कुछ दिन पहले-
दो समुदायों के बीच मजहब को लेकर झड़प हुई।
प्रत्येक ने अपने धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ बताया।
मजहब को लेकर लड़ पड़े दोनों समुदाय आपस में।
मंदिर टूटे, मस्जिद गिरी, भगवान दोनों से रुठे।
एक ने भोग लगाया भगवान को, दूसरे ने अल्लाह को पुकारा।
आपस में लड़े लोग, तलवारें निकलीं, गोलियां चलीं।
औरतों की आवरु लुटी, मासूमों की चीखें निकलीं।
किसी का सुहाग लुटा, कोई घर से बेघर हुआ।
कुछ घरों के चिराग बुझे, कुछ को जेलों में भरा गया।
लोग सड़कों पर उतरे, जुलूस निकला, नारे हुये।
शहर में दंगे हुये, गाडि़यां टूटीं, ट्रेनें जलीं।
नेताओं का दौरा हुआ, पुलिस का पहरा लगा।
सरकारी कमेटियां बनीं, राजनीति होने लगी।
कुछ दिन बाद-
शहर में उग्रवादियों ने हमला किया।
भीड़ वाली गली में बम फटा, शोर से दिल थमा।
सैकड़ों मरे, हजारों घायल, कुछ लापता हुये।
मासूमों का साया छिना, कुछ गोदे सूनी हुयीं।
लोग घरों में सिमटे, शहर खामोशी में डूबा।
आज न जुलूस निकला, न नारे हुये, न विरोध।
हर चेहरे पर लाचारी, अब न किसी से शिकवा रहा।
मजहब के नाम पर विवाद टला।
फिर नेताओं का दौरा हुआ, पुलिस का पहरा लगा।
सरकारी कमेटियां बनीं, राजनीति होने लगी।
हादसा ये नहीं कि हादसा हो गया।
हादसा ये है कि सब खामोश हैं।
-ज्ञान प्रकाश सिंह नेगी ‘ज्ञानेन्द्र’
टेवा एपीआई इंडिया लि.
Sunday, November 22, 2009
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
हादसा ये नहीं कि हादसा हो गया।
ReplyDeleteहादसा ये है कि सब खामोश हैं।
आपकी रचना सोचनेवाली, गहराई से लिखी हिई है। बधाई।
जबरदस्त .....सच सिर्फ़ यही है
ReplyDeleteअजय कुमार झा