पशु अधिकारों में संलग्न संस्था पीपुल्स फ़ोर एथिकल ट्रीटमेंट आफ एनिमल्स (पेटा) ने विख्यात सिनेकर्मी अमिताभ बच्चन को एशिया का सबसे सेक्सी शाकाहारी पुरुष चुना है। पेटा का यह निर्णय किसी भी प्रकार से तर्क संगत नहीं है। इस समाचार से शाकाहारी तथा पशु पक्षियों के प्रति दयाभाव रखने वाले लोगों को ठेस पहुंची है। सेक्सी शाकाहारी से इस संस्था का क्या तात्पर्य है? सेक्सी अंग्रेजी और शाकाहारी हिन्दी का शब्द है। आजकल अधिक पढ़े-लिखे लोगों को सामान्य शिक्षित समाज को शब्दजाल में उलझाने की आदत सी पड़ गयी है।
पशु-पक्षियों की हत्या करना या उनका मांस भक्षण करना दोनों ही मानवीय दृष्टिकोण से बड़े अपराध हैं। जो व्यक्ति मांसाहारी है और उसने जिन जीवों का मांस भक्षण किया है लेकिन उनकी हत्या उसने की है जिससे खाने वाले ने उसे खरीदा है। मारने वाला तो दोषी है ही बल्कि खाने वाला भी उतना ही पापी है जितना हत्यारा। यदि मांस भक्षण करने वाले खरीदना छोड़ दें तो कसाई जानवरों को मारना ही बंद कर देगा।
मेरा यहां प्रयोजन जीव हिंसा की प्रबल विरोधी संस्था पेटा द्वारा अमिताभ बच्चन को एशिया का सबसे सेक्सी शाकाहारी व्यक्ति घोषित करने से संबंधित विचार से है। मैं नहीं जानता कि अमिताभ बच्चन शाकाहारी है। सेक्सी तो वे होंगे ही क्योंकि वे जिस व्यवसाय से जुड़े हैं वहां इसके सिवाय और है भी क्या?
जिस समय अभिषेक तथा एशवर्य की शादी की मामूली चरचा चली थी तो बच्चन के स्वास्थ्य तथा परिवार की मंगल कामना के लिये बच्चन परिवार के सदस्यों ने चार पशु-पक्षियों की बलि कामाख्या मंदिर में चढ़ाई थी। सबसे दुखद बात है कि शहीद किये जीवों में शांतिदूत माना जाने वाला एक कबूतर भी तड़पा-तड़पा कर इन सेक्सी शाकाहारी बच्चन वंशियों ने मंदिर में चढ़ाया था और उसके रक्त से देव मूर्ति को स्नान कराया था। उसके बाद भी इन लोगों ने अपनी मंगल कामना के लिये बेकसूर, बेजुबान और बेबस जीवों की नृशंस हत्यायें करायी थीं। हो सकता है कि शायद अमिताभ बच्चन मांसाहारी न हों (वैसे विश्वास नहीं होता) लेकिन जिस प्रकार उन्होंने धर्म के नाम पर जीव हत्यायें करायी हैं क्या वे उससे जीव हत्यारे नहीं हुये? धन्य हैं ऐसे जीव हत्यारे शाकाहारी और उन्हें प्रोत्साहित करने वाली जीव रक्षक संस्था पेटा।
हमें बच्चन परिवार से इतनी शिकायत नहीं जितनी पेटा से है। पेटा विश्व की सबसे बड़ी वह संस्था है जो जीव-जंतुओं की सुरक्षा तथा संरक्षा के लिये विश्व में पहचानी जाती है। वह लोगों में जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम और करुणा का भाव तथा उनके अस्तित्व को बचाये रखने के लिये काम करती रही है।
यह पहली बार पता चला है कि वह अपने उद्देश्य से केवल भटक ही नहीं गयी बल्कि उसके विपरीत काम करने वाले तत्वों को प्रोत्साहन देने को समर्पित हो चुकी। यदि संस्था ने इस पर गंभीरता से विचार कर निर्णय नहीं लिया तो पशु-पक्षी प्रेमियों का पेटा से विश्वास उठ जायेगा।
-G.S. CHAHAL
(लेखक समाचार-पत्र के संपादक हैं)
(वृद्धग्राम का इस लेख से कोई लेना-देना नहीं है। यह लेखक का अपना मत है।)
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सही फरमाया आपने...आज टीवी पर ऐसे और भी सेक्सी शाकाहारियों की लिस्ट दिखाई जा रही थी...मैं भी चौंक गया था कि पेटा वाले ये कैसी लिस्ट बना रहे हैं
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