अहिस्ता-अहिस्ता,
जाने दो मुझे,
भुलाने दो मुझे,
लम्हे जो मैंने जिए,
जब मैं हंसा,
ठिठोली की,
थे कुछ अपने,
आज अपनापन नहीं,
मैं अकेला हूं,
घेरे है मुझे कोई,
क्या बताऊं? कैसा हूं?
जानता हूं,
यहीं रहना है सब,
नहीं जायेगा साथ मेरे,
फिर क्यों उतावला हुआ?
इतना जोड़ा,
किस लिए?
दिन बादल घेर चुके,
कोहरा ठहर रहा,
धुंध जालों में लिपटी,
चुभ रही सांसों में,
थक गयी आस,
थक चुका मैं।
ओढ़ लूं कंबल सफेद,
रोने वाले कितने हैं,
काश! होता कोई अपना,
तो आज जीभर रोता,
बूंद-बूंद तिड़कती,
टुकड़े-टुकड़े मेरा मन,
रहने दो जीवन को,
प्यास अभी मिटी नहीं।
-harminder singh
Tuesday, November 24, 2009
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
अच्छा लिखा है जी।
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