बच्चे की मां बहुत खुश नजर आ रही है। वह खुश इसलिये है कि उसका बच्चा बड़ा हो रहा है। वह अंजान है वक्त की सीमा से जो समय-समय के साथ कम होती जा रही है। एक मां को पता नहीं कि यहीं से हर किसी के कष्टों की शुरुआत होती है। जीवन का प्रारंभ ही दुखों की उत्पत्ति है। जितना लंबा जीवन उतने अधिक दुख। मां तो मां होती है।
यह सच है कि मरने के लिये जीना जरुरी है। हम जीने के लिये कभी पैदा नहीं होते। मृत्यु के लिये सृष्टि उत्पन्न करती है। यह वरदान है जो प्रारंभ से चला आ रहा है, जिसकी समाप्ति की किसी तरह की कोई घोषणा कभी हुई ही नहीं।
सुख, समृद्धि, भय, अहंकार, झूठ-सच, ऊंच-नींच और न जाने क्या-क्या सब आज है, कल होता नहीं, केवल आज नहीं, अभी की कीमत है। ‘पीछे बहुत कुछ छूट गया’- यह केवल तसल्ली के लिये है। सच्चाई यह है कि कल कभी था ही नहीं और कल कभी आयेगा ही नहीं, है तो सिर्फ आज इसी समय।
दुख खोने का क्यों? खुशी पाने की क्यों? कुछ नहीं है यहां। यहां तक कि रिश्ते-नाते, आखिर कितनी उम्र है इनकी? दूरी का संताप अल्प समय के लिये है।
मैं गंभीर हो जाता हूं। हर विषय एक चुनौती है। प्रत्येक दिन नई बात। आगे की सोच होना अच्छा है और ऊंची सोच भी। लेकिन प्रश्न उलझाने वाले बहुत हैं। जब भविष्य की कोई औकात ही नहीं तो भविष्य की चिंता क्यों?
कई मायनों में भविष्य की मौत नहीं हुई। न ही वह जीवित है। उसकी उम्मीद है कि वह है। भूत को वर्तमान से बड़ा कभी माना नहीं जायेगा। न ही वर्तमान भविष्य से छोटा है। यह भी प्रश्न अहमियत रखता नहीं कि कालों का आपसी टकराव विषय को पेचीदगी प्रदान करता है।
उत्पत्ति के समय से जीवन के कष्टों की उल्टी गिनती शुरु हो जाती है। हम एक तरह से अनजान हैं। हमारे आसपास बहुत कुछ ईश्वर तैयारियां कर रहा होता है। हम चालाक कितने भी क्यों न हों, उसकी माया के परिणाम भुगतने का इंतजार करते हैं।
-harminder singh
Friday, January 23, 2009
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
jeevan ki vyaakhia sunder chintanparak hai bhaavmaye lekh ke liye bdhaai
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