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ये उजाले होते हैं कैसे, मैंने नहीं देखे, मेरी राहें अब बंद हैं, बस्ती है मेरी यही कुटिया, यहां से कुछ जाता नहीं, यहां से कोई आता नहीं, नहीं लगे हैं यहां मेले, ये मेरी दुनिया है, ये मेरी दुनिया है, रुखी हैं यादें, तन्हाईयां भी कम नहीं, गम बहुत हैं, चहक बिल्कुल नहीं, ये मेरी दुनिया है, यहां उजाला नहीं, शांत और काली दुनिया, कुछ अजीब है, अपनापन बिल्कुल नहीं, अब बस सोने की तमन्ना है, रोया भी खूब नहीं, आसान नहीं हंसना अब, मुश्किल वक्त काटना नहीं, ये मेरी दुनिया है, अपनी है, फिर भी अपनी नहीं। by BHAGAT JI |
bahut bhavuk kavita hai.....
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