मोती चुनने निकला था। अब कही खो गया। मुझे मालूम नहीं कि मैं किस दिशा जा रहा हूं। न मैं यह जानता कि सन्नाटा मेरे आसपास क्यों मंडरा रहा है। काफी पता करने की कोशिश की मगर असफल रहा।
मेरी पत्नि का हाथ कुछ वर्षों पहले छूट गया। अब वह यहां नहीं। उसके बिना अधूरा-सा लगता है। शायद कुछ छूट गया कहीं। ढूंढ रहा हूं, मिल नहीं रहा।
वह बड़ी भली थी। उसके हाथों का स्पर्श मैं इस वक्त भी महसूस कर सकता हूं। उसकी मीठी बातें कैसे भूलूं? वह जब मुझे समझाती थी, तो मैं उसकी आंखों में खोया रहता था। उसकी आंखों में खोया रहता था। उसकी आंखें थीं ही ऐसी। वह हंसती थी तो मैं बस उसे ही देखता रह जाता था।
इतने साल बाद भी मुझे वह पहले वाली कल्याणी लगती थी। उसके सफेद बालों को मैं सहलाता रहता।
जब वह मुझसे पहली बार मिली तो उसने दो शब्द कहे,‘आप कौन?’
दरअसल मैं धोखे से उसके सामने आ खड़ा हुआ। बस में काफी भीड़ थी। मुझे पीछे से किसी ने आगे धक्का दिया। मैं गिरते-गिरते बचा। कल्याणी सामने सीट पर बैठी थी। मैं उसकी गोद में गिर सकता था। मैंने खुद को संभाला और उसके सामने खुद को खड़ा पाया। उसने मेरी ओर देखा। मैं उसके चेहरे को सारे रास्ते निहारता रहा।
वह बस से उतर गयी। मेरा स्टाप भी वही था। वह सड़क किनारे खड़े फलवाले से फल खरीद रही थी। मैंने भी एक किलो फल छांट कर अपने थैले में भर लिए। उसने शायद मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। मैं बार-बार उसे देखता रहा।
जब कल्याणी फलवाले को पैसे दे रही थी, मैं उसके चेहरे पर नजरें गढ़ाए था, एकटक, बिना अवरोध के। थैला मेरे हाथ में था। कल्याणी को मालूम नहीं था उसके आसपास किसी के हृदय में कितनी उथलपुथल हो रही है। उसे मालूम नहीं था कि कोई उसे एक नजर में जीभर कर चाहने लगा है। शायद वह यह भी नहीं जानती होगी कि किसी का दिल उसने चुरा लिया था।
अजीब था वह समय, बहुत अजीब।
वह समय ऐसा था जिसकी शुरुआत अनजाने में हुई जरुर थी, लेकिन लगने यह लगा था कि अनजाना जाना-पहचाना होने जा रहा है। कल्याणी से पता नहीं क्यों मैं इतना जुड़ाव कुछ ही पलों में करने लगा था।
मैं अपने हृदय की गति को तेज पा रहा था। मेरी धड़कन बढ़ चुकी थी। अलग-सा महसूस कर था मैं।
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, जैसा अब हो रहा था। क्या पल थे वह भी। प्रेम का अंकुर कैसे फूटता है, मैं जान चुका था।
सचमुच वह प्रेम ही था। मुझे कल्याणी से प्यार हो गया था।
‘एक लड़की मेरी जिंदगी में आने वाली है’- मैंने खुद से कहा।
मेरा मन चुप नहीं था। वह क्या-क्या कहता जा रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था, कुछ नहीं। शायद नासमझी और समझदारी के बीच झूल रहा था मेरा मन। मीठे सपनों में खोने की तमन्ना कर बैग था मेरा मन।
वह अनजान थी इस सबसे जिसके लिए मैं अजीब महसूस कर रहा था। उसे इतना पता भी नहीं था कि वह किसी के सपनों की परी बन चुकी थी।
मैं दिन मैं उसे सामने मुस्कराते पा रहा था। आंखें खोलता तो वह कहती,‘आप कौन?’
आंखें बंद करता, फिर उसकी तस्वीर उभर आती। कभी वह मेरे इतने करीब आ जाती कि मैं उसे स्पर्श करने की कोशिश करता, पर वह दूर चली जाती।
to be contd.......
-harminder singh



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कल्याणी से मिलना अच्छा लगा ...अगली कड़ियों में उनके बारे में और जानने को मिलेगा ...!!
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