नेत्रा को मैंने कई बार कहा कि इतना पढ़ाई न किया करे। पर वह मेरी ओर ध्यान ही नहीं देती। उसे एक ही धुन सवार है,‘सबसे अधिक नंबर आने चाहिएं।’ हर बार वह क्लास में पहला स्थान प्राप्त करती है, तो बहुत खुश होती है।
मैंने उसे समझाया,‘अभी चश्मे लगे हैं। बाद में बैठे रहना अंधी बनकर।’
वह स्कूल से आते ही होमवर्क करने बैठ जाती है। बेचारी लगती है वह मुझे।
सुबह से लगातार कई घंटे अपना दिमाग थका देती है। उसमें दो-तीन घंटें और जोड़ देती है।
मैंने उससे कहा,‘इतना पढ़ोगी तो पागल हो जाओगी।’
‘हो जाने दो।’ वह बोली। ‘बिना पढ़े से पागल भली।’
उसकी बातों का मुझे बुरा नहीं लगता, लेकिन कभी-कभी झुंझला जाता हूं।
आखिर मैं उसका इकलौता भाई और वह मेरी इकलौती बहन जो ठहरी।
‘मेरा मानो, थोड़ा आराम कर लो। होमवर्क बाद में कर लेना।’ मैंने कहा।
मेरी बहन नेत्रा |
‘भाई मैं ऐसा नहीं कर सकती।’ नेत्रा ने कहा। उसका ध्यान पेंसिल छीलने में था। ‘बिना होमवर्क करे मुझे चैन नहीं आता। काम खत्म करने के बाद फ़्री हो जाती हूं। फिर सहेलियों संग खेलना भी तो है।’
‘तुम नहीं समझोगी। मेरी तरह बनो। रिलैक्स वाला बंदा। उतना ही चलता हूं, जितनी जरुरत है।’ मैं बोला।
‘मुझे नहीं बनना रिलैक्स वाली बंदी।’ उसने किताब का अगला पन्ना पलटा। ‘तुम्हारी तरह एक क्लास में दो साल नहीं गुजारने मुझे। तुम ही रिलैक्स करो उसी क्लास में। चौथी के फेलियर। देखना आठवीं से पहले मैं तुम्हें पछाड़ दूंगी।’
मेरी बोलती बंद हो गयी। नेत्रा ने मुझे मेरी औकात याद दिला दी। उसकी तरफ मैंने पीठ कर ली और कुछ सोचने लगा। नेत्रा तीसरी क्लास में है, मैं चौथी में। मुझे डर लग रहा है कि कहीं इस बार लुढ़क गया तो माता-पिता घर से ही न निकाल दें। उफ! तब क्या होगा? इसलिए मैंने अपना बस्ता खोला और गणित की किताब निकाली। गर्दन घुमाकर नेत्रा को देखा। काम में वह इतनी तल्लीन थी कि उसे पता नहीं लगा कि एक मधुमक्खी उसके सिर पर बैठी है। मैंने उसे बिना बताए, फुर्ती से किताब की सहायता ली और मधुमक्खी को उड़ा दिया। तभी नेत्रा चीख पड़ी।
‘क्या किया भैया? किताब क्यों मारी?’ वह झल्लाई।
मैंने बताया कि मधुमक्खी उसके बालों पर थी। उसे यकीन नहीं हुआ।
उसने चेहरा लाल कर कहा,‘झूठ बोलते हो। मुझे पढ़ने नहीं देना चाहते।’
‘ऐसा नहीं है नेत्रा। मैं तो मक्खी को हटा रहा था। धोखे से किताब लग गयी होगी।’ मैंने सफाई देनी चाहिए।
वह फिर किताब में खो गयी। उसने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। उसकी यह विशेषता मुझे अच्छी लगती है कि वह जब पढ़ रही होती है, तब ज्यादा बोलती नहीं। एक-आध बार झगड़ चुकी है, बस।
उसकी सहेली पिंकी मुझसे चिढ़ती है। मैं कई बार पिंकी की लंबी चोटी खींच चुका हूं। उसी तरह स्मिता जो पिंकी और नेत्रा की सहेली, जो बिल्कुल काले रंग की है, जो चपटी नाक की है और जो लड़कों जैसे बाल रखती है, उसे मैं ‘सैम’ कहकर चिढ़ाता हूं।
दरअसल ‘सैम’ एक पात्र है जो टी.वी. पर दिखता है। वह कभी लड़की का भेष बना लेता है, कभी बूढ़ा हो जाता है। उसका रंग और स्मिता का रंग तथा नाक एक-जैसे हैं। स्मिता एक बार नेत्रा के साथ घर के बाहर खड़ी थी। मैंने चुपके से उसपर पानी की बोतल उडेल दी और छिप गया। यह किस्से काफी पुराने हैं- यही कोई दो साल पहले के। उस दिन पिताजी ने मुझे दो चाटें लगा दिये थे। अगले दिन जब मैं स्कूल गया तो स्मिता ने मेरा गाल देखा और खिल्ली उड़ायी, बोली,‘गाल है कि टमाटर।’
खैर, काफी देर हो चुकी थी। मेरा मन गणित के सवाल करते-करते ऊब गया था। इस विषय से मुझे पहली कक्षा से ही चिढ़ हो गयी थी। वास्तव में उस समय सवाल आकार में बड़े होने लगे थे। गणित की टीचर मुझे कभी भाये नहीं। इसमें बहुत हद तक सच्चाई है। पहाड़े, उफ! बड़ा सिरदर्द है।
मेरी बहन ने मुझसे पूछा,‘तुम इतनी देर से गणित की किताब खोलकर बैठे हो। हल कुछ कर नहीं रहे।’
‘जब तुम चौथी क्लास में आओगी, पता लग जायेगा।’ मैं बोला। ‘तीसरी क्लास की भी कोई पढ़ाई है। छोटे-छोटे मामूली सवाल। चुटकियों का खेल है।’
नेत्रा लिखाई करने लगी। टीचर ने मुझे पहाड़े याद करने के लिए दिये थे। क्लास में जब पहाड़े सुनाने की याद आती, मुझे सांप सूंघ जाता। दो का पहाड़ा याद करने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।
तभी नेत्रा मुझसे बोली,‘भाई, मुझसे पहाड़े सुन लो।’
मैंने यूं ही कह दिया,‘चलो सुनाओ।’
उसने पहले दो का पहाड़ा सुनाया। मैं हां-हां-हूं-हूं करता रहा। तीन का पहाड़ा सुनाया। मैंने फिर हां-हां-हूं-हूं किया। नेत्रा को लग रहा था मैं बड़े गौर से सुन रहा हूं। उसे पता नहीं था कि आज मैं क्लास में इसलिए बैंच पर खड़ा किया गया था क्योंकि मुझे तीन का पहाड़ा याद नहीं था। बहुत ग्लानि का अनुभव किया था मैंने। सारी क्लास मुझपर हंसी थी। यहां तक की विनय जो मेरा सबसे अच्छा मित्र है, भी अपनी हंसी न रोक पाया। दूसरी-तीसरी क्लास के बालकों को पांच तक पहाड़े याद होते हैं। मेरा चौथी क्लास में दूसरा साल है।
‘भाई पांच का पहाड़ा पहले सुन लो।’ नेत्रा बोली।
‘मुझे नींद आ रही है।’ मैं बोला। ‘तुम्हें मालूम नहीं, कितना काम कर चुका हूं।’
‘थोड़ी देर ही तो बात है।’ नेत्रा ने कहा।
मैं तकिया लगाकर लेट गया। सोने का बहाना करने लगा। मुंह पर एक कपड़ा डाल लिया।
नेत्रा ने मेरे पैर पर जोर से हाथ मारा और बड़बड़ाती हुई कमरे से बाहर चली गयी। उसके जाते ही मैं खुद से बोला,‘बला टली।’
पहाड़े की किताब नेत्रा के बस्ते से निकाली और याद करने बैठ गया।
-harminder singh
Wah awosam so nice and motivational
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