गन्ना आंदोलन चला रहे किसान संगठन और उनका सहयोगी रालोद किसानों को लाभ के बजाय क्षति ही पहुंचा रहे हैं। इससे लघु और सीमांत किसान बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। छोटी जोत वाले किसान 70 फीसदी से भी ज्यादा हैं। उन्हें नवंबर में अपना कुछ खेत खाली करना मजबूरी होता है। कुछ तो रबी की बुवाई और कुछ सरदी के लिए कपड़े और दूसरी जरुरत की चीजों को उसे पैसा चाहिए। साथ ही पशुओं को चारे की समस्या भी छोटे किसानों के सामने होती है। इन सारी समस्याओं का एक ही समाधान उसके पास होता है। वह जल्दी चले क्रेशर या मिलों पर अपना गन्ना डाले। मिलों को आंदोलनरत बड़े किसान चलने नहीं दे रहे। जिससे क्रेशर और कोल्हुओं पर गन्ना आशा से अधिक पहुंच रहा है। इससे क्रेशर वालों ने जहां सीजन के शुरु में गन्ना दो सौ रुपये खरीदना शुरु किया था उन्होंने घटाते-घटाते डेढ़ सौ रुपये पर ला दिया। फिर भी गन्ना उन्हें मिल रहा है। उधर आंदोलनकारी किसान नेताओं को देखिये वे 195 रुपये पर भी मिलों को गन्ना नहीं देने दे रहे। छोटा किसान लुट रहा है। वह हर बार इसी तरह लुटता है। किसान नेता यदि समय से मिलों को चल जाने देते तो पूरा गन्ना न मिलने से मिलों को मूल्य बढ़ाना पड़ता। हो सकता है अभी तक वह दो सौ रुपये तक पहुंच जाता। इस बार गन्ना कम है। ऐसे में उसका उचित मूल्य स्वत: ही मिल जाता। जब मिल चलते तो क्रेशरों को भी मूल्य बढ़ाना पड़ता अन्यथा उन्हें गन्ना ही नहीं मिलता। मिल चलने में देरी कराकर आंदोलनकारी छोटे किसानों का ही गला घोंट रहे हैं। बड़े किसान तो आराम से बाद में भी महंगे मूल्य में अपना गन्ना बेच लेंगे। उन्हें गेहूं बोने को भी खाद उपलब्ध हो रहा है। बेचारे छोटे किसान को वह भी नसीब नहीं। कई समितियां पर तो छोटे किसानों को यदि खाद मिल भी रहा है तो उन्हें मनमानी दवाईयां और बीज खरीदने को बाध्य होना पड़ रहा है। ऐसे में वह मजबूरी में या तो ब्लैक से खाद ले रहा है अथवा बिना खाद के ही गेहूं बोने को मजबूर है। किसानों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले किसान नेता और राष्ट्रीय लोकदल के नेताओं को गरीब किसान से कोई सरोकार नहीं उन्हें तो अपनी नेतागीरी चमकाने का बहाना चाहिए। गन्ने पर हो हल्ला मचाने वालों को खाद की समस्या दिखाई नहीं दे रही जिससे आम किसान परेशान है। उसके खेत बुवाई को तैयार हैं और वह बेचारा सुबह से शाम तक भूखा प्यासा खाद मिलने की उम्मीद में रात को खाली हाथ वापस लौटता है।
आंदोलनकारी नेताओं को चाहिए कि वे गन्ना मूल्य से पहले खाद दिलाने की लड़ाई लड़ें। चीनी संकट से खाद्य संकट खतरनाक है। समय रहते खाद समस्या नहीं सुलझी तो देश में खाद्य समस्या उत्पन्न हो जायेगी।
-harminder singh



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जिस तरह बड़ी पूंजी छोटी पूंजी को तबाह करती है उसी तरह छोटे किसान भी पूंजी के खेल में हाशिए पर धकेले जाते हैं। बाजार का तर्क जल्दी ही छोटी किसानी को निगल जाता है और छोटा किसान बेरोजगारों या अद्धबेरोजगारों या गरीब किसानों की श्रेणी में पहुंच जाता है। आपने अपनी पोस्ट में अच्छे ढंग से दिखाया है कि किसानों में भी छोटे और बड़े तथा गरीब और अमीर का विभाजन है और कैसे उनके हित आपस में टकरा रहे हैं।
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