बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Thursday, June 19, 2008

शाकाहारी सेक्सी बूढ़ा

पशु अधिकारों में संलग्न संस्था पीपुल्स फ़ोर एथिकल ट्रीटमेंट आफ एनिमल्स (पेटा) ने विख्यात सिनेकर्मी अमिताभ बच्चन को एशिया का सबसे सेक्सी शाकाहारी पुरुष चुना है। पेटा का यह निर्णय किसी भी प्रकार से तर्क संगत नहीं है। इस समाचार से शाकाहारी तथा पशु पक्षियों के प्रति दयाभाव रखने वाले लोगों को ठेस पहुंची है। सेक्सी शाकाहारी से इस संस्था का क्या तात्पर्य है? सेक्सी अंग्रेजी और शाकाहारी हिन्दी का शब्द है। आजकल अधिक पढ़े-लिखे लोगों को सामान्य शिक्षित समाज को शब्दजाल में उलझाने की आदत सी पड़ गयी है।

हमें बच्चन परिवार से इतनी शिकायत नहीं जितनी पेटा से है। पेटा विश्व की सबसे बड़ी वह संस्था है जो जीव-जंतुओं की सुरक्षा तथा संरक्षा के लिये विश्व में पहचानी जाती है। वह लोगों में जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम और करुणा का भाव तथा उनके अस्तित्व को बचाये रखने के लिये काम करती रही है


पशु-पक्षियों की हत्या करना या उनका मांस भक्षण करना दोनों ही मानवीय दृष्टिकोण से बड़े अपराध हैं। जो व्यक्ति मांसाहारी है और उसने जिन जीवों का मांस भक्षण किया है लेकिन उनकी हत्या उसने की है जिससे खाने वाले ने उसे खरीदा है। मारने वाला तो दोषी है ही बल्कि खाने वाला भी उतना ही पापी है जितना हत्यारा। यदि मांस भक्षण करने वाले खरीदना छोड़ दें तो कसाई जानवरों को मारना ही बंद कर देगा।

मेरा यहां प्रयोजन जीव हिंसा की प्रबल विरोधी संस्था पेटा द्वारा अमिताभ बच्चन को एशिया का सबसे सेक्सी शाकाहारी व्यक्ति घोषित करने से संबंधित विचार से है। मैं नहीं जानता कि अमिताभ बच्चन शाकाहारी है। सेक्सी तो वे होंगे ही क्योंकि वे जिस व्यवसाय से जुड़े हैं वहां इसके सिवाय और है भी क्या?

जिस समय अभिषेक तथा एशवर्य की शादी की मामूली चरचा चली थी तो बच्चन के स्वास्थ्य तथा परिवार की मंगल कामना के लिये बच्चन परिवार के सदस्यों ने चार पशु-पक्षियों की बलि कामाख्या मंदिर में चढ़ाई थी। सबसे दुखद बात है कि शहीद किये जीवों में शांतिदूत माना जाने वाला एक कबूतर भी तड़पा-तड़पा कर इन सेक्सी शाकाहारी बच्चन वंशियों ने मंदिर में चढ़ाया था और उसके रक्त से देव मूर्ति को स्नान कराया था। उसके बाद भी इन लोगों ने अपनी मंगल कामना के लिये बेकसूर, बेजुबान और बेबस जीवों की नृशंस हत्यायें करायी थीं। हो सकता है कि शायद अमिताभ बच्चन मांसाहारी न हों (वैसे विश्वास नहीं होता) लेकिन जिस प्रकार उन्होंने धर्म के नाम पर जीव हत्यायें करायी हैं क्या वे उससे जीव हत्यारे नहीं हुये? धन्य हैं ऐसे जीव हत्यारे शाकाहारी और उन्हें प्रोत्साहित करने वाली जीव रक्षक संस्था पेटा।

हमें बच्चन परिवार से इतनी शिकायत नहीं जितनी पेटा से है। पेटा विश्व की सबसे बड़ी वह संस्था है जो जीव-जंतुओं की सुरक्षा तथा संरक्षा के लिये विश्व में पहचानी जाती है। वह लोगों में जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम और करुणा का भाव तथा उनके अस्तित्व को बचाये रखने के लिये काम करती रही है।

यह पहली बार पता चला है कि वह अपने उद्देश्य से केवल भटक ही नहीं गयी बल्कि उसके विपरीत काम करने वाले तत्वों को प्रोत्साहन देने को समर्पित हो चुकी। यदि संस्था ने इस पर गंभीरता से विचार कर निर्णय नहीं लिया तो पशु-पक्षी प्रेमियों का पेटा से विश्वास उठ जायेगा।

-G.S. CHAHAL
(लेखक समाचार-पत्र के संपादक हैं)

(वृद्धग्राम का इस लेख से कोई लेना-देना नहीं है। यह लेखक का अपना मत है।)

1 comment:

  1. सही फरमाया आपने...आज टीवी पर ऐसे और भी सेक्‍सी शाकाहारियों की लिस्‍ट दिखाई जा रही थी...मैं भी चौंक गया था कि पेटा वाले ये कैसी लिस्‍ट बना रहे हैं

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कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
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hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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