टूटी छत के नीचे बैठा सरधना कुछ बुदबुदा रहा था। जिस चारपाई पर वह था उसकी हालत भी उसकी उसी की हालत भी खस्ता थी। एकदम घिसी हुई सभी वस्तुएं एक परंपरा का बोध कराती थीं जिसके तहत कल्पनाशील चित्रकार कल्पना छोड़कर ऐसा दृश्य उकेरे जो वास्तविक लगे। सरधना की व्याख्या करने के लिये चारपाई के नजदीक लाठी मानों कुछ कह रही थी। शायद यही कि उसका और उसके मालिक का साथ पुराना है, सदियों का पुराना। लेकिन वक्त के दरवाजों की ध्वनि कर्कश हो चुकी है। कपाट कभी भी बन्द हो सकते हैं। सदा के लिये। समय के अन्तिम पड़ाव की और बढते कदमों को भला कौन रोक सकता है। खुद समय भी नहीं।
सरधना की बीमारी हर किसी की बीमारी है। जीवन की यह सच्चाई है। वह चुप है। बोले तो किससे। आसपास सब का सब निर्जन, शान्त, मूर्त रूप में। उस कोठरी में बरसों रहना पहले खलता था। अब आदत बन चुका है। परिवार से अलग एकान्त में रहता सरधना कुछ करने काबिल नहीं। उसके मुख पर मुस्कराहट की हल्की परछाई पड़ती है। फिर यकायक वह लाठी की तरफ हाथ बढाता है। पूरी उर्जा व्यय कर उठने की कोशिश करता है। वह बाहर की तेज धूप से बचने के लिये सिर पुराना गन्दा पर भद्दा सा कपड़ा ढक लेता है। पैरो में चप्पलें टूटी हालत में हैं। फिर चारपाई के नीचे रखा वह कटोरा उसके दूसरे हाथ में होता है। कुछ समय बाद सरधना सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे होता है। उसने सिर के कपड़े को उतार कर जमीन पर बिछा दिया और जिस पर वह बैठ गया। घण्टों बीत गये सरधना ऐसी ही मुद्रा में था मगर चुपचाप, धीरज बंधाए।
-by harminder singh
Friday, August 22, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
वृद्धों के प्रति आपकी संवेदना बहुत अच्छी है। कृपया आप एक वृद्ध द्वारा आरंभ किए गए इस ब्लांग को भी देखें-www.jyotishsachyajhuth.blogspot.com
ReplyDeleteSangeeta ji i have gone through the jyotish blog. Thanks. It has been a long time and i think it is wonderful on vradhgram. -harminder singh
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