वृद्धों का पहला ब्लाग सोमवार, 10 मई 2008 यह प्रसन्नता की बात है कि वृद्धों का पहला ब्लाग का प्रारंभ कर दिया गया है। हमने बहुत कुछ नजदीक से देखा हैऔर एहसास किया है कि एक दुनिया हमारे पास बसती है जिसमें बूढ़े हैं। ये ब्लाग समर्पित है ऐसे ही लोगों को जो जीवन भर संघर्ष करते रहे, आज का संघर्ष पहले से जुदा है। पूरा पढ़ें>>>> |
वृद्धग्राम एक ब्लाग अवश्य है, लेकिन मैं गूगल को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उनके कारण हम और आप एक दूसरे से मुखातिब होते हैं , चाहें दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हों।
मेरे पिताजी को यह देखकर काफी खुशी हुयी कि मैं यह पवित्र कार्य कर रहा हूं. वैसे मैं अब अपने अखबार में भी कम लिख पा रहा हूं। सोच रहा हूं वहां भी एक वृद्धों का कालम शुरु कर दूं।
क्षेत्रीय समस्याओं पर मैंने बहुत लिखा है। अब ऐसे कार्य की शुरुआत कर चुका हूं जिसका संबंध बुढ़ापे से है। यह सच्चाई है और एक दिन सभी को बूढ़े होना ही है।
मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मेरे इस कार्य को परखा, समझा और सराहा। मैं उन का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जो वृद्धग्राम के नियमित पाठक हैं।
मैं यह सिलसिला जारी रखना चाहता हूं और आप का सहयोग बना रहे तो और अच्छा रहेगा.
डा. चन्द्रकुमार जैन ने ‘इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल’ शीर्षक पोस्ट पर टिप्पणी की,‘‘ये ब्लॉग तो श्रद्धा का पवित्र स्थल है. बहुत ज़रूरी और बेशक़ीमती प्रस्तुति.
हमारे बुज़ुर्गों ने जो कुछ दिया और जिया है उसे जानने.समझने और उनके प्रति दायित्वबोध विकसित करने की सख़्त ज़रूरत है.
निदा फ़ाज़ली साहब के एक शेर के माने हैं कि
माथे पर जिसके सिलवटें ज़्यादा हैं वह
इसी वज़ह से कि ज़िंदगी ने उस इंसान को कुछ ज़्यादा पहना है.
लिहाज़ा इन तज़ुर्बेकारों का लाभ हर पीढ़ी को उठाना चाहिए.’’
चन्द्र गुप्ता ने कहा था,‘’वृद्धों का अनुभव अगर नौजवानों की राह बने तो परिवार मजबूत होंगे समाज सशक्त बनेगा उसमें समरसता आएगी भारतीय समाज परिवार पर आधारित है. परिवार टूट रहे हैं, इस से समाज में टूटन आ रही है. यदि वृद्धों को सम्मान मिलेगा तो सब का भला होगा’’.
उड़न तश्तरी साहब की एक comment में हमेशा याद रखता हूं। उन्होंने पोस्ट ‘दो बूढ़ों का मिलन’ पर कहा था,‘‘बस सिलसिला बनाये रखिये।’
आशा करता हूं कि यह सिलसिला यूं ही चलता रहे।
धन्यवाद,
हरमिन्दर सिंह
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