06-18T18:14:16.485+05:30............तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi062orqm8V6x4HBUabVjk_WvWFLV6csqdST1SAUtgWXv8JBuhVvwUQ0ome1XaNSXDrcIvdeRFeOsm1qAKnIBPcNck7ovPhQEuvVVSU0WCdgf8vGLyT7L1gbDZYUAT890Lmcv_0rhMVYclC/s1600/wrinkled+hand.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi062orqm8V6x4HBUabVjk_WvWFLV6csqdST1SAUtgWXv8JBuhVvwUQ0ome1XaNSXDrcIvdeRFeOsm1qAKnIBPcNck7ovPhQEuvVVSU0WCdgf8vGLyT7L1gbDZYUAT890Lmcv_0rhMVYclC/s320/wrinkled+hand.jpg" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
मेरे दादा जी उस उम्र के दौर से गुजर रहे हैं जहां चीजें अक्सर छूटने लगती हैं। छोटी शुभी ने उनके हाथों को देखकर हैरत से कहा,‘इनके हाथों की नसें किस तरह चमक रही हैं।’ ऐसा उसने गंभीरता से कहा था। उस छोटी बच्ची को भी एक वृद्ध की इस अवस्था को देखकर हैरानी हुई।<br />
<br />
दरअसल बुढ़ापा अपने साथ संशय और हैरानी लाता है। इंसान खुद को ऐसे दौर में पाता हैं जहां से रुट बदलना नामुमकिन है। अब तो सिर्फ आगे जाना है। हां, पीछे मुड़कर देखा जा सकता है, लेकिन पुराने दिनों को जिया नहीं जा सकता।<br />
<br />
शुभी की बात ने मुझे भी गंभीर कर दिया था। नसों ने त्वचा का दामन नहीं छोड़ा है। बस किसी तरह चिपकी हैं। <br />
<br />
हम जब एक वृद्ध को देखते हैं तो पाते हैं कि जर्जरता किस कदर हावी हो सकती है। शरीर कितना है बाकी। <br />
<br />
हम जानते हैं कि हम भी कभी वृद्ध होंगे। हम भी होंगे अपने वृद्धजनों के दौर में। ...............तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?<br />
<br />
<br />
<hr align="left" noshade="noshade" size="1" width="610" />-harminder singh<br />
<hr align="left" noshade="noshade" size="3" width="610" />harminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com27tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-59037055644212389392010-06-17T12:01:00.002+05:302010-06-17T12:01:49.263+05:30क्रोध<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big><img alt="[jail+diary.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib6S-9vWF6FXhZ-dmG-dCuAscYnhyphenhyphenPTNI5NXEtRou1Uf_YkOF7VsYISVpWK9Wv4ySFZU8mK2iI74-L8DdIZisaYqhBQFt6XWRe_YWjwGJVzW0BvacKmR2tVb3JbG4pz2UmUdvKJRh9KwvO/s1600/jail+diary.jpg" /><br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
मुझे गुस्सा आता है तो मैं उसे शांत करने की कोशिश करता हूं। बहुत सी चीजें आसान नहीं हो सकतीं और हम उनसे अछूते भी नहीं रह पाते। वे हमारे साथ जुड़कर चलती हैं। मैं अकेला नहीं हूं।<br />
<br />
क्रोध किसी को भी सुकून नहीं पहुंचाता। कुछ लोगों के अंदर क्षमता होती है कि वह इसे सहन कर जायें। कुछ ऐसे होते हैं जिनकी मजबूरी बन जाता है गुस्सा पीना। कुछ ऐसे हैं जो अपने अंदर के उबाल को काबू नहीं कर पाते। इसका परिणाम बहुत बार उनके हित में नहीं होता। <br />
<br />
हम स्वयं को बदलने की कोशिश करते हैं, लेकिन कर नहीं पाते। मैंने क्रोध को शांत करने की कला को सादाब से सीखा। उसने मुझसे कहा था कि वह पहले काफी गुस्सेवाला था। अब वह खुद को उसके वश में नहीं करता। वह कहता है कि उसने प्रण किया है कि वह गुस्सा नहीं करेगा। उसका मानना है कि क्रोध इंसान को बेहतर जीवन जीने से रोकता है।<br />
<br />
हम इतना तो मानते हैं कि क्रोध हमारी बुद्धि को प्रभावित करता है। मैंने सादाब से कहा कि तुम इतने शांत कैसे हो सकते हो? वह केवल मुस्कराया। मैंने उसकी मुस्कान को ही उसका उत्तर मान लिया, मगर कुछ समय के लिए।<br />
<br />
हमें कभी-कभी कुछ लोगों पर इतना भरोसा हो जाता है कि हम उनकी प्रत्येक बात को सच मान लेते हैं। सादाब पर मैं बहुत अधिक भरोसा करने लगा हूं। इस घनिष्ठता का मतलब तलाशने की कोशिश करना मैं समय बर्बाद करना ही समझता हूं।<br />
<br />
अदृश्य डोर जो हमें जोड़े है वह और मजबूत हो रही है। जीवन मानो अब अधूरा उतना नहीं लगता। <br />
<br />
सादाब ने कहा कि वह शांत नहीं है। उसका हृदय उथलपुथल कर रहा है। पर उसे पता है कि वह दिमाग से ज्यादा, दिल से कम सोचने लगा है। दिल की धड़कन कभी बढ़ती है, तो कम होकर भी इंसान को परेशान करती है। उसने जीना सीख लिया क्योंकि हालातों से सामना करने की उसे आदत हो गयी। जीवन के सूनेपन को वह छिपा नहीं रहा, बल्कि सूनापन खुद ढकता जा रहा है। मैंने उससे कहा कि मैं ऐसा कर रहा हूं, पर कई बार निराश हो जाता हूं कि मेरी स्थिति बहुत कमजोर इंसान सी हो जाती है।<br />
<br />
गुस्सा आता है मुझे अपने पर। धिक्कार आती है। मन करता है कि बस.........। <br />
<br />
मैं कहना नहीं चाहता, क्या फायदा? मेरे अंदर ज्वाला की धधक शायद उतनी नहीं। ऊफान का दौर शांत भी तो हो जाता है।<br />
<br />
-to be contd....<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-8288758847545148862010-06-16T14:20:00.000+05:302010-06-16T14:20:00.029+05:30कभी मोम पिघला था यहां<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1EA225rVIrQLKQ9w9sgF71jhH5mR7xumodh1SQLcoYiKyPdUqLIZm6Mj-3ghZuyrPsAtxhG2BtEe923drk1TFFm2ddOcE1Wr4ZXTNz2U57bb8K9ncZQ6iV4yFHevdpgdHwONsfLTuOrjq/s1600/candle.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1EA225rVIrQLKQ9w9sgF71jhH5mR7xumodh1SQLcoYiKyPdUqLIZm6Mj-3ghZuyrPsAtxhG2BtEe923drk1TFFm2ddOcE1Wr4ZXTNz2U57bb8K9ncZQ6iV4yFHevdpgdHwONsfLTuOrjq/s320/candle.jpg" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
<br />
लौ जल रही हौले-हौले,<br />
बाती धधक रही हौले-हौले,<br />
<br />
पिघला मोम जैसे बहता पानी,<br />
दर्शा रहा एक लय,<br />
<br />
जम रहा इकट्ठा हो,<br />
जिंदगी की तरह,<br />
<br />
सुलगती बाती बची बाद में,<br />
ढह गयी वह भी मोम में,<br />
<br />
विलीन हुआ कुछ,<br />
अवशेष बाकी हैं सिर्फ,<br />
<br />
पहचान रहे हैं हम, कि<br />
कभी मोम पिघला था यहां।<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-77360842174950548542010-06-15T14:27:00.000+05:302010-06-15T14:27:23.944+05:30कल्याणी-एक प्रेम कहानी 2<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBg5yiIxXWPRDiuA3YpNcz5OeIrgHDo7puHNmPIaAV5XV-UC_hzIzIs5vYBp1Sffd41yzC9epFIF3OWiSEwrxoH4rn_qg0Ii0frt8SROul_QEYthVTy7IHLcRQkZ0unhyySTmWpOxvzfPV/s1600-h/kalyani-+a+love+story_100year.blogspot.com_vradhgram+.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="172" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBg5yiIxXWPRDiuA3YpNcz5OeIrgHDo7puHNmPIaAV5XV-UC_hzIzIs5vYBp1Sffd41yzC9epFIF3OWiSEwrxoH4rn_qg0Ii0frt8SROul_QEYthVTy7IHLcRQkZ0unhyySTmWpOxvzfPV/s400/kalyani-+a+love+story_100year.blogspot.com_vradhgram+.png" width="400" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
<br />
रात भर वह मेरी आंखों में भरी रही, एक ख्वाब की तरह। वह ख्वाब मुझे हकीकत लग रहा था। मुझे उस समय कई किस्म के अहसास हुए। उनमें मैंने खुद को उलझा पाया। भला एहसासों में भी कोई उलझता होगा, लेकिन मैं उनके ताने-बाने में कहीं खो गया था। यह खुद को भूलने के बराबर लगता था।<br />
<br />
सपनों की दुनिया मेरे लिए हमेशा अनोखी रही है। बचपन के सपने हैरान करते थे। आज भी वही होता है। फर्क इतना है कि तब मैं बच्चा था, आज बूढ़ा हूं। तब मैं डर कर जाग उठता था। मां से लिपट जाता। बाबूजी भी परेशान हो जाते। औलाद का प्रेम ऐसा ही होता है। मैं पसीने में नहा जाता। दिल की धड़कनें बढ़ जातीं। आज दिल तो है, लेकिन वह धड़कता उतना नहीं। शायद जब हम जिंदगी के आखिरी पायदान पर होते हैं तो धड़कने भी धीरे-धीरे सिमट रही होती हैं।<br />
<br />
मैं कल्याणी के सपनों में इतना खोया था कि सोना ही भूल गया। तभी अलार्म बज उठा। सुबह के चार बज चुके थे। पास मेज पर रखी घड़ी को मामूली झिड़क दिया। अंधेरे में हाथ उसपर लगा तो वह नीचे गिर गयी। अलार्म फिर बज उठा। <br />
<br />
‘ओह, तेरी.......।’ मैं खुद पर चिल्लाने को हुआ। <br />
<br />
कल्याणी कुछ समय के लिए मानो गायब हो गयी थी। मगर आंखों से सपना टूटा नहीं था। जारी हो गया फिर से वह सब जो मेरे हृदय की धड़कन को बढ़ा रहा था।<br />
<br />
मैं बिस्तर पर लेट गया। दृश्य तैरने लगा। मैं भी तैर रहा था। बड़ी-बड़ी आंखें मुझे देख शर्मा रही थीं। कभी पलकें खुलतीं, कभी बंद होतीं। बाल उड़कर बार-बार पलकों को ढक लेते। कल्याणी अपनी पतली उंगलियों से उन्हें हटाती। फिर दोहराती। फिर कहीं से हवा का झोंका आता, लटें बिखर जातीं। उसका चेहरा मुस्कराता रहता और होंठ खुलते, शायद कुछ कहने की तमन्ना की होगी। पढ़ने की कोशिश करता, अधर में रह जाता। अधरों की बनावट खूबसूरती लिये, समां को सुहाना बनाने को आतुर लग रही थी।<br />
<br />
एक नजर का प्रेम जबरदस्त तरीके से फूटा। फड़फड़ाहट शरीर में अजीब सिरहन लाने लगी। नसों में कुछ दौड़ने लगा। रक्त हमेशा बहता है। फिर वह क्या था? प्रेम की परिभाषा से मैं अनजान समझ रहा था स्वयं को। प्यार के बादलों में घिरने पर बरसात मीठी होती है। उमड़-घुमड़ जारी होने पर जगमगाहट फैल जाए तो बुराई नहीं। हृदय में बिजली कौंधी,....... चुपके से सरसराहट,........ मामूली झटका,........हल्की हरारत। .........सुकून लगा, पर चैन छिन गया।<br />
<br />
मैंने कल्याणी को देख खुद ही बोलना शुरु किया। <br />
<br />
मैंने कहा,‘‘तुम मेरी आंखों में बसी हो। तुम्हें कभी भूलना नहीं चाहूंगा,.............. क्योंकि तुम्हें एक बार पाकर कौन खोना चाहेगा।.........जबसे तुम्हें देखा है, मन में तरंगें बह रही हैं। खुशी का समां मुझे झुमा रहा है। सिर्फ तुम्हें पाने की तमन्ना है।...........चाहें कुछ हो, तुम्हें अपने से दूर नहीं करना चाहता।............ऐसा क्या है तुम में जो मुझे खींचता है।..........और मैं खिंचा चला आता हूं। क्या प्रेम की डोरी ऐसी होती है?’’<br />
<br />
‘‘तुम अलग हो, बहुत अलग। यकीन से कह सकता हूं कि तुमसा दूजा नहीं। मुझे तो ऐसा ही लग रहा है।..............यह मेरा हृदय ही जानता है कि वह तुम्हारी झलक पाने को कितना आतुर है। बस...............बस........सामने इसी तरह खड़ी रहो, मैं निहारता रहूं,..........सिर्फ निहारता रहूं। लगता है जैसे मैं तुम्हारा दास हो चुका। एक बार तुम्हें क्या देखा,........पूरा संसार बदल गया, मैं भी। जब दोबारा मिलोगी, तो न जाने क्या और बदलेगा। परिवर्तन के लिए मैं तैयार हूं।’’<br />
<br />
-contd........<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-78220373375603753172010-06-14T12:34:00.002+05:302010-06-14T12:34:53.095+05:30बदल गया बहुत कुछ<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big><img alt="[jail+diary.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib6S-9vWF6FXhZ-dmG-dCuAscYnhyphenhyphenPTNI5NXEtRou1Uf_YkOF7VsYISVpWK9Wv4ySFZU8mK2iI74-L8DdIZisaYqhBQFt6XWRe_YWjwGJVzW0BvacKmR2tVb3JbG4pz2UmUdvKJRh9KwvO/s1600/jail+diary.jpg" /><br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
जिस दिन न अधिक खुशी हो, न अधिक दुख वह मेरे लिए मिलाजुला है। वैसे आज कई मायने में मैं खुश था क्योंकि मुझे लगा कि सादाब की अम्मी और बहन उससे मिलने आयेंगे। वह लगभग पूरे दिन चुप बैठा रहा। उसकी आदत को देखकर मैं कभी-कभी नहीं कई बार हैरत में पड़ जाता हूं। वह मुझे अनोखा लगता है, पर वह उतना अजीब भी तो नहीं।<br />
<br />
मुस्कराने का मायना उसने मुझे बताया। वह शायद मुझे प्रभावित करता है। मैं उसके हौंसले की कद्र करता हूं। वह इतना थक कर भी जीवन से हारा नहीं। मैं यदि उसकी जगह होता तो कब का टुकड़े-टुकड़े हो गया होता। उसने ऐसा नहीं किया।<br />
<br />
मैं अब कई बार चहक उठता हूं। मुझे यह बुरा नहीं लगता। हां, पहले ऐसा लगता था। वक्त ने बहुत कुछ तब्दील कर दिया, खुद भी बदल गया। बीती बातें उतनी हृदय को चुभती नहीं। क्या यह सब सादाब की वजह से है? शायद ऐसा हो। <br />
<br />
जब से उससे मुलाकात हुई है, मैं पहले के कुछ नीरस तरीकों को छोड़ चुका. मैं चुप रहने को महत्व देता था, अब ऐसा नहीं है। हंसना तो दूर किसी और की मुस्कराहट को भी शत्रु समझता था। लोगों से दूर रहने की कोशिश करता था।<br />
<br />
आजकल मेरी सोच में परिवर्तन हो रहा है। मैं बदलता जा रहा हूं। दुनिया को खुशनुमा समझने की बात को मैं नकारता आया था, पर अब नहीं। <br />
<br />
मेरा संसार सलाखों के पीछे जरुर है, मैं उसे उसी जगह सुन्दर बनाना चाहता हूं। सादाब मुझे मिल गया है। फिक्र को गंभीरता से न लेने की आदत को मैं अपनाने की कोशिश कर रहा हूं।<br />
contd....<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-77605225531031322932010-06-13T10:22:00.002+05:302010-06-13T10:30:51.882+05:30.............क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkYEDLDTNWqeEOyHhSzkashDhi1dqhZ3-yNKLY9_ioyGN9Woys3OOJiypdPlvX0mZ5Vb-WCX2pLOWS-fUZY41o6EVrsoHUtP5FuKRUPZMmp8jBoKCvofdh6mmFNJO0mek1mi0vGYWjxycf/s1600/joy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a></div><br />
<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkYEDLDTNWqeEOyHhSzkashDhi1dqhZ3-yNKLY9_ioyGN9Woys3OOJiypdPlvX0mZ5Vb-WCX2pLOWS-fUZY41o6EVrsoHUtP5FuKRUPZMmp8jBoKCvofdh6mmFNJO0mek1mi0vGYWjxycf/s1600/joy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkYEDLDTNWqeEOyHhSzkashDhi1dqhZ3-yNKLY9_ioyGN9Woys3OOJiypdPlvX0mZ5Vb-WCX2pLOWS-fUZY41o6EVrsoHUtP5FuKRUPZMmp8jBoKCvofdh6mmFNJO0mek1mi0vGYWjxycf/s320/joy.jpg" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
राम कल बहुत गुस्से में था। उसने अंजलि को पता नहीं क्या-क्या कह दिया। उसने कहा:<br />
<br />
"एक आखिरी कमेंट सुनती जाओ अपने फ़्रेंड्स के बारे में। रियलेटी यह है कि तुम्हारा कोई अच्छा दोस्त है ही नहीं। दरअसल तुम्हारे में ऐसी कोई खासियत ही नहीं है जो कोई तुम्हारा दोस्त बन सके। जिस दिन तुमने ये जो थोड़ा बहुत पढ़ती हो बंद कर दिया- then you will be completely out from your friend circle. न तुम किसी के साथ एडजस्ट कर सकती हो और न कोई तुम्हारे साथ।<br />
<br />
तुम पहले भी अकेली थीं और अब भी अकेली हो........और अगर तुम ऐसी ही रहीं तो शायद पूरी जिंदगी अकेली ही रहो। जिस उम्र में तुम हो मैं उससे गुजर चुका हूं। रियलेटी को एक्सैप्ट करना सीखो.........वैसे रियलेटी उतनी बुरी भी नहीं है।<br />
<br />
मैं जानता हूं कि तुम्हें काफी बुरा लग रहा होगा। तुम्हें लगता है, मैं तुम्हारे बारे में बुरा सोच सकता हूं। कभी नहीं होगा ऐसा और न ऐसा कभी हो सकता है। तुम्हें एक न एक दिन सच्चाई को मानना ही होगा।<br />
<br />
............लेकिन................लेकिन दिल छोटा मत करो, क्योंकि दुनिया के किसी कोने में एक ऐसा शख्स है जो हमेशा तुम्हारे साथ है, और रहेगा, हमेशा।<br />
<br />
मेरे लिए तुम हमेशा ‘स्पेशल’ रहोगी, और मैं स्पेशल लोगों को दुखी नहीं देख सकता, कभी नहीं।<br />
<br />
प्लीज कभी दुखी मत होना,..............क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं।"<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-73241274106856014872010-06-12T11:45:00.002+05:302010-06-12T12:00:43.788+05:30एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7S2gJAvX5Hbas3A7edn0shcYrV_hQewXzKBhJ51OxCLSlbtF9g8W7P7VJxAqPBrNIPc0vYdugLzP91wI6gutMkvZDnLWdt0yBtEfbBhtAezdF6ZkSCLHf4n3CvIrjum97iBInfqC_GRpr/s1600/old+age_man.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a></div><br />
<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7S2gJAvX5Hbas3A7edn0shcYrV_hQewXzKBhJ51OxCLSlbtF9g8W7P7VJxAqPBrNIPc0vYdugLzP91wI6gutMkvZDnLWdt0yBtEfbBhtAezdF6ZkSCLHf4n3CvIrjum97iBInfqC_GRpr/s1600/old+age_man.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7S2gJAvX5Hbas3A7edn0shcYrV_hQewXzKBhJ51OxCLSlbtF9g8W7P7VJxAqPBrNIPc0vYdugLzP91wI6gutMkvZDnLWdt0yBtEfbBhtAezdF6ZkSCLHf4n3CvIrjum97iBInfqC_GRpr/s400/old+age_man.jpg" width="400" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
ये उम्मीद जो है न, बहुत अजीब चीज है। इसने मुझे जीने का हौंसला दिया है। ......मैं थका था जरुर कभी, लेकिन उम्मीद लगाता हूं कि एक दिन सब अच्छा होगा और.........और आज तक उम्मीद ही तो लगाये हैं मेरे जैसे इंसान। शायद उनके जीने की वजह ये ही है।<br />
<br />
मुझे मालूम है कि एक पल जीवन का कितना कठिन होता है इस उम्र में। मामूली जख्म भी काफी दर्द दे जाता है। पता नहीं क्यों दर्द को सहने की आदत सी जो पड़ गयी है। शायद यही बुढ़ापा होता है- सहना और सहते जाना।<br />
<br />
मैंने कभी नहीं चाहा कि किसी को कष्ट पहुंचे। सबसे प्रेम करता रहा जीवन भर और........और आज जब मैं अकेला हूं, कोई मेरे पास नहीं फटकता। ऐसा क्यों होता है? क्यों अपने वक्त के साथ पराये हो जाते हैं? क्यों कोई जर्जर काया वालों को नहीं पूछता? क्यों हर कोई बचने की कोशिश करता है? क्यों?.............इस क्यों का सवाल मुझे आजतक नहीं मिल सका।<br />
<br />
एक जिंदगी और हजार बातें। ठहर कर चलने की आदत। एक मु्ट्ठी और रेत के हजार कण। कैसा महसूस होता है जब रेत धीरे-धीरे हाथ से फिसल जाती है। रेशे-रेशे की चमक आज फीकी मालूम पड़ती है। जायके की मत पूछिये, वह तो रहा ही नहीं।<br />
<br />
.........लेकिन एक चीज अभी बाकी है, जो बाकी ही रहेगी। ........उम्मीद अभी बाकी है। मैं जी रहा हूं इसी उम्मीद के साथ कि एक दिन सब ठीक होगा।.........शायद बुढ़ापा भी एक दिन जी खोल कर हंसेगा........उस दिन न दिवाली होगी, न ईद, न होली..........बस जश्न होगा, अनगिनत रंगों की चमक का, लेकिन उसके लिए खुदा के घर का इंतजार है।<br />
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-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-37980392028084290062010-06-09T18:30:00.002+05:302010-06-09T18:50:30.194+05:30ऐसा क्या है जीवन में?मैं कभी-कभी हैरत में पड़ जाता हूं। ऐसा क्या है जीवन में जो उसे चलाता है? पता नहीं क्या है जिससे यह जीवन चलता है? .........पर हम खुश हैं कि जीवन चलता है।<br />
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<i><b><span style="color: #0b5394;">‘‘कुछ कहते नहीं बन रहा ..........वो क्या चीज है जो चलाती है जीवन को ..........’’</span></b></i>- <span style="color: #0b5394;">शारदा अरोरा</span> <span style="color: #0b5394;">जी</span> का यह कमेंट आज सुबह से ही मेरे जहन में घूम रहा है। <b><span style="color: #0b5394;"> <a href="http://100year.blogspot.com/2010/06/blog-post_04.html">कुछ नमी अभी बाकी है</a></span></b> इस शीर्षक पर शारदा जी ने यह कमेंट किया था। इसका अर्थ बहुत गहरा है और शायद उसे विस्तार देना इतना आसान नहीं। हां, कई तरह से हम उसपर विचार जरुर कर सकते हैं।<br />
<br />
जीवन की पहेली जितनी सुलझाने की कोशिश करते हैं, उतनी उलझती जाती है। मैं खुद को उलझा हुआ पाता हूं।<br />
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सवालों के ढेर पहले से ही इतने हैं कि उनका उत्तर देते ही नहीं बनता। जीवन हम जीते हैं जिसका सवाल हम हल नहीं कर पा रहे। यही तो जीवन का रहस्य है।<br />
<br />
एक उलझी हुई कहानी जो जारी है। बस इतना कह सकता हूं कि कुछ तो है ऐसा जिससे यह जीवन चलता है। <br />
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-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-43419946606473752722010-06-08T21:17:00.001+05:302010-06-08T21:19:39.038+05:30फंदे में बंदर<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj11ugDpd5Qg-ugGYo8kjYjvzIb-_XTxYlunDGt2ymulf7RvLPMrckKUUJNCl383EAe7-RtdlwqK_owdxTypSV0jSOFH9ORSLdYy1gJfk5MoqKm1WW8XvW8oKvMPXMKGI2NbLZhSvIBqT74/s1600/ghar+se+school.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj11ugDpd5Qg-ugGYo8kjYjvzIb-_XTxYlunDGt2ymulf7RvLPMrckKUUJNCl383EAe7-RtdlwqK_owdxTypSV0jSOFH9ORSLdYy1gJfk5MoqKm1WW8XvW8oKvMPXMKGI2NbLZhSvIBqT74/s320/ghar+se+school.png" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
गांव के प्राइमरी स्कूल में एक मास्टर साहब छुटिट्यों में बच्चों को पढ़ाते थे। लोग उन्हें दलपत मास्टर के नाम से पुकारते थे। उनका स्वभाव दूसरे शिक्षकों की तरह बिल्कुल नहीं था। उन्होंने आजतक किसी बच्चे पर हाथ नहीं उठाया था। गांव के सभी बच्चे और बड़े उनका बहुत सम्मान करते थे। दादी ने मुझसे कहा कि मैं जितने दिन गांव में हूं, उतने दिन उनसे कुछ पढ़ लूं। मैंने रघु से पूछा, उसने हां कर दिया।<br />
<br />
मास्टर जी से मेरी काफी पटने लगी। रघु की बहन गीता भी किताबें लेकर वहां पहुंच जाती। <br />
<br />
एक दिन बादल घिर आये और तेज बारिश शुरु हो गयी। मैंने रघु से कहा,‘‘शायद आज मास्टर जी स्कूल न पहुंचें। इसलिए हम आज पढ़ने नहीं जा रहे।’’<br />
<br />
मास्टर जी के पास एक पुरानी साईकिल थी जिससे वे स्कूल आते थें कच्चे रास्ते थे, बरसात में टूट-फूट जाते और उनमें पानी भर जाता, कीचड़ हो जाता।<br />
<br />
रघु कहां मानने वाला था। वह बोला,‘‘मैं स्कूल जा रहा हूं। तुम्हें आना है तो आओ।’’ उसने छाता सिर पर किया और चलने को हुआ। मुझे भी उसके साथ चलना पड़ा। वह गाना-गुनगुनाता आगे बढ़ रहा था। किताबों को हमने पोलीथिन की थैली में रखा था ताकि पानी उन्हें नुक्सान न पहुंचा सके।<br />
<br />
गाना पुरानी फिल्म का था। मैं भी उसके साथ शुरु हो गया। बोल थे,‘‘सुहाना सफर और ये मौसम..........।’’ <br />
<br />
तभी रघु ने मेरे कान में कहा,‘‘सामने देख।’’<br />
<br />
हम रुक गये। बरसात तेज होने लगी थी। पानी घुटनों तक आने को आतुर था।<br />
<br />
सामने जो नजारा था, उसे देखकर हमारी आंखें खुली रह गयीं।<br />
<br />
मैंने कहा,‘‘अरे! ये तो मास्टर दलपत हैं। इन्हें क्या हुआ?’’<br />
<br />
मास्टर साहब कीचड़ में साइकिल सहित गिरे थे। उनका चश्मा दूर जाकर गिरा। बिना चश्मे के उन्हें चमकता नहीं था। वे उसे तलाश कर रहे थे। हम दौड़कर उनके पास पहुंचे और चश्मा उन्हें पकड़ा दिया। चश्मा लगाकर उन्होंने ऊपर देखा और कहा,‘‘तुम इतनी बरसात में भी पढ़ने आये हो।’’<br />
<br />
‘‘जब आप हमें पढ़ाने के लिए अपनी परवाह नहीं करते। हम आपके शिष्य ठहरे।’’ रघु बोला।<br />
<br />
दलपत जी हमारे संग स्कूल आ गये। इतने में बारिश थम गयी। हमने उनके कपड़े हैंडपंप पर धुलवा दिये। मैं घर जाकर कुछ कपड़े ले आया। मास्टर जी ने उन्हें पहन लिया।<br />
<br />
सूरज चमकने लगा था। कपड़े धूप में सूख रहे थे कि तभी एक बंदर वहां कहीं से आ गया। मुझे डर था कहीं वह कपड़ों को उठा न ले जाए। हुआ वही जिसका डर था। बंदर कपड़े उठाकर ले गया। वह उछलकर शहतूत के पेड़ पर चढ़ गया। रघु ने काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं उतरा। उल्टे गुस्से में उसने मास्टर जी के कपड़े अपने पैने दांतों से फाड़ने शुरु कर दिए। मास्टर जी चिल्लाते रह गए, पर बंदर पर कुछ असर न हुआ। धीरे-धीरे कपड़ों के फटे टुकड़े नीचे गिरते रहे।<br />
<br />
इतने में प्रीतम किताबें लेकर पढ़ने आ गया। उसके पास गुलेल थी। रघु ने उससे घर जाकर गुलेल लाने को कहा। बंदर अभी तक पेड़ पर चढ़ा था। मुझे गुस्सा आ रहा था। मैंने रघु से कहा,‘‘इसे छोड़ना मत रघु। इस पेड़ से बाकी पेड़ बहुत दूरी पर हैं। बंदर उतनी लंबी छलांग लगा नहीं सकता और नीचे हम खड़े हैं, आ नहीं सकता। फंस गया बच्चू, इसकी खैर नहीं।’’ मैं पूरे ताव में आ चुका था।<br />
<br />
जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली। प्रीतम अभी आया नहीं था। रघु ने रस्सी का एक फंदा बना लिया। वह बिना डरे पेड़ पर चढ़ गया। फंदा उसके हाथ में था। बंदर उसे घुड़की देकर नीचे गिराने की जुगत में था। पर रघु ने पेड़ से एक टहनी तोड़ उसे डराना चाहा। वह उछलकर ऊपर शाखाओं की तरफ कूदा। तभी प्रीतम गुलेल ले आया। रघु बोला,‘‘अभी इसकी जरुरत नहीं है। देखते जाओ मैं क्या करता हूं।’’<br />
<br />
रघु ने रस्सी का फंदा ऊपर शाखाओं में उछाला। फंदा टहनियों में उलझ गया। रघु ने फिर कोशिश की। बंदर जैसे ही फंदे से बचने को उछला उसका एक पैर फंदे में फंस गया। रघु ने रस्सी को खींचा, तो फंदा पैर में कसता चला गया। रस्सी को नीचे गिरा दिया गया और रघु पेड़ से उतर गया।<br />
<br />
फिर रघु बोला,‘‘अब होगा कमाल। बंदर होगा बेहाल।’’<br />
<br />
रस्सी काफी लंबी थी इसलिए उसका छोर हैंडपंप से बांध दिया गया। रघु ने सबको छिपने को कहा। किसी को आसपास न पाकर बंदर पेड़ से उतर गया। पर यह क्या फंदा उसके पैर में था। वह जितना जोर लगाता, फंदा कसता जाता। चूंकि रस्सी हैंडपंप से बंधी थी, इस कारण बंदर उसके चारों ओर गोल-गोल चक्कर काटने लगा। उधर रस्सी हैंडपंप से लिपटती जा रही थी और बंदर उसके करीब आता जा रहा था। हम सब उस दृश्य को देखकर ठाठे मार हंस रहे थे। <br />
<br />
रघु ने प्रीतम से कहा,‘‘ला गुलेल। खेल शुरु करते हैं।’’<br />
<br />
रघु ने गुलेल से बंदर पर निशाना लगाना शुरु किया। जैसे ही गुलेल का कंकड़ बंदर को लगता, वह उछल जाता।<br />
<br />
‘‘मार निशाना।’’ मैंने कहा। ‘‘ये भी क्या याद करेगा।’’<br />
<br />
‘‘जिंदगी भर इसे यह सजा याद रहेगी, भूल नहीं पायेगा।’’ प्रीतम उत्साहित होकर बोला।<br />
<br />
बंदर पर गुलेल से चोटों का प्रहार जारी था। इस घटना से बंदर-बुद्धि का पता चल गया था। उसने अपने हाथों से बिल्कुल कोशिश नहीं कि फंदे को जरा-सा भी खोलने की। सिर्फ पैर से उसे खींच कर कसता रहा।<br />
<br />
इस उछलकूद का आनंद ले ही रहे थे कि तीन बंदर वहां आ धमके। वे साथी बंदर के आसपास शोर करने लगे। तभी बंदरों का समूह आ गया। मास्टर जी शायद स्थिति को भांप गये थे। वे हमें लेकर स्कूल की कक्षा में छिप गये। दरवाजा अंदर से लगाकर हम खिड़की से सारा दृश्य देखने लगे। बंदर रस्सी को खींचने की कोशिश करते, कुछ उछलकर चीख मचाते। <br />
<br />
मैंने खिड़की से बाहर हाथ निकाल रखा था कि अचानक कहीं से मेरा हाथ किसी ने जोर से खींचा। मेरी चीख निकल गयी। सामने एक मोटा बंदर था जिसकी शक्ल देखकर मेरे प्राण निकल गये। वह मेरा हाथ पकड़कर खींचने लगा जैसे मुझसे रस्सी खोलने को कह रहा हो। तभी रघु ने गुलेल से उसके सिर पर निशाना मारा। बंदर ने मेरा हाथ छोड़ दिया और वह चीं-चीं करता भाग गया। मैंने चैन की सांस ली।<br />
<br />
करीब एक घंटा बीत जाने के बाद सभी बंदर अपने बंधे साथी को छोड़कर वहां से चले गये। मास्टर जी ने कहा,‘‘बहुत हो चुका। बेचारा काफी दुखी है। रघु जाओ उसे खोल दो।’’<br />
<br />
रघु ने बंदर को आजाद कर दिया। रस्सी से खुलते ही वह सरपट दौड़ा।<br />
<br />
गांव में जब यह बात पता लगी तो सभी हंसते-हंसते लोटपोट हो गए। गीता तो कुरसी से पीछे पलट गयी। उसकी बांह में फिर मोच आ गयी, लेकिन अबकी बार मामूली थी।<br />
<br />
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-harminder singh<br />
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<span style="color: #073763;">-अगले कहानी: <b>चाय में मक्खी</b></span>harminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-13805663311495707502010-06-08T10:28:00.000+05:302010-06-08T10:28:40.254+05:30इंसान और भगवान<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big><img alt="[jail+diary.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib6S-9vWF6FXhZ-dmG-dCuAscYnhyphenhyphenPTNI5NXEtRou1Uf_YkOF7VsYISVpWK9Wv4ySFZU8mK2iI74-L8DdIZisaYqhBQFt6XWRe_YWjwGJVzW0BvacKmR2tVb3JbG4pz2UmUdvKJRh9KwvO/s1600/jail+diary.jpg" /><br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
<br />
इंसान झंझावातों से बचना चाहता है। पर वह ऐसा कर नहीं पाता क्योंकि वह इंसान है, भगवान नहीं। भगवान को हम पर दया नहीं आती या हमारा उसपर से भरोसा उठ गया है। खैर.......जो भी तो मैं उसे भूलना नहीं चाहता। मेरा भरोसा कम नहीं हो सकता। मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है कि मेरा उससे नाता है। वैसे हम सबका उससे जुड़ाव है। जब कोई साथ नहीं होता, तब वह होता है। हर पल उसकी हमपर निगाह रहती है। वह हमारा कितना ख्याल रखता है। हम हैं कि उसका नाम लेने से बचने की कोशिश करते हैं। पर वह बुरा नहीं मानता। कितना भला है वह, बिल्कुल उसे बुरा नहीं लगता, चाहें कोई उसके बारे में किसी तरह की भी सोच क्यों न रखता हो। <br />
<br />
मैं सुबह-शाम भगवान को याद करता हूं। मैं उससे सबकी शांति की दुआ मांगता हूं। मैं अपने परिवार, साथियों और विरोधियों के लिए भी सब ठीक होने की ईश्वर से फरमाईश करता हूं। अपने लिए कहता हूं कि मैं जल्द अपने परिवार, बच्चों को देख सकूं। ईश्वर मुझे शक्ति प्रदान करे कि मैं हालातों के हाथों मजबूर होने के बजाय उनसे कड़ा मुकाबला करुं बिना हताश हुए।<br />
<br />
मांगने को हम बहुत भगवान से मांग सकते हैं। उसके दर पर देर हैं, अंधेर नहीं। यह हम अच्छी तरह जानते हैं। उसकी चौखट हर जगह है। वहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। वह किसी भी समय अपनी झोली से हमारी गोद भर सकता है। सच्चे अर्थों में वह महान है। बिना उसकी मर्जी के एक पत्ता तक हिलता नहीं- यह भी हम कहते हैं। उसकी ताकत से इंसान अंजान नहीं है, पर वह अपनी शक्ति का बेमतलब परिचय देता रहता है। यहीं से वह भगवान की नजरों में बहुत छोटा सा बन जाता है।<br />
<br />
contd...<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-50644309622041054552010-06-07T13:27:00.000+05:302010-06-07T13:27:24.851+05:30कहानी की शुरुआत फिर होगीकहानी की शुरुआत होती है। .......और जल्द ही वह सिमट भी जाती है। कुछ लोग मिल जाते हैं और कम समय में हमारे लिए ‘स्पेशल’ भी हो जाते हैं। फिर कहानी मोड़ लेती है क्योंकि कुछ नये लोग उसमें दाखिल हो जाते हैं। फिर कहा जाता है-‘‘यह कहानी ही तो थी। ऐसी अनोखी, जहां से शुरु, वहीं खत्म हो गयी।’’<br />
<br />
अब उम्मीद है कि कुछ नया होगा। नये पात्रों का उदय होगा। पुरानी बातें शायद फिर न दोहराई जाएं क्योंकि आज उनका महत्व नहीं रहेगा। उन खुश्नुमा पलों की शायद याद आये, कभी जब दो अनजान लोग मिलकर हंसे थे एक साथ। आज दरार में फासला इतना बढ़ चुका कि नजरें चुराने का मन करता है।<br />
<br />
कुछ कुंठाएं पता नहीं कैसे विकसित हो गयीं। मन को पक्का करने की कोशिशें जारी हैं। ......लेकिन मन कहां मानने वाला है।.......फिर से भावनाओं में बहना चाहता है। उस ‘स्पेशल’ इंसान से ढेर सारी बातें करना चाहता है। मगर वह रुक जाता है यही सोचकर कि कहानी को यहीं विराम दिया जाए।<br />
<br />
अब नये सवेरे की तलाश है जब फिर से किसी के लिए कोई ‘स्पेशल’ होगा। पुरानी गलतियों से सबक जो हासिल हुआ है उसका पालन किया जायेगा। .......लेकिन जो एक बार ‘अहम’ हो गया, इतना आसान नहीं उससे दूर जाना। फिर क्या इंसान पुरानी कहानी को संवारने की कोशिश करेगा। शायद हां.......पर वह एक बार सोचेगा कि काफी देर हो चुकी। उन पलों को सिर्फ यादें ताजा रखेंगी।<br />
<br />
काश! ऐसा न होता। हमसे कोई न छूटता। लेकिन परिस्थितियां हमारे बस में नहीं होतीं। टूटकर बहुत कुछ बिखर गया, अब एहसास होता है। टुकड़े बिखरे जरुर हैं लेकिन उस ‘स्पेशल’ इंसान का चेहरा उनमें अभी भी वैसा ही चमक रहा है, जगमगाता हुआ, हंसता हुआ।<br />
<br />
कल कुछ था, आज कुछ। सच मानो, वक्त ही ऐसा था। दूर हो गया कोई किसी से, बिना बोले, बिना कहे, फिर से न मिलने के वादे के साथ।<br />
<br />
उम्मीद है वह खुश रहे हमेशा। इसी तरह चहकता रहे सदा। <br />
<br />
दुनिया के किसी कोने में कोई शख्स ऐसा भी है जो मुस्करा कर उस ‘स्पेशल’ इंसान से कहेगा-‘‘मैं खुश हूं, क्योंकि तुम खुश हो।’’<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-49918945613828328802010-06-06T18:45:00.000+05:302010-06-06T18:45:21.932+05:30अपनेपन की तलाश<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big><img alt="[jail+diary.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib6S-9vWF6FXhZ-dmG-dCuAscYnhyphenhyphenPTNI5NXEtRou1Uf_YkOF7VsYISVpWK9Wv4ySFZU8mK2iI74-L8DdIZisaYqhBQFt6XWRe_YWjwGJVzW0BvacKmR2tVb3JbG4pz2UmUdvKJRh9KwvO/s1600/jail+diary.jpg" /><br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
मेरी कहानी बहुत पहले शुरु हुई थी। उसमें मेरा अनुभव है जिसे शब्दों के धागों से बांधकर मैंने कोरे पन्नों पर उकेरा है। मेरे साथ इस सफर में कई लोग जुड़े, मगर अब्दुल और सादाब से मुझे बेहद लगाव है। अब्दुल तो कब का चला गया, सादाब पता नहीं कितने दिन और मेरे साथ रहेगा। उसकी मां से मैं मिलना चाहता हूं। मुझे काफी अच्छा लगेगा।<br />
<br />
जब हम दुनिया से दूर होते हैं, तब हमें अपनेपन की तलाश रहती है। कुछ लोग इस बीच ऐसे ही मिल जाते हैं। उनसे ढेर सारी बातें होती हैं। बातें इतनी की वक्त कब गुजर गया पता ही नहीं चलता। उनमें अपनापन ढूंढने की जरुरत महसूस नहीं होती क्योंकि हम उन्हें अपना पहले ही मान चुके होते हैं। उनकी एक पल की मुस्कराहट जानें कितने जनमों की थकान दूर कर देती है। उनकी मुस्कराहट हमारे मन को हरा कर जाती है। उनकी एक मुस्कराहट हमारी ऊर्जा को कई गुना बढ़ा जाती है। उनकी हल्की मुस्कराहट जीवन जीने का तरीका बदल जाती है। उनकी मुस्कराहट हमें सुकून पहुंचाती है। <br />
<br />
हमारी दुनिया बदल जाती है और हम अलग संसार के मीठे पलों में जीना शुरु कर देते हैं। हम उन लोगों को अपना मान कर उन्हें अपना हाल सुनाते हैं। हम विश्वास करने लग जाते हैं कि हमारी दुनिया का वे भी एक हिस्सा हैं। उनकी जिंदगी के उतार-चढ़ावों को महसूस करते हैं। उनके गमों की झोली का भार हम उन्हें बांटकर कम कर लेते हैं। <br />
<br />
जीने का मतलब समझ आने लगता है। ऐसा बहुत कुछ हमारे मन को लगता है जिससे हम एक तरह की संतुष्टि का अनुभव करते हैं। दिल की बातों को उनसे छिपाने का साहस नहीं होता। लगभग विचारों के एक समागम का प्रारंभ हो रहा होता है जिससे दो अजनबियों के बीच की दूरियां सिमट रही होती हैं। हम अनजान होकर भी अनजान नहीं होते। इससे वास्ता हमारे जीवन को है। तन्हाईयों को कम कर वक्त में कई पल की खुशियां खालीपन को भी सिमेती हैं। अपनापन क्या होता है यह तब पता लगता है। अपनों का सुख कैसा होता है, इसका एहसास भी तभी होता है।<br />
<br />
मुझे अपने नहीं मिले क्योंकि मैं एक वीरान, नीरस और उधड़े हुए संसार में रहने वाला एक कैदी हूं, जिसे लोग हत्यारा कहते हैं। यादों का बसेरा धीरे-धीरे बिखर रहा है जिसके तिनके इधर-उधर छिटक कर टूटे फर्श पर फैल गये हैं। स्मृतियों का मौसम पतझड़ में बदल गया है। उनका धुंधलापन समय की देन है। समय की ताकत अद~भुत है। कितना संभल कर इंसान क्यों न चले समय का मामूली थपेड़ा उसे हिला कर रख देता है।<br />
<br />
contd....<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-90707818780479525782010-06-05T19:40:00.000+05:302010-06-05T19:40:52.436+05:30दूसरों का साथ<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big> <img alt="[boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhO7kyU7dWGQ84tGAut4OTFTyDvWlglz5fNlwlt1tXR7xtAIvUCz0o_AqfN_fJzX-tOHZY51TdFPGjfPFCn8DeYR9kpP0y2opZfRD_jfLLqYzFJvBtIaivtZLIO8CNBC8Au-j-CAUe24_QI/s1600/boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg" /> <br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
मैंने बूढ़ी काकी से पूछा,‘‘हमें दूसरों की जरुरत क्यों पड़ती है?’’<br />
<br />
काकी बोली,‘‘देखने में सवाल कितना सरल है। उत्तर तलाशने की जरुरत है जो उतना सरल नहीं। कुंए का तल छूने वाले कम होते हैं जबकि पानी कोई भी पी सकता है। मैंने हमेशा गहराई से विचार किया है।’’<br />
<br />
कुछ समय बाद काकी ने कहा,‘‘हौंसला देते हैं हमें दूसरे। सहारा देते हैं हमें दूसरे। ........और जीवन जुड़कर जिया जाता है, न कि अकेले। अकेले रहकर नीरसता की बाहों में सिमटने से बेहतर है, लोगों के बीच रहना। हम नीरस क्यों रहें? अकेले क्यों रहें? अब जब कोई साथ न हो तो खुद से ही दोस्ती कर लेनी चाहिए। शायद कुछ लाभ मिले। मगर जीवन कहता है कि जब लोग आसपास हैं तो उनके साथ जिया जाये।’’<br />
<br />
‘‘मैं आज अकेली हूं। कल ऐसा नहीं था। अपने माता-पिता के घर से विदाई के बाद तुम्हारे काका और मेरा साथ था। एक परिवार से दूसरे परिवार का सफर नई जिंदगी की शुरुआत थी। अब मैं अकेली हूं, लेकिन तुमसे बातें कर शायद खालीपन को दूर करने की कोशिश करती हूं।’’<br />
<br />
‘‘इंसान मुस्कराते हुए अच्छे लगते हैं। तुम्हारे साथ मैं मुस्करा सकती हूं चाहें समय कम ही सही। मुझे काफी हौंसला मिला क्योंकि मैं इस उम्र के आखिरी पड़ाव में बिल्कुल निराश हो गयी थी। बूढ़ों को समझते कम लोग हैं, तुमने समझा। बूढ़ों से दूर होते हैं सब, तुम नहीं हुए। हमारे जैसों के लिए यही काफी है कि कोई दो शब्द कहता है, हम भी कहते हैं। कोई हमारी सुनता है, हम उसकी सुनते हैं। यह इंसानी रिश्ते की व्याख्या स्वत: ही कर देता है।’’<br />
<br />
‘‘बोझ और तसल्ली दोनों जीवन में होते हैं। बोझ कम करने या खत्म होने पर तसल्ली का अहसास होता है। इसका कारण और निवारण लोग ही हैं। इंसान को भगवान ने अकेले जीवन व्यतीत करने के लिए नहीं कहा। उसे लोगों के बीच रहकर जिंदगी का स्वाद मिलता है। रुखे हो जाते हैं अकेलेपन में लोग। दुनियादारी यही कहती है:<br />
<br />
"बिता लो जीवन पूरा,<br />
रह न जाए कोई बात अधूरी,<br />
सिमट न जाएं हम खुद में,<br />
इसलिए साथ है जरुरी’’<br />
<br />
‘‘तुम जानते हो कि अपनों का अपनापन हृदय को कितनी तसल्ली देता है। वे अपने ही होते हैं जो हर पल हमारा हाथ थामे रहते हैं। वे जब भी हमारे पास हैं, हमारे साथ हैं जब लड़खड़ाते हैं हम। गिरते हैं तो सहारा भी अपने ही बनते हैं।’’ काकी ने कहा।<br />
<br />
मैंने सोचा कि इंसान इंसान बिना निर्जन है। वैसे ही जैसे बिन पत्तों के पेड़। हमें ठूंठ नहीं बनना जो खड़ा तो सीधा है, पर वह जीवन के सुनहरेपन की वादियों के मोड़ों से नहीं गुजरा। <br />
<br />
एक पीड़ा जो अंतहीन है उसका असर कम होना चाहिए ताकि जीवन उपहास न करे। मैला जीवन किसने बताया। लोगों की हंसी इसे साफ कर देगी और उनका साथ भी। दुख होंगे कम। आंख होगी नम। यह नमी हर्ष की होगी।<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-79795640273491145742010-06-04T18:08:00.001+05:302010-06-04T18:15:36.639+05:30कुछ नमी अभी बाकी हैउस ठूंठ को मैं देख रहा हूं। वह मेरे सामने है। उसकी काया मेरी तरह है। फर्क इतना है कि वह जीवन से हार गया, मेरी जंग जारी है।<br />
<br />
पता है पहले वह हरा-भरा था। चिड़ियां चहचहाती थीं उसपर। कितना आंनद था। कितना सुहानापन था।<br />
<br />
आज वह सूना है। कोई पास नहीं, लेकिन देखो न फिर भी वह खड़ा है। यह जीवन की दास्तान है- कभी शुरु हुई थी, अब खत्म हो रही है।<br />
<br />
रुखापन सिमटा हुआ मेरे साथ चल रहा है। विवशता का आदि होना पड़ता है। समय ही ऐसा है।<br />
<br />
अगर कोई चौराहा है, तो सभी रास्ते एक से हैं। वही वीरान राहे हैं जहां हमेशा सूखी हरियाली शरण लिए रहती है। एहसास होता है कि कुछ नमी अभी बाकी है।<br />
<br />
<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-34246486774897727752010-06-03T12:11:00.000+05:302010-06-03T12:11:56.921+05:30अपनेपन की तलाशवरुण के दादा अपने पोते को बहुत चाहते हैं। वे उसके पास कुछ पल बिताने की इच्छा रखते हैं। पोता दादा की भावनाओं की कद्र नहीं करता क्योंकि वह बुढ़ापे के बहते प्रेम को आंक नहीं सकता।<br />
<br />
वरुण के माता-पिता नौकरी करते हैं। उनके पास समय नहीं। दोनों सुबह जाकर देर रात घर लौटते हैं। तब तक वरुण सो चुका होता है। उसकी उम्र यही कोई 14-15 साल है। वह सुबह स्कूल जाता है। लौटने के बाद ट्यूशन। फिर शाम को दोस्तों संग थोड़ा समय बिताता है। उसके बाद पढ़ाई-लिखाई कर जल्दी सो जाता है। तभी पढ़ाई में वह औसत है।<br />
<br />
बेचारे दादा जी घर में इधर से उधर टहलते रहते हैं। <br />
<br />
रविवार के दिन पूरा परिवार साथ होता है। लेकिन उस दिन वरुण को मम्मी-पापा कार से कहीं घुमाने ले जाते हैं। मां कहती है वरुण से,‘‘बेटा कहां जाना चाहोगे।’’ वरुण के दादाजी से कोई कुछ नहीं कहता। वे रविवार को भी अकेले रह जाते हैं।<br />
<br />
शायद वे एक ऊबी हुई वस्तु की तरह हो चुके हैं जिसे कोई पसंद नहीं करता। वरुण मौल में घूमता है। ढेर सारी शापिंग होती है। खुशियों के सामान समेटे जाते हैं। घर में दादा जी मायूसी में लिपटे बाट जोह रहे होते हैं।<br />
<br />
यह घर हर सुख-सुविधा से भरा है। दा्दा जी बच्चों से खुश हैं। बच्चे उन्हें दुखी नहीं करते। जिस चीज की जरुरत पड़ती है, उपलब्ध हो जाती है। अभी कुछ दिन पहले उनकी आंखें चैक करवाई गईं। मामूली खांसी होने पर डाक्टर के पास ले जाते हैं।<br />
<br />
‘‘कमी किस बात की है, सब कुछ तो है आपके पास।’’ मैंने उनसे पूछा।<br />
<br />
उनका उत्तर था,‘‘बेटा, बच्चे इतने करीब रहकर भी, कितने दूर हैं।’’ यह कहकर उनके आंसु निकल आये।<br />
<br />
मैंने उनका हाथ थामा और उन्हें भावनात्मक तसल्ली देने की कोशिश की। उन्होंने मेरी तरफ देखा। हल्की मुस्कान थी चेहरे के साथ आंखों में, क्योंकि कोई था उनके साथ, जो अपना न सही, पर पराया होते हुए भी अपना लग रहा था।<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-20268023814983991222010-05-29T19:13:00.000+05:302010-05-29T19:13:45.168+05:30सीधी बात नो बकवासपूरी तरह तो याद नहीं कि जैस्सी जी ने हमारी क्लास कब ज्वाइन की थी। जब वे हमारी क्लास में पहली बार आईं थीं तो हम ज्यादातर बच्चों ने उन्हें अजीब समझा था। वे दक्षिण भारतीय पृष्ठभूमि से नाता रखती हैं। साइंस की क्लास में उनका घंटा शुरु होते ही उतनी फुर्ती से आना कई बार आगे बैठे लोगों का बैंड बजा देता था। मेरा पाला वैसे उनसे कम ही पड़ा। वैसे भी मेरा नेचर कुछ शर्मीला था। मैं शायद टीचरों से बचने में ही समझदारी समझता था। क्या पता कब कौन सा सवाल दाग दें और आपसे न बात बने, न सवाल उचरे। मतलब रोटी गले में ही अटकी रह जाये। फिर पानी पीने को अंधों की तरह ग्लास ढूंढते फिरो।<br />
<br />
जब जैस्सी जी का घंटा आता तो मैं थोड़ा बेआराम महसूस करता। पता नहीं स्टूडेंट्स के साथ ऐसा क्यों होता है? टीचर के सामने चूहे और बाद में शेर। वैसे मुझे न ही गुर्राना आता था और न ही दुम दबा कर भाग जाना। और हां,...न ही मैं अपने समय में खरगोश हुआ करता था। वैसे मेरे कुछ साथी खुद को चीता समझते थे, पर बाद में वे भी भीगी बिल्ली बन गये थे। जैस्सी जी क्लास में प्रवेश बाद में करतीं सवाल का प्रहार पहले शुरु हो जाता। मेरे कुछ साथी कलम या पैंसिल गिराकर छिपने की असफल कोशिश करते। क्योंकि टीचर की निगाह से वे बच नहीं पाते थे। एक टीचर के सामने सारे बच्चे शायद चूहे की तरह ही होते हैं, जिन्हें एक कुर्सियों और मेजों वाले शानदार फर्श वाले बिल में कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है। लेकिन ऐसा मुझे कभी लगा नहीं। आज जब मैं पुराने दिनों को याद करता हूं तो पाता हूं कि वाकई वे दिन शानदार थे। शिक्षकों की एक-एक बात आज बिल्कुल साफ हो रही है। शायद वे हमारे भविष्य के लिए हमें बिल में बंद किये थे। वैसे बिल में पंखे भी लगे थे। अरे हां...खिड़िकयां तो मैं भूल ही गया। लेकिन अगर किसी ने खिड़की का कांच जानबूझकर या धोखे में तोड़ दिया तो जुर्माना देने के लिए प्रिसिंपल तैयार हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई जानबूझकर खिड़की का कांच तोड़ेगा।<br />
<br />
एक बात बहुत महत्व रखती है कि आप खुद पर कितना भरोसा करते हैं। हम कहते हैं कि आत्मविश्वास भी कोई चीज होती है। जैस्सी जी में वह आज भी उतना ही बरकरार है। मुझे उनके विषय में सुनने को मिल जाता है। वे उस दिन मेरे पास से मुस्कराते हुए गुजरी थीं। कमाल है न कि हम कई बार ऐसे हो जाते हैं कि पता ही चलता कि कहां हैं? इतने सालों बाद मुलाकात करने जा रहे हैं उन लोगों से जिनसे आपने जिंदगी के पायदान पर चलना सीखा। उनके सामने आने पर आप उनसे चंद शब्द नहीं कह पाये। क्या मुस्कराकर आप उनका उधार चुकता कर सकते हैं? शायद नहीं, लेकिन उस समय मैं शायद खुद को कुछ ज्यादा ही भावुक कर बैठा था। <br />
<br />
कैमिस्ट्री मुझे उतनी बेहतर कभी नहीं लगी। मगर जैस्सी जी ने हमारी क्लास में बच्चों में एक उत्साह जगाने की कोशिश की। एक तरह की एनर्जी का संचार करने की कोशिश की गयी। कुछ बातें जो उन्होंने बताई थीं शायद ही कोई मेरा साथी भूला होगा। कैमिकल्स से दोस्ती करना हमें आ ही गया था। एक बात ओर मेरे दसवीं में सांइस में सर्वाधिक नंबर आये थे। बायोलोजी के एक्सपैरिमेंट भी उन्होंने कई कराये थे। <br />
<br />
एक बार की बात है हमें बायो लैब ले जाया गया। हमें आनियन पील (प्याज की छील) को माइक्रोस्कोप से देखना था। जैस्सी जी ने पहले हमें खुद करके दिखाया कि किस तरह माइक्रोस्कोप को सैट किया जाता है, बगैरह, बगैरह। स्लाइड को किस तरह तैयार किया जाता है, यह भी हमने सीखा। उन्होंने साथ में यह भी हिदायत दी कि स्लाइड को तोड़ मत देना। मैं खासकर काफी उत्साहित था। मेरे तमन्ना थी कि जो मैंने किताबों में देखा है, उसे आज वास्तव में देखने का मौका मिल रहा था। था न अजीब अहसास। हमने स्लाइड तैयार कर ली थी। माइक्रोस्कोप से एक्सपैरिमेंट को किया भी। मेरे पास के एक लड़के ने पता नहीं कैसे अपनी स्लाइड चटका दी और धोखे से मेरी जगह रख दी। मुझे सब पता था पर यह वह जानता था या मैं या फिर भगवान जिसके किसी अदालत में कभी बयान नहीं लिये गये। मैं मन की मन डर रहा था कि अगर जैस्सी जी को पता लग गया तो मैं तो गया काम से। उन्होंने शायद ही मुझे कभी डांटा था। मगर डर तो सबको लगता है। यहां उस समय माउंटन ड्यू नहीं थी जो कह सकता कि डर से मत डरो, डर के आगे जीत है। <br />
<br />
घबराहट सिमटने का नाम नहीं ले रही थी। तभी जैस्सी जी की नजर चटकी हुई स्लाइड पर पड़ गयी। उन्हें लगा कि मैंने स्लाइड को तोड़ दिया। उन्होंने यह कहा,‘हरमिन्दर यह क्या कर दिया?’। आसपास के सभी बच्चे मेरी तरफ देख रहे थे। जब नजरें घूरती हैं भरी महफिल में तो कैसा एहसास होता है, यह हम जानते हैं। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। आज भी मेरे वह बात याद है और शायद जिंदगी भर याद रहे। शुभांगी और सुमित को मैंने यह एक बार बताया भी था। बाद में क्लास में आकर भी उन्होंने उस बात को दोहराया कि बच्चे अपना एक्सपैरिमेंट ढंग से नहीं कर सकते। ऐसा आगे से नहीं हो। मैं क्या कह सकता था? मैंने उनसे कहा भी कि मैंने ऐसा नहीं किया। कोई गवाह भी तो नहीं था। अब भगवान को तो उनके सामने पेश नहीं किया जा सकता था। जो देखा था, वह दिख गया था। मेरा पूरा दिन खराब ही गया होगा और क्या? अब मैं उनसे कभी मिलूंगा तो इस बात को जरुर बताउंगा कि आपने मुझे धोखे में ऐसा कह दिया था। उस समय तो बुरा लगा मगर आज समझ आता है कि उनका कहना सही था। जो उन्होंने देखा कहा और उनकी जिम्मेदारी बनती थी लैब के रखरखाव की। आगे उन्हें जबाव देना था, हमें नहीं।<br />
<br />
वक्त के साथ काफी कुछ धुंधला पड़ जाता है। लेकिन कुछ लोग फिर भी उसी तरह कभी न कभी याद आ ही जाते हैं। हम उनसे बहुत कुछ सीखे थे और उनकी सीखें शायद ही कभी भूल पायें। जैस्सी जी से आप कुछ सीख सकते हैं तो वह बिना थके पढ़ना। उनमें समझाने की एक अलग तरह की खूबी है जिसे मैं समझता हूं कि विज्ञान के शिक्षकों में होना बहुत जरुरी है। मुझे पता है कि हम उनकी क्लास में कभी बोर नहीं हुए, हां कई बार सहम जरुर गये। वैसे वे आपको डराती नहीं, आप खुद घबरा जाते हैं। भई उनके मुताबिक जो सही है, वह तो सही ही है। कुछ खरी बातें कह देंगी, लेकिन उनसे पढ़ाई बेहतर ही होगी क्योंकि वे बातें आपके भले के लिए ही होंगी। उन्होंने मुझे काफी प्रभावित किया। यही कारण था कि कुछ शिक्षकों को मैं कभी भूल नहीं सकता। वे किसी न किसी तरह जेहन में रहेंगे ही। <br />
<br />
मैं चाहता हूं कि एक दिन उनकी क्लास में बैठकर फिर से पुराने दिनों को याद करुं। शायद इसी बहाने कुछ पहले जैसा हो जाये। स्कूल के दिन तो स्कूल के ही होते हैं। पता नहीं क्यों जब हम उन्हें जीते हैं तो उतने अच्छे नहीं लगते, जबकि याद करने पर बड़े ही शानदार लगते हैं। यकीनन।<br />
<br />
वैसे जैस्सी जी के बारे में एक बात कहना चाहूंगा-‘‘सीधी बात नो बकवास।’’<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-5426375153262421552010-05-25T18:36:00.000+05:302010-05-25T18:36:02.414+05:30मन कहता है<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big><img alt="[jail+diary.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib6S-9vWF6FXhZ-dmG-dCuAscYnhyphenhyphenPTNI5NXEtRou1Uf_YkOF7VsYISVpWK9Wv4ySFZU8mK2iI74-L8DdIZisaYqhBQFt6XWRe_YWjwGJVzW0BvacKmR2tVb3JbG4pz2UmUdvKJRh9KwvO/s1600/jail+diary.jpg" /><br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
<br />
आज सुबह से सादाब का चेहरा रुखा नहीं लग रहा। उसने मुझे बताया कि उसकी अम्मी ने उसे हौंसला रखने को कहा है। वह उसे अच्छी तरह याद रहता है, लेकिन वक्त उसका हौंसला तोड़ता है। वक्त से लड़ने की ताकत किसी में नहीं। सादाब ने कई जबाव मुस्कराहट के साथ दिये।<br />
<br />
ऐसा क्यों होता है कि किसी की मुस्कान आपके चेहरे की खोई रौनक लौटा देती है। हमें एहसास करा देती है कि हम अभी भी खिल सकते हैं। उन लोगों के साथ मित्रता किसी के जीवन को बदल सकती है जो सुख-दुख में एक समान रहते हैं। वे हर छोटी उपलब्धि का जश्न मनाने से नहीं चूकते। उन्हें लगता है कि हंसी-खुशी जीवन को बेहतर बना सकती है। ऐसा ही होता है जब हम उन लोगों से मुखातिब होते हैं जो हमें मुस्कराहट का मतलब बताते हैं।<br />
<br />
मैं खुद को देखता हूं तो पाता हूं कि क्या मैं जीना भूल गया? क्योंकि मैं हंसना भी भूल गया।<br />
<br />
जीवन तो जीवन है। यह आया है जाने के लिए। एक हवा का झोंका आया और हम वहां नहीं थे। पता नहीं क्यों नीरसता पीछा नहीं छोड़ती?<br />
<br />
मन को उग्र और शांत करने के तरीके हमारे पास मौजूद हैं। हम उनका कितना उपयोग कर पाते हैं, यह हम स्वयं नहीं जानते। यह लिखते हुए सहज लगता है कि मन बैरागी हो गया। यह कहते हुए सहज लगता है कि हम कुंठा से पार पा सकते हैं। मेरा विचार है कि खुद की ऊर्जा को अच्छी तरह पहचाना जाए ताकि हर परेशानी का हल निकल सके। लेकिन मैं ऐसा करने में असमर्थ हूं। यह उतना आसान भी तो नहीं। अक्सर कुछ चीजें देखने में अच्छी लगती हैं, कहने में भी, लेकिन जब करने की बारी आती है तो उनसे पीछा छुड़ाने का मन करता है।<br />
<br />
मन ये कहता है, मन वह कहता है। मन का काम ही कहना है। उसकी मान मानकर इंसान क्या से क्या हो जाता है। मेरी सोच यह कहती है मन के आगे हम बेबस हैं। यह बिल्कुल गलत नहीं है। मन की गलतियां इंसान को भुगतनी पड़ती हैं। आखिर हम इतने बेबस क्यों बनाए गए हैं? हमारे भीतर का इंसान कभी कमजोर है, तो कभी ताकतवर बन जाता है। यह अजीब ही तो है।<br />
<br />
बाहर का प्रभाव हमें अंदर तक प्रभावित करता है। वह वक्त किसी भी तरह से उतना बेहतर नहीं कहा जा सकता।<br />
<br />
<br />
-to be contd....<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-22894837746057341032010-05-17T23:40:00.000+05:302010-05-17T23:40:18.271+05:30इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjl1dk39IQrIrOmxwL-jvKDYX90qsgt9u7KMKmDRWynBimeSMRvtHpewJrourpvyvtI4V-jt3xo357h9qNDPmvBhTkUzY6LmRIdzz31bA_EprqBsf34Tk7bcUWur9nPrLkT6fHvaZNKo85k/s1600/old+age.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a></div><br />
<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjl1dk39IQrIrOmxwL-jvKDYX90qsgt9u7KMKmDRWynBimeSMRvtHpewJrourpvyvtI4V-jt3xo357h9qNDPmvBhTkUzY6LmRIdzz31bA_EprqBsf34Tk7bcUWur9nPrLkT6fHvaZNKo85k/s1600/old+age.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjl1dk39IQrIrOmxwL-jvKDYX90qsgt9u7KMKmDRWynBimeSMRvtHpewJrourpvyvtI4V-jt3xo357h9qNDPmvBhTkUzY6LmRIdzz31bA_EprqBsf34Tk7bcUWur9nPrLkT6fHvaZNKo85k/s320/old+age.jpg" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
मैं एकांत में कुछ बुन रहा हूं,<br />
<br />
शायद ये वक्त ने मुझे सिखलाया है,<br />
<br />
खुद से जूझ रहा हूं,<br />
<br />
शायद यह भी वक्त की वजह से है,<br />
<br />
शरीर से कुछ कह नहीं सकता,<br />
<br />
वह तो केवल सहना जानता है,<br />
<br />
चलो इस बहाने खुद से कुछ बातें तो हो जायेंगी।<br />
<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-87474172014554659692010-05-14T10:57:00.001+05:302010-05-14T11:06:12.498+05:30हम प्यार क्यों करते हैं?<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big> <img alt="[boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhO7kyU7dWGQ84tGAut4OTFTyDvWlglz5fNlwlt1tXR7xtAIvUCz0o_AqfN_fJzX-tOHZY51TdFPGjfPFCn8DeYR9kpP0y2opZfRD_jfLLqYzFJvBtIaivtZLIO8CNBC8Au-j-CAUe24_QI/s1600/boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg" /> <br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
‘‘मुझे आज तक समझ नहीं आया कि हम प्यार क्यों करते हैं? इतना जरुर जानते हैं कि कोई रिश्ता ऐसा है जो हमें दिख नहीं पाता और हम प्यार करते हैं। <br />
<br />
कई लोग ऐसे होते हैं जिनके साथ हम अलग-अलग तरह से प्रेम करते हैं। माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त, आदि प्यार के बंधन में जकड़े हैं और हम उनके। यह प्यार ही तो है जो हमें अपनों से जोड़े रहता है।<br />
<br />
प्यार एक अनजाना, न दिखने वाला एहसास है जो हमें बांधे रखता है।’’ इतना कहकर बूढ़ी काकी चुप हो गयी।<br />
<br />
मैंने कहा,‘वाकई यह अजीब होता है, कि हम प्यार करते हैं और फिर उसका एहसास करते हैं। खुशी मिलती है आंतरिक तौर से। कई बार दर्द का भी एहसास होता है। खुशी और गम दोनों से ही प्रेम आगे बढ़ता है.’<br />
<br />
’मैंने किसी से प्यार नहीं किया। मगर मुझे ऐसा कई बार लगा कि मैं प्यार करने लगा हूं। जब सब बिखर गया, तब मुझे एहसास हुआ कि अरे! वह तो प्रेम था। मैं फिर क्यों अनजान रहा? मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि एहसास बहुत अच्छा था। एक अजीब तरह का एहसास। मुझे इसका अध्ययन करने का समय ही नहीं मिला काकी। मैं अपने कामों में ही उलझा रहा। मैं प्यार करना चाहता था, मगर कर न सका। जब सोची तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लेकिन मैंने खुद को समझा लिया और मना भी लिया कि प्यार उन से किया जा सकता है जो हमेशा आपके पास रहें। मेरा परिवार है, कुछ स्पेशल लोग हैं जिन्हें मैं चाहता हूं। पर काकी मुझे नहीं लगता कि हमें कहीं दूसरी जगह प्यार तलाशने की आवश्यकता है क्योंकि इतना कुछ तो हमारे पास है।’<br />
<br />
इसपर काकी बोली,‘तुम ठीक कहते हो। मगर बेटा प्यार का रहस्य बड़ा ही गहरा है। इसे शायद भगवान भी समझकर और समझने की कोशिश करे। यह तो कहीं भी, किसी को भी, किसे से भी हो सकता है। हां, हमारा परिवार हमें चाहता है, हम उन्हें और कुछ अहम लोग भी हमें चाहते हैं। इस तरह हम एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। भाव बहते रहते हैं, हम प्यार करते रहते हैं।’<br />
<br />
‘तुम्हें पता है हम प्यार जाने-अनजाने में भी कर लेते हैं। वह प्यार कई बार इतना गहरा हो जाता है कि हम समझ नहीं पाते कि अब क्या करें? पशोपेश आड़े आता है और इंसान को बिखरने पर मजबूर भी कर देता है। तब अपने ही होते हैं हमें संभालने के लिए। यह विषय इतना व्यापक है कि मैं खुद उलझन में हूं कि कहां से शुरु करुं। खैर, तुमने कभी किसी अनजाने से प्यार किया हो तो इसका मतलब शायद समझ जाओ।’<br />
<br />
मैंने कहा,‘मुझे नहीं लगता कि मैं कभी प्रेम-पाश में पड़ा हूं, मगर ऐसा कई बार लगता भी है। अधिकतर बार हम प्रेम में तब पड़ जाते हैं जैसा मैंने सुना है, जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो हमें दूसरों से अलग लगता है। मुझे ऐसे कई लोग मिले। मुझे नहीं लगता कि मैंने उनसे प्रेम किया, पर हां, इतना जरुर हुआ कि मैं उनसे हद से अधिक लगाव कर बैठा था। आजतक उनसे दूरी का दर्द मुझे सालता है। इसे प्रेम कहा जाये या कुछ ओर, मैं नहीं जानता।’<br />
<br />
‘आकर्षण हुआ जरुर था, लेकिन वह अधिक समय तक नहीं रहा। बाद में शायद मैं उतना घुलमिल नहीं सका, या मैं घबरा गया।’<br />
<br />
काकी ने मुझे गौर से देखा, फिर बोली,‘ओह! तो तुमने भी प्यार किया है। शायद वह प्यार की तरह था या उसे तुम सच में प्रेम कह सकते हो। आकर्षण हुआ और तुमने उसे सबकुछ मान लिया। ऐसा होता है, क्योंकि शुरुआत अक्सर ऐसे ही होती है। हृदय में उथलपुथल होती है और इंसान में कशमकश। कई बार एक झलक में बहुत कुछ हो जाता है, कई बार वर्षों लग जाते हैं। वैसे प्रेम का भाव काफी मजबूत होता है, यदि उसे ढंग से निभाया जाये।’<br />
<br />
’मैं खुद से जूझ रही हूं लेकिन खुद से प्रेम भी कर रही हूं। जीवन से भी तो हम प्रेम कर सकते हैं। बुढ़ापे से भी प्रेम किया जा सकता है। बात सिर्फ नजरिये की है। कोई किसी से भी प्यार कर सकता है। प्यार का मतलब भाव से है, जब भाव से भाव का मिलन होता है तो एक और भाव उत्पन्न होता है। वह है प्यार का भाव जिसका अदृश्य होना उसकी खासियत है। वैसे भाव दिखते ही नहीं, महसूस किये जाते हैं।’<br />
<br />
-harminder singh<br />
<br />
<br />
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<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSdkDmlyRwJP8gYSWeQxOE2SY3728CEU7jDupqnoJpGuWbDH2kpnVeZfIa3KC4wUKiyuFodj8aOjnZTCQVuyKRbKiDogqXoMR09L2gjGjY23y1xuABCOXSbzhk-YIrGcDMm9_fcYSK5EWd/s1600/munsi_ramchander_gajraula.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSdkDmlyRwJP8gYSWeQxOE2SY3728CEU7jDupqnoJpGuWbDH2kpnVeZfIa3KC4wUKiyuFodj8aOjnZTCQVuyKRbKiDogqXoMR09L2gjGjY23y1xuABCOXSbzhk-YIrGcDMm9_fcYSK5EWd/s320/munsi_ramchander_gajraula.jpg" width="280" /></a></td> </tr>
</tbody> </table><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSdkDmlyRwJP8gYSWeQxOE2SY3728CEU7jDupqnoJpGuWbDH2kpnVeZfIa3KC4wUKiyuFodj8aOjnZTCQVuyKRbKiDogqXoMR09L2gjGjY23y1xuABCOXSbzhk-YIrGcDMm9_fcYSK5EWd/s1600/munsi_ramchander_gajraula.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a><br />
<br />
<br />
<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVveXl1yB-DTj5oQ1F3b8eOteY-ZVQLufzbbFZGc7mjPrAdOWgK4n7t04DfBnK-oqgeD4WlFFkdWdHJ1wAcLAR1_3uYcKDXt9EODTIqzt0YheHN8en_AZFXYuC-kPRgWM7TVdfzjmqzp3f/s1600/rajvati_mushi's+wife_gajraula.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVveXl1yB-DTj5oQ1F3b8eOteY-ZVQLufzbbFZGc7mjPrAdOWgK4n7t04DfBnK-oqgeD4WlFFkdWdHJ1wAcLAR1_3uYcKDXt9EODTIqzt0YheHN8en_AZFXYuC-kPRgWM7TVdfzjmqzp3f/s320/rajvati_mushi's+wife_gajraula.jpg" width="312" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
<br />
सत्तर साल की आयु के एक वृद्ध को पत्नि मर जाने के बाद जब दुनिया नीरस और बेगानी दिखाई देने लगी तो उसने अपनी आयु से आधी आयु की एक विधवा महिला से शादी रचा ली। इस शादी को अब आठ साल हो गये। उसके लिए अब यह शादी एक अभिशाप बनकर रह गयी। गजरौला थाना क्षेत्र के गांव महमूदपुर सल्तानठेर का यह बूढ़ा जहां सौतेले बेटों की मार खा रहा है, वहीं कौड़ी-कौड़ी का मोहताज हो गया है। हालांकि जब उसने दूसरी शादी की थी तो उस समय वह पचास लाख रुपयों से अधिक की संपत्ति का स्वामी था। दूसरी शादी से जहां वह संपत्ति गंवा बैठा वहीं अब सौतेले बेटों से उसे बराबर जान का खतरा बना हुआ है। दूसरी बहू (43 वर्ष) उसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट की तैयारी में है। अपने जीवन की सुरक्षा की गुहार को वृद्ध ने दिसंबर में थाने में तहरीर भी दी थी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई बल्कि महिला और उसके दो बेटों ने वृद्ध पर और भी अत्याचार करने शुरु कर दिये।<br />
<br />
थाने में अपनी फरियाद लेकर आये 78 वर्षीय वृद्ध मुंशी पुत्र रामचंदर ने बताया,‘दस वर्ष पूर्व पत्नि की मौत हो गयी थी। मेरे कोई पुत्र नहीं था। केवल चार लड़कियां थीं जिनकी शादी हो चुकी। सभी अपने घर हैं।’<br />
<br />
पत्नि की मौत के एक साल बाद वृद्ध ने दूसरी शादी करने का पक्का इरादा किया। वृद्ध के अनुसार उसे किसी के माध्यम से किसी अन्य गांव की 35 वर्षीय एक विधवा महिला मिली। वह एक शर्त पर तैयार हो गयी। उसकी शर्त थी कि वृद्ध उसके नाम दस बीघा जमीन कराये। वृद्ध महिला के लिए बेचैन था। उसने भूमि लिखाकर महिला से पुनर्विवाह रचा लिया।<br />
<br />
वृद्ध का कहना है कि तीन साल उनके बीच बहुत मधुर प्रेम रहा। जिसके बाद उसने बताया कि उसके पहले पति से दो बेटे हैं। वह उन्हें यहां लाना चाहती है। वृद्ध के अनुसार उसने दोनों लड़के प्रेमदेव और भगवानदास जो छह वर्ष पूर्व क्रमश: 14 और 11 वर्ष के थे (आज 20 और 17 वर्ष के हैं) अपने पास बुला लिए। <br />
<br />
वृद्ध का कहना है कि शादी के समय महिला ने उसे लड़कों के बारे में कुछ नहीं बताया था।<br />
<br />
गांव के लोग कहते हैं कि लड़कों के आने पर वृद्ध की बेटियों और दामादों ने समझा कि वृद्ध की कृषि भूमि (कुल 60 बीघा) कहीं दोनों लड़के न हथिया लें अत: उन्होंने वृद्ध से सारी भूमि बराबर-बराबर अपने नाम करा ली। वृद्ध का यह निर्णय उसके गले का फंदा बन गया।<br />
<br />
वृद्ध के पास ट्रैक्टर, टिलर, हैरो आदि कृषि यंत्र थे जिन्हें उसके पीछे आये बेटों प्रेमदेव और भगवानदास ने जबरन बेच दिया। वृद्ध मुंशी का कहना है कि उसे गत वर्ष से दोनों सौतेले बेटे इस लिए यातनायें दे रहे हैं कि उसने अपनी जमीन उनके बजाय अपनी बेटियों के नाम क्यों की।<br />
<br />
मुंशी (78) का कहना है कि उसका जीवन नारकीय बन गया है। वह पेट भर खाने के लिए भी अपनी बेटियों पर आश्रित है। कई बार प्रेमदेव और भगवानदास उसपर कातिलाना हमला कर चुके। उसका जीवन तार-तार हो चुका। वह उस दिन को कोस रहा है जिस दिन उसने राजवती से शादी रचाई थी।<br />
<br />
वृद्ध ने दुखी होकर गत वर्ष 18 दिसंबर को सौतेले बेटों और पत्नि के अत्याचारों से तंग आकर थाने में न्याय के लिए तहरीर दी थी। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वृद्ध अपने एक दामाद को साथ लिए लोगों से अपने दर्द की दवा ढूंढ रहा है। और आठ वर्ष पूर्व किये अपने पुनविर्वाह की गलती का खामियाजा भी भुगत रहा है। जिस महिला को अपनी हमराह बनाकर खुशी-खुशी घर लाया था वही आज उसके लिए खतरा बन गयी है।<br />
<br />
-harminder singh<br />
<br />
<span style="font-size: x-small;"><i><span style="color: #666666;">pics by guddu singh </span></i></span>harminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-87461330919742777872010-05-05T20:00:00.000+05:302010-05-05T20:00:00.977+05:30सूनापन दुनिया है<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big><img alt="[jail+diary.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib6S-9vWF6FXhZ-dmG-dCuAscYnhyphenhyphenPTNI5NXEtRou1Uf_YkOF7VsYISVpWK9Wv4ySFZU8mK2iI74-L8DdIZisaYqhBQFt6XWRe_YWjwGJVzW0BvacKmR2tVb3JbG4pz2UmUdvKJRh9KwvO/s1600/jail+diary.jpg" /><br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
संसार को बनाने की कोशिश की जाती रही, लेकिन हर बार इंसान हार गया क्योंकि जीत उतनी आसान नहीं। मैंने खुद को प्रभावित होने से बचाने की तमाम कोशिशें की हैं। ऐसा हो नहीं सका। मैं इंसानों के बीच एक इंसान ही रहा। बदलाव को पकड़ता हुआ चल रहा हूं। यह एक जबरदस्ती सी लगती है, जैसे कुछ थोपा जा रहा हो। पल्लू पकड़ने की आदत नहीं, फिर भी चले जा रहा हूं। आदतें हमें ऐसा करने पर मजबूर करती हैं। <br />
<br />
व्यक्ति हमेशा इतना तय करता है कि वह एक दिन मंजिल को पा लेगा जिसकी वह कामना करता है। मेरी मंजिल कोई नहीं। मैं बिना हौंसले के चलने वाला सवार हूं। मंजिल को शायद मुझे तलाशने की जरुरत न पड़े। <br />
<br />
यह काफी निराशापूर्ण समय है। ऐसे में बहुत कुछ सोचने की फुर्सत नहीं है। अपने बारे में बस इतना मालूम हो जाए कि मेरा भविष्य मुझे मेरे अपनों से कब मिलायेगा या ऐसे ही कोरा रह जाएगा। हिम्मत को जुटाने के लिए उपाय करने की जरुरत महसूस नहीं होती। मेरे अंदर का इंसान शांत और सूना-सूना पड़ा है। उसे यह मालूम है कि सूनापन ही उसकी दुनिया है। यह मन के लगभग मर जाने के बराबर है। हां, मेरा मन कांप कर ठंडा पड़ चुका है। उसमें इतना साहस नहीं कि वह सांस ले सके, पर वह सांस लेता नहीं और मेरा साथ जैसा मैं जीता हूं, वैसा उसका हाल है। उसका इरादा और ख्वाहिशें मुझसे मिलकर चलते हैं।<br />
<br />
सादाब मेरी तरफ बड़े गौर से देखता है। मुझे लगता है कि वह मुझ पर तरस खा रहा है या पता नहीं बात क्या है? उसका चेहरा गंभीर हो जाता है। मैं उससे नजरें मिला नहीं सकता, यह भी मैं नहीं जानता। वह एक अलग किस्म का इंसान लगा मुझे, बिल्कुल अलग। <br />
<br />
हम उन्हें अलग मान लेते हैं जो कुछ जुदा अंदाज में होते हैं, सादाब वाकई अनोखा है। उसके चेहरे के भावों को हालांकि मैं पढ़ नहीं पाया और पढ़ भी न पाउं। वह सूने चेहरे से बहुत कुछ कह जाता है। हां, वह चुप जरुर है, लेकिन उसका चेहरा इतना अधिक कह जाता है कि मैं हैरान हो जाता हूं। वह हैरानी इस तरह की होती है कि मैं कई बार देर रात तक उसके विषय में सोचता रहा। मैंने सोचा कि वह ऐसा क्यों है? कम बोलने वाला व्यक्ति गहराई समेटे होता है। सादाब उतना बोलता नहीं क्योंकि प्रवृत्ति को बदला नहीं जा सकता और वह ऐसा चाहता भी नहीं। खुश है वह इसी तरह दुख में। यह भी पता नहीं कि कष्टों पर किस तरह की प्रसन्नता का अहसास होता है। लेकिन सादाब कहता है कि वह इतने दुखों के बाद दुखी नहीं। यह शायद झूठ भी हो, या वह मुझे दुखी नहीं देखना चाहता। मेरे दर्द को अपना समझता है। उसकी निराशा इसे लेकर भी है कि वह पशोपेश में पड़ गया है। अपनी अम्मी और बहनों से वह कई दिनों से नहीं मिला है। पहले वह दूसरे बैरक में था। वह बताता है कि वे उससे मिलने समय-समय पर आते रहते हैं।<br />
<i><br />
</i><br />
<div style="color: #666666;"><i>to be contd........</i></div><br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-58068505164774882852010-05-01T11:14:00.000+05:302010-05-01T11:14:55.482+05:30अनदेखा अनजाना सा<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/_7vS9YfzOsRg/SsYPTMOV5tI/AAAAAAAAATo/wXrtMfGd-Zs/s1600-h/anjali_schoolive.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" border="0" height="264" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5388010826568689362" src="http://2.bp.blogspot.com/_7vS9YfzOsRg/SsYPTMOV5tI/AAAAAAAAATo/wXrtMfGd-Zs/s320/anjali_schoolive.jpg" style="height: 330px; margin: 0pt 10px 10px 0pt; width: 400px;" width="320" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
अंजलि की बातों में उस दिन मैं खो गया था। वैसे ऐसा लगभग रोज होता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि शायद वह परेशान है। कभी लगता है कि वह कुछ कहना चाहती है, लेकिन उसकी हालत मेरी तरह है क्योंकि में उससे हजारों बातें कहना चाहता हूं, पर उसके सामने जाकर सकपका जाता हूं। ऐस उन लोगों के साथ अधिक होता है जिनकी जन्मतिथि के हिसाब से कन्या राशि हो। राशियों का मेल मजेदार होता है और लोगों का भी।<br />
<br />
मैं कहा रहा था कि अंजलि काफी गुस्से में है, मुझे कभी-कभी लगता है। वह चुप है क्योंकि वह बहुत सोचती है। वह शांत है क्योंकि वह संतुष्ट है। वह हर चीज को बारीकी से परखती है, बिल्कुल मेरी तरह। भीड़ में रहने के बावजूद वह उसमें खोना नहीं चाहती। उसकी ख्वाहिश भीड़ से अलग दिखने की है।<br />
<br />
हम विचारों को महत्व इसलिए देते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि उनसे हम सीख सकते हैं। हम दोनों एक-दूसरे के विचारों की कद्र करते हैं। शायद यह हमें अच्छा लगता है। हमें घंटों बैठकर बातें करने में कोई बुराई नहीं, जबकि आजतक ऐसा हुआ नहीं। पन्द्रह-बीस मिनट तक हम काफी विचार कर चुके हैं। समय की पाबंदी के कारण कई बातें अधूरी रह गयीं। उनकी भरपाई के लिए अगला दिन था, पर ऐसा हुआ नहीं। <br />
<br />
अंजलि के कारण मुझे एक नया दोस्त मिल गया। हालांकि मैंने उसे कभी देखा नहीं, न ही मैं उसे जानता। लेकिन हमारी दोस्ती लंबी चलने वाली है। मैं यह जानता हूं कि वह काफी भला है। उसकी हंसी को करीब से देखने की तमन्ना है। जब वह मुस्कराता होगा तो कैसा लगता होगा, बगैरह, बगैरह। मेरे मन में कल्पनाओं का पूरा ढेर इकट~ठा है। हम सोचते बहुत हैं। सोच कभी थमती नहीं।<br />
<br />
मैं खुद को अकेला मानता हूं। मुझे बरसों से एक अच्छे दोस्त की तलाश थी। कई लोग जिन्हें मैं हद से अधिक लगाव करता था, उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैं सूनसान इलाके का वासी हो गया। बताने को कुछ खास नहीं। सच कहूं तो वह दौर खराब था।<br />
<br />
जिंदगी की पटरी पर मैं दौड़ रहा हूं। मैं कितनी दूर और जाउंगा, नहीं जानता। सफर को छोटा करना मेरे बस में नहीं। पागलों की तरह दहाड़े मार नहीं सकता। चुपचाप चलना बेहतर है। मुझे उसका साथ मिला है, तो कुछ आस बंधी है। एक गीत मुझे याद आता है-<br />
<br />
‘‘यूं ही कट जायेगा सफर साथ चलने से,<br />
मंजिल आयेगी नजर साथ चलने से।’’<br />
<br />
जिस व्यक्ति को मैं झलक भर देख नहीं सका, उसपर इतना विश्वास। शायद हद से ज्यादा विश्वास कितना ठीक है, यह मैं जानने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी दुनिया बदल रही है। नजरिया पहले सा नहीं रहा। झिलमिलाते सितारे आसमान को अनगिनत मुस्कराहटों से भर रहे हैं। मानो हर कोई खिला हो, पत्ते खुश हों और फूल महक रहे हों। सुनहरापन हो, जैसे जीवन जगमगा रहा हो। कहने को पता नहीं क्या-क्या बदल रहा है, मैं भी।<br />
<br />
उसे मैंने बताने की सोची कि वह मेरे जीवन के कोरे कागज पर पल भर में हजारों चित्र उकेर गया। वाकई जीवन रंगों से भर गया। बिना एक मुलाकात के इतना सब मैं कह गया। जब वह पढ़ेगा तो उसे कैसा लगेगा।<br />
<br />
मैं इतना जानता हूं कि उसकी प्रतिक्रिया जो भी रहे, पर सच को वह झुठला नहीं सकता क्योंकि मैंने सच को उकेरा है। शब्द स्पष्ट हैं, उन्हें मोड़ने की कोशिश मैंने नहीं की। शब्द सीधे हैं, उन्हें बिगाड़ने की कोशिश मैंने नहीं की।<br />
<br />
हृदय की आवाज शायद वह सुन सकता है, साफ-साफ और स्पष्ट। जबसे उसने अंजलि से कहा है कि वह मेरा मित्र बनने को तैयार है, तबसे मैं काफी खुश हूं। इतना कि बयान करना मुश्किल सा मालूम पड़ता है।<br />
<br />
-आपका<br />
राम<br />
<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-56517079840514880912010-04-24T14:06:00.000+05:302010-04-24T14:06:24.811+05:30मामा की मौत<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big><img alt="[jail+diary.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib6S-9vWF6FXhZ-dmG-dCuAscYnhyphenhyphenPTNI5NXEtRou1Uf_YkOF7VsYISVpWK9Wv4ySFZU8mK2iI74-L8DdIZisaYqhBQFt6XWRe_YWjwGJVzW0BvacKmR2tVb3JbG4pz2UmUdvKJRh9KwvO/s1600/jail+diary.jpg" /><br />
</big></big></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
सादाब ने बताया कि जब वह घर लौटा तो उसके होश उड़ गये। रुखसार ने सबसे पहले अम्मी को संभाला। हाथ-पैर खोले तथा पानी पिलाया। रुखसार और जीनत दोनों अम्मी से लिपटकर बहुत रोयीं। सादाब इतने गुस्से में था कि मामा को ढूंढने निकल पड़ा। रुखसार ने उसे रोकना चाहा, पर वह रुका नहीं।<br />
<br />
सादाब को क्रोध इसका अधिक था कि उसका मामा बिल्कुल बदला नहीं था। कुछ पैसों के लिए अपने ईमान को खराब कर गया। उसके लिए पैसा ही सबकुछ है। कितना गिरा हुआ इंसान है वह? तमाम विचार सादाब को और उत्तेजित करते रहे। तिराहे की एक पान की दुकान पर आकर वह रुका। उसने देखा सामने सड़क पर एक आदमी गठरी लेकर जा रहा है। सादाब उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। <br />
<br />
सड़क किनारे रोशनी नहीं थी, रात हो चुकी थी। चंद्रमा की चांदनी उतनी साफ नहीं थी। वह आदमी सादाब को अपने मामा की तरह लग रहा था। सादाब ने कदमों को तेज किया। वह आदमी शायद भांप गया था। उसकी चाल भी तेज हो गई। अचानक वह दौड़ने लगा। <br />
<br />
सादाब चिल्लाया,‘मामा रुक जाओ।’<br />
<br />
सादाब भी दौड़ पड़ा। सादाब को पक्का यकीन हो गया था कि वह मामा ही था। वह व्यक्ति नजदीक के रेलवे स्टेशन की ओर भागने लगा। सादाब ने तेज दौड़कर उसे पीछे से पकड़ लिया। उसने गठरी सादाब के मुंह पर मारी और भागने लगा। लेकिन सादाब उसका पीछा कहां छोड़ने वाला था। वह कंधे पर गठरी टांग मामा के पीछे दौड़ा। <br />
<br />
मामा पटरियां-पटरियां दौड़ रहा था, सादाब उसके पीछे। जैसे-जैसे कदम तेज हो रहे थे, थकान बढ़ती जा रही थी और सांस तेज। मामा को ठोकर लगी। वह गिर पड़ा। उसका चेहरा पत्थरों पर लगने से बुरी तरह छिल गया। सादाब ने मामा को उठाना मुनासिब न समझा। गठरी को किनारे रख दिया। उसे कहीं से एक लोहे का सरिया हाथ लगा। <br />
<br />
क्रोध की सीमा जब पार हो जाती है तो इंसान एक अलग रुप में नजर आता है। सादाब के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। उसने मामा पर सरिये से प्रहार शुरु कर दिया। मामा अपने भांजे से दया की भीख मांगता रहा। अपने पापों को कुबूल करता रहा। अपनी बेटियों की दुर्गति की जिम्मेदारी भी उसने ली। लेकिन सादाब उस जड़ को ही खत्म करने का इरादा किये था। <br />
<br />
मामा चीखता रहा पर सादाब रुका नहीं। लोगों की भीड़ जमा हो गयी। जबतक पुलिस आई तबतक मामा अंतिम हिचकी ले चुका था। <br />
<br />
कुछ समय पहले की दौड़ निर्णायक मोड़ पर आकर समाप्त हो गयी। एक चलता पुर्जा अब लाश में तब्दील हो चुका था। न वह बोल सकता था, न सुन सकता था, न देख सकता था जबकि उसके चारों ओर जो भीड़ जमा थी, वह यह सब कर सकती थी, तभी वह शांत था और लोग अशांत।<br />
<br />
मामा के पापों की कहानी उसी के साथ समाप्त हो गयी। सादाब को हत्या के जुर्म में जेल में डाल दिया गया। <br />
<br />
’वे कहते थे कि मैंने एक निर्दोष की हत्या की है। जबकि मैं जानता हूं कि मेरा मामा कितना नीच था। उसे न मारा जाता तो वह कई पाप और करता। जिसने पत्नि, सगी बेटियों, बहन को दुख दिया हो, वह जीने के काबिल नहीं।’ यह कहकर सादाब चुप हो गया।<br />
<br />
मेरा मन कर रहा था कि मैं उसे सांत्वना दूं, लेकिन मैं रुक गया। <br />
<br />
हम दूसरों को देखकर कई बार खुद दुख महसूस करने लगते हैं। इंसान होेने और न होने में यही फर्क है। हमारा संसार जैसा भी रहा हो दूसरों के संसार को संवारने की कोशिश मेरे जैसे लोग करते हैं। मुझे एहसास हुआ कि दर्द को सीने में दफन करना उतना आसान नहीं। कभी न कभी वह उभर ही आता है। परेशान आदमी फिर दिल को खोलकर रख देता है। मेरी कहानी का सच आना बाकी है। मैं फिलहाल चुप हूं। मैं नहीं चाहता कि मेरे जख्मों को हवा लगे। दुखती रग पर हाथ जाने से सब डरते हैं। मुझे थोड़ी खुशी इसकी है कि कोई तो मिला जो वास्तविकता को बता गया मुझपर भरोसा कर।<br />
<br />
to be continued..........<br />
<br />
-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-22279363459644167332010-04-19T23:26:00.002+05:302010-04-19T23:46:23.730+05:30बुढ़ापे के आंसू<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" height="1" style="text-align: left; width: 610px;"><tbody></tbody> </table><table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: left; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIL3lAjR3MP7sXa-2pdafxvNKaXQr6bcytmkTPYeo1sQguAr-J3z4xMQmK2h4kmgFK4WTZTHp7azq1YixyKbD9gMUU6GiTg3fpZ9RRqK8Tg9_8DFtVlJYwlz6k0VY5TJIfVuZ6wtFKNyGl/s1600/old+man+vradhgram.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIL3lAjR3MP7sXa-2pdafxvNKaXQr6bcytmkTPYeo1sQguAr-J3z4xMQmK2h4kmgFK4WTZTHp7azq1YixyKbD9gMUU6GiTg3fpZ9RRqK8Tg9_8DFtVlJYwlz6k0VY5TJIfVuZ6wtFKNyGl/s400/old+man+vradhgram.jpg" /></a></div></td> </tr>
</tbody> </table><br />
<br />
वे आजकल हंसते नहीं। ऐसा करना उन्हें पता नहीं क्यों भाता नहीं। वे सोचते हैं कुछ, कभी-कभी आंसू भी बहा देते हैं। वे उस अवस्था में जी रहे हैं जहां जीवन की रुसवाई इंसान को कचोटती है। लेकिन वह फिर भी जी रहा है। वे बूढ़े हैं, एक वृद्ध इंसान जो जीवन के अंतिम पड़ाव की ओर उन्मुख हो रहा है। उस जीवन के सच को जानने के लिए उसके लड़खड़ाते पैर दौड़ने को बेताब हैं।<br />
<br />
वृद्धग्राम को एक मेल प्राप्त हुआ है जिसमें एक छात्रा ने बुढ़ापे पर कुछ लिखा है। आप भी पढ़ लीजिये:<br />
<br />
<br />
in old age,<br />
flowers shed colour,<br />
but human shed tears,<br />
isn't strange to hear........<br />
<br />
nobody so near<br />
nobody to care<br />
nobody to cheer my tear<br />
nobody to hear<br />
nobody to share<br />
nobody to clear my fear<br />
nobody is here..........<br />
<br />
-priyanshi dudeja, moradabad, uttar pradesh<br />
<br />
<br />
वाकई बुढ़ापे में इंसान अजीब किस्म का हो जाता है। कितना अकेला हो जाता है एक इंसान जबकि वह इंसानों के संसार में ही तो जी रहा होता है।<br />
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-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6010124414738342053.post-57675219841806202302010-04-12T21:09:00.000+05:302010-04-12T21:09:13.338+05:30खुशी बिखेरता जीवन<table border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="height: 12px; text-align: center; width: 610px;"><tbody>
<tr> <td style="background-color: #ffcc33; vertical-align: top; width: 297px;"><big><big> <img alt="[boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg]" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhO7kyU7dWGQ84tGAut4OTFTyDvWlglz5fNlwlt1tXR7xtAIvUCz0o_AqfN_fJzX-tOHZY51TdFPGjfPFCn8DeYR9kpP0y2opZfRD_jfLLqYzFJvBtIaivtZLIO8CNBC8Au-j-CAUe24_QI/s1600/boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg" /> <br />
</big></big></td> </tr>
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‘खुशी जीवन का हिस्सा है। यह अहम है।’ मैंने काकी से कहा।<br />
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बूढ़ी काकी हर बात को बहुत ध्यान से सुनती है। मैं भी उसकी बातों पर उतना ही गंभीर हो जाता हूं। काकी ने कुछ पल बाद कहा,‘हमारा जीवन हंसी-खुशी को पाकर सुकून महसूस करता है। हम उन लोगों संग खुद को भूल जाते हैं जो अपनी हंसी बिखेर हमें तृप्त करते हैं। शायद जिंदगी का सबसे अनमोल उपहार है हंसी। अगर हंसी-खुशी न होती तो जीवन नीरस होता।’<br />
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‘धरती पर बसा जीवन किसी न किसी बहाने तृप्त होना चाहता है। मैं भी तृप्ती की कामना करती हूं, तुम भी। खुशी एक एहसास है, एक खूबसूरत अनुभव। यह हमारे भीतर तक प्रवेश करता है। हमारा अंग-अंग इससे प्रभावित होता है। हम खुद को ताजा पाते हैं। नयी ऊर्जा का संचार होता और जीवन में बहार आ जाती है। कलियां खिलने लगती हैं, महक से हम पुलकित हो उठते हैं। वातावरण का रंग बदल जाता है। मन का दर्द छिप जाता है।’<br />
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‘फिर तो बुढ़ापा भी खुश होता होगा?’ मैंने काकी से पूछा।<br />
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‘क्यों नहीं?’ काकी बोली।<br />
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‘बुढ़ापा भी तो इस संसार का हिस्सा है। वृद्धों के पास केवल दुखों का ही पिटारा नहीं। उनकी कमजोर आंखें भी खुशी के आंसू छलकाती हैं। वे भी खुशी का अनुभव करते हैं। हर किसी के लिए हर किसी चीज के मायने अलग-अलग हैं। जीवन को चलने का रास्ता चाहिए, खुशी को फैलने का।’<br />
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‘मेरा अपना अनुभव कहता है कि इंसान दूसरों के कार्यों में यदि सहयोग दे तो उसका जीवन सफल हो जायेगा। कष्टों का निर्धारण कर्म करते हैं और इंसान अंत समय तक कर्म करता है। सही मायने में कर्मों का फल मिलता है। हमें यह लगता है कि हम अपनी खुशी बढ़ा रहे हैं। और जब हम दूसरों की खुशी छीनकर अपने घर में सजाने की कोशिश करते हैं तब हम भविष्य की पोथी में खुद सुराख कर रहे होते हैं।’<br />
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‘जो कार्य हमें आंतरिक शांति का एहसास कराते हैं उनसे हमें कई प्रकार के अनुभव होते हैं। खुशी उनमें से एक होती है। दुखी इंसान की हालत कितनी दयनीय होती है, यह हम जानते हैं। लंबे समय के दुख के बाद इंसान सुख की अनुभूति करता है। वह उसके लिए खुशी का समय होता है। यह कोई ऐसी वस्तु नहीं तो बाजार में मिल जाए। यह केवल सद कार्यों से मिलती है या फिर जीवन के सफर में उसे अलग-अलग मौकों पर हासिल किया जा सकता है। बुढ़ापा खुद को खुश देखना चाहता है। जबकि वह शायद उतना प्रसन्न रह पाये, लेकिन उम्मीद तो लगाता ही है।’<br />
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-harminder singhharminder singhhttp://www.blogger.com/profile/15795115311326671309noreply@blogger.com2