बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

LATEST on VRADHGRAM:

Friday, January 29, 2010

दर्द बहता है



[jail+diary.jpg]


सादाब का चेहरा क्रोध से भर गया। दिल के जख्मों को फिर से कुरेदने पर दर्द बहुत होता है। उसकी चीखें गहरी बहुत होती हैं। इतनी गहरी कि पूरा शरीर थर्रा उठता है। सादाब ने अपने माथे को दोनों हाथों से पकड़ लिया और चेहरा नीचे झुका दिया। उसके घाव हरे हो गये थे।

वह चेहरे पर अजीब भाव लिये था। उसके आंसू तेजी से बहने लगे थे। अब वह रो रहा था। मैंने उसे सांत्वना देनी चाही, लेकिन उसने मेरा हाथ पीछे कर दिया। आंखें झुकी थीं, पलकें भीग चुकी थीं और उसके सुबकने की हल्की आवाज आती थी। कमीज की आस्तीन से वह बार-बार बहते पानी को पोंछता जाता। कमीज का वह हिस्सा काफी गीला हो चुका था। उसके चेहरे के साथ-साथ उसकी आंखें लाल हो गयी थीं। उसका दर्द बह कर बाहर बिखर गया था।

भगवान ने आंसू इसलिए ही बनाएं हैं ताकि हम अंदर-अंदर घुटे नहीं, ज्यादा व्यथा होने पर पिघलकर बाहर आ जाए। ईश्वर का शुक्रिया इसके लिए भी करना चाहिए। भारी मन को हल्का आंसुओं का बहना कर सकता है। पर उनका क्या जिनकी आंखों में नमीं ही न बची हो?

अंदर से तो मैं भी घुट रहा हूं। आंतरिक पीड़ा के ऐसे कितने अवसर आए होंगे जब मैं फूट-फूट कर रोया हूं। मानता हूं आंसू पीड़ा को क्षीण बिल्कुल नहीं करते, कम जरुर कर देते हैं। लेकिन बात तब हो जब पीड़ा खत्म ही हो जाए।

दुख के खात्मे के बाद सुख का कोई मतलब नहीं रहेगा। जहां सुख है, वहां दुख है। ये दोनों एक दूसरे के विपरीत होते हुए भी मिलकर चलते हैं। अंधेरा और उजाला एक दूसरे के बिना महत्वहीन हैं। उजाले की मुस्कराहट अंधकार को सिमटने पर विवश करती है।

मैं एक आम इंसान हूं जो सुख-दुख के पाटों के बीच पिस रहा है। खैर, जिंदगी में सुख क्षत-विक्षित हो गायब हो गया है। अब चारों और गिद्धों सी उदासी मंडराती है। मैं चुपचाप उसे देखता रहता हूं और कर भी क्या सकता हूं?

इंसान कमजोर होने पर दुबला लगने लगता है। उसकी ताकत कम होने लगती है। जब कष्टों का सैलाब भावनाओं से मिलकर बनता है तो शरीर की स्थिति अलग हो जाती है। बातों में वह ताजगी और रोचकता नहीं रह जाती। विचारों की मौत का सिलसिला शुरु होने लगता है। प्रारंभ में काफी उथलपुथल का दौर रहता है। मध्य में हालात बिगड़ जाते हैं और बाद में विचार शून्य समान हो जाते हैं।

--to be continued


-harminder singh

1 comment:

  1. सुख दुःख के पाटों के बीच घिरे इंसान की कातरता व्यथित करती है ...मार्मिक ....!!

    ReplyDelete

Blog Widget by LinkWithin
coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com