नेहरु स्मारक इंटर कालेज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने दुख व्यक्त किया कि वृद्धों की उपेक्षा की जा रही है। उन्होंने भावुक होकर कहा,‘बेटे और बहुओं के व्यवहार इस प्रकार के हो गये हैं कि वे हमें बोझ समझ रहे हैं। हमारा सुख-दुख उनके लिये कुछ नहीं।’
वे अक्सर एक पान के खोखे पर आकर बैठ जाते हैं। पान खाते नहीं, सिगरेट और नशे से कोसों दूर हैं। बस एक-आद अपनी उम्र के मिल जाते हैं, उनसे घंटों बतियाते हैं। पान वाले भी एक बुजुर्ग हैं। बुजुर्गों के किस्से बहुत देर तक चलते हैं। मैंने फाटक से गुजरते वक्त कई बार देखा है उन्हें।
अपनों की दूरी ‘बेटे और बहुओं के व्यवहार इस प्रकार के हो गये हैं कि वे हमें बोझ समझ रहे हैं। हमारा सुख-दुख उनके लिये कुछ नहीं।’ गिरीराज सिद्धू, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य |
आज उनका एक लड़का उनसे बात नहीं करता। लेकिन वे अकेले नहीं हैं, मगर अपनों से दूरी का दुख तो होता है। इसे शायद वे मन में दबाये रहते हैं। कुछ पल की खुशी उन्हें बहुत कुछ दे जाती है और वे उसमें खुद को सम्माहित कर लेते हैं।
मैं दुखी हूं क्योंकि मैं उनके दुख को समझ सकता हूं। वे दुखी हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि बुढ़ापे में अब वे अकेले पड़ गये हैं। अन्य दो बेटों से वे उतने दूर नहीं हैं, लेकिन बुढ़ापे में मन कितना सा होता है, ये वे ही जान सकते हैं जिन्होंने उसे देखा है। गिरीराज जी तो अब उसे जी रहे हैं। बहुओं ने उन्हें दुखी कर दिया है।
बचपन और बुढ़ापा दोनों एक सीमा के लिये आते हैं, बिना रुके बहते हैं। बचपन की ठिठोली, चंचलता नहीं है, आज शांत रहने की इच्छा है, प्रेम की प्यास है। अपनों के प्रेम की, उनके स्नेह की।
समारोह में आये कई वृद्ध अपनी दास्तान पूरी तरह खुलकर तो नहीं बता सके लेकिन उनके विचारों से यह साफ झलक रहा था कि उन्हें गम भी है और हैरानी भी। गम इस बात का कि वे अपनों ने ही पराये कर दिये। हैरानी इसकी कि उन्हें इसका कतई भी अंदाजा नहीं था कि जिन्हें उन्होंने पाल-पोसकर लायक भर बनाया, वे आज उनसे किनारा कर रहे हैं।
बाप की उंगली और बचपन का प्यार कब बच्चे भूल जायें यह अहसास होने का पता नहीं लगता।
हरमिन्दर सिंह द्वारा
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