वे लाठी का सहारा लेकर चलते थे। उनकी आंखों की रोशनी सालों पहले छिन चुकी थी। दो बेटियों के पिता थे। और एक पत्नि के पति जो बेचारी वृद्धावस्था भोग रही है, लेकिन मानसिक रुप से लाचार है। उर्मिला के पिता दो दिन हुए, चल बसे। मेरी मां को सबुह यह सूचना उर्मिला की सास से मिली।
मैं सोच में पड़ गया कि लोग किस तरह बिना बताए चले जाते हैं। और पीछे छूट जाते हैं रोते-बिलखते परिजन। मौत का सच पीड़ादायक होता है। मातम की घड़ी कष्टकारी होती है।
जीवन का खेल खत्म होने के बाद इंसान का अस्तित्व नहीं रह जाता। रह जाती हैं बस यादें। उर्मिला अपने पिता को उतनी तवज्जो नहीं देती थी। जब वे घर आते वह उनके पास कम ही वक्त बिताती।
एक बार जब वे गजरौला आये, उर्मिला का पता पूछने लगे। चूंकि उन्हें दिखता नहीं था, इसलिए लाठी का सहारा लिए इधर-उधर घूमते रहे। गांव से किसी गाड़ी में बैठकर बेटी से मिलने आये थे। गाड़ी वाला उन्हें पास के मोहल्ले के किनारे छोड़ गया था। करीब दो घंटे पूछताछ के बाद वे उर्मिला के घर पहुंचे। किसी बच्चे की उंगली पकड़ रखी थी। उर्मिला का हाथ थामकर वे रो पड़े।
उर्मिला के यहां वे कुछ दिन रहे। उनके साथ मैंने उर्मिला को कभी बैठे नहीं देखा। हां, धेवता और धेवती जरुर अपने नाना संग चारपाई पर बैठकर घंटों बतियाते। वे खुश थे अपनों के बीच, लेकिन दुख भी था कि स्नेह कहीं अधूरेपन के छींटे दे गया था। उनकी सगी बेटी उनसे घुल-मिल नहीं रही थी। बूढ़े लोगों से दूरी का कारण उनका बुढ़ापा होता है। लगता था जैसे पराये घर सगी बेटी बिल्कुल पराई हो गयी थी। वे भरे मन से घर लौटे जरुर थे, लेकिन खुशी इसकी थी कि बेटी खुश है।
आज उर्मिला दुखी है। आज वह जी भर कर रोई है। उसने पिता को याद कर दहाड़े मारे हैं, छाती पीटी है। यह ढोंग नहीं था। दुख था अपने के बिछुड़ने का। किसी के दूर जाने का। शायद रिश्ते जिंदगी भर दरके हुए लगें, लेकिन अंतिम समय वे जुड़ जरुर जाते हैं।
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
हम भी दुखी हो गये.
ReplyDeleteकिसी के भी पिता का गुजरना बहुत दुखद घटना है !!
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