ये हंसी थी, खुशी थी,
अब करुणा बह रही,
नयनों की भाषा नहीं,
मुक्त नेत्रों से कुछ कह रही,
विदा, अलविदा,
सदा के लिये विदा,
क्या कहा, कुछ कहा,
यहां-वहां-कहां,
अकेला, निर्जन,
कुछ कह रहा,
वेदना की लहर,
समझा रही अपार,
सागर मद्धम गति का,
अश्रु जल का अंबार,
विदाई भली, दूरी बड़ी,
काया नहीं, जीवित चली,
अनंतता की ओर
मगर पुकार नहीं,
अनसुनी ध्वनि,
यम की गली,
वह चली,
बिल्कुल अकेली,
निष्ठुर नहीं,
फिर भी चली,
वहीं एकांत में,
मरघट तक सभी चले,
चक्षू आद्र हुये, नयन सजल,
कैसी दशा मन बैठे, ठिठके,
अब बस यहीं तक चले साथ,
पथ पार करेगा जीव पैदल,
यहीं रहा, यहीं का सब,
था क्या? क्या तेरा? किसका?
अकेला उड़ चला, ली विदाई,
लीन हुआ जो जहां का,
मगर व्यथा करुणा की
मन को कैसे रोके,
बार-बार कर रहा पुकार,
नहीं, लौटो अवश्य इक बार।
हरमिन्दर सिंह द्वारा
Sunday, May 18, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
कविता बहुत अच्छी लगी.इन का आशीष हमारे साथ हमेशा रहता है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता है.
ReplyDeleteBhaut bhaut dhanyad.
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