बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Friday, February 19, 2010

कल्याणी-एक प्रेम कहानी-१




मोती चुनने निकला था। अब कही खो गया। मुझे मालूम नहीं कि मैं किस दिशा जा रहा हूं। न मैं यह जानता कि सन्नाटा मेरे आसपास क्यों मंडरा रहा है। काफी पता करने की कोशिश की मगर असफल रहा।

मेरी पत्नि का हाथ कुछ वर्षों पहले छूट गया। अब वह यहां नहीं। उसके बिना अधूरा-सा लगता है। शायद कुछ छूट गया कहीं। ढूंढ रहा हूं, मिल नहीं रहा।

वह बड़ी भली थी। उसके हाथों का स्पर्श मैं इस वक्त भी महसूस कर सकता हूं। उसकी मीठी बातें कैसे भूलूं? वह जब मुझे समझाती थी, तो मैं उसकी आंखों में खोया रहता था। उसकी आंखों में खोया रहता था। उसकी आंखें थीं ही ऐसी। वह हंसती थी तो मैं बस उसे ही देखता रह जाता था।

इतने साल बाद भी मुझे वह पहले वाली कल्याणी लगती थी। उसके सफेद बालों को मैं सहलाता रहता।

जब वह मुझसे पहली बार मिली तो उसने दो शब्द कहे,‘आप कौन?’

दरअसल मैं धोखे से उसके सामने आ खड़ा हुआ। बस में काफी भीड़ थी। मुझे पीछे से किसी ने आगे धक्का दिया। मैं गिरते-गिरते बचा। कल्याणी सामने सीट पर बैठी थी। मैं उसकी गोद में गिर सकता था। मैंने खुद को संभाला और उसके सामने खुद को खड़ा पाया। उसने मेरी ओर देखा। मैं उसके चेहरे को सारे रास्ते निहारता रहा।

वह बस से उतर गयी। मेरा स्टाप भी वही था। वह सड़क किनारे खड़े फलवाले से फल खरीद रही थी। मैंने भी एक किलो फल छांट कर अपने थैले में भर लिए। उसने शायद मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। मैं बार-बार उसे देखता रहा।

जब कल्याणी फलवाले को पैसे दे रही थी, मैं उसके चेहरे पर नजरें गढ़ाए था, एकटक, बिना अवरोध के। थैला मेरे हाथ में था। कल्याणी को मालूम नहीं था उसके आसपास किसी के हृदय में कितनी उथलपुथल हो रही है। उसे मालूम नहीं था कि कोई उसे एक नजर में जीभर कर चाहने लगा है। शायद वह यह भी नहीं जानती होगी कि किसी का दिल उसने चुरा लिया था।

अजीब था वह समय, बहुत अजीब।

वह समय ऐसा था जिसकी शुरुआत अनजाने में हुई जरुर थी, लेकिन लगने यह लगा था कि अनजाना जाना-पहचाना होने जा रहा है। कल्याणी से पता नहीं क्यों मैं इतना जुड़ाव कुछ ही पलों में करने लगा था।

मैं अपने हृदय की गति को तेज पा रहा था। मेरी धड़कन बढ़ चुकी थी। अलग-सा महसूस कर था मैं।

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, जैसा अब हो रहा था। क्या पल थे वह भी। प्रेम का अंकुर कैसे फूटता है, मैं जान चुका था।

सचमुच वह प्रेम ही था। मुझे कल्याणी से प्यार हो गया था। 

‘एक लड़की मेरी जिंदगी में आने वाली है’- मैंने खुद से कहा।

मेरा मन चुप नहीं था। वह क्या-क्या कहता जा रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था, कुछ नहीं। शायद नासमझी और समझदारी के बीच झूल रहा था मेरा मन। मीठे सपनों में खोने की तमन्ना कर बैग था मेरा मन।

वह अनजान थी इस सबसे जिसके लिए मैं अजीब महसूस कर रहा था। उसे इतना पता भी नहीं था कि वह किसी के सपनों की परी बन चुकी थी।

मैं दिन मैं उसे सामने मुस्कराते पा रहा था। आंखें खोलता तो वह कहती,‘आप कौन?’

आंखें बंद करता, फिर उसकी तस्वीर उभर आती। कभी वह मेरे इतने करीब आ जाती कि मैं उसे स्पर्श करने की कोशिश करता, पर वह दूर चली जाती।


to be contd.......


-harminder singh

1 comment:

  1. कल्याणी से मिलना अच्छा लगा ...अगली कड़ियों में उनके बारे में और जानने को मिलेगा ...!!

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कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
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हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com