बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Saturday, May 10, 2008

वृद्धों का पहला ब्लाग

यह प्रसन्नता की बात है कि वृद्धों का पहला ब्लाग का प्रारंभ कर दिया गया है। हमने बहुत कुछ नजदीक से देखा हैऔर एहसास किया है कि एक दुनिया हमारे पास बसती है जिसमें बूढ़े हैं। ये ब्लाग समर्पित है ऐसे ही लोगों को जोजीवन भर संघर्ष करते रहे, आज का संघर्ष पहले से जुदा है। आज यादें हैं, तन्हाई है, एकाकीपन है और बस कुछपलों की मिठास भी जो उन्हें अपनों को देखकर मिलती है।

सचमुच उनकी दुनिया वीरान है, लेकिन बहुत से ऐसे हैं जिनके अपने उनके पास हैं। हम ऐसे ही बुजुर्गों कीदुनियाको पास से देखेंगे जब वे हंसेंगे, हमें गुदगुदायेंगे और हमारे संग गायेंगे भी। कुछ ऐसी विभूतियों के बारे मेंबातकरेंगे जो बुढ़ापे में भी नौजवान की भांति खड़े हैं। ऐसे ही एक मा. होराम सिंह का हम यहां जिक्र कर रहे हैं।

ये लोग वरिष्ठ नागरिक हैं, उम्रदराज हैं, अनुभवी हैं, जानकार हैं और इन्होंने सिखाया है दूसरों को। ये अध्यापक हैं, डाक्टर हैं, अपने-अपने क्षेत्रा के माहिर। समाज को नये रास्ते पर लेकर गये हैं और उन्हें रास्ता दिखाया है जिन्हेंकहीं कोने में छोड़ दिया गया था। वे जुड़े हैं आपने काम में, संलग्न हैं सेवा-भाव से, शायद इसी सोच के साथ किथोड़ा सा माटी का कर्ज उतार सकें। आइये जानते हैं, मिलते हैं उनसे-


शिक्षकों के शिक्षक

मा. होराम सिंह

मास्टर साहब की उम्र 85 साल है पिफर भी कृषि कार्य मेंअधिकांश समय लगाते हैं


बेटा आइ..एस है, अब सेवानिवृत्त


मूढ़ा खेड़ा कालेज के . श्योराज सिंह और कृपाल सिंह उनकेशिष्य रह चुके हैं


छीतरा के मुंशी निर्मल सिंह उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं


मा. होराम सिंह

ग्राम बल्दाना निवासी मा. होराम सिंह को शिक्षा क्षेत्र में किये उल्लखेनीय योगदान के लिये जुबीलेंट ने सम्मानित किया है। उन्हीं के साथ उनके दो शिष्यों स. श्योराज सिंह तथा मा. कृपाल सिंह को भी सम्मानित किया गया। मा. होराम सिंह के बड़े सुपुत्र वीरेन्द्र सिंह आइ.ए.एस. हैं जो अब सेवानिवृत्त हो चुके। इसी से मास्टर साहब की दीघार्यु का पता चलता है। उनका स्वास्थ्य आजकल के नवयुवकों से बेहतर है। उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता कि वे इतनी लंबी आयु के हैं।

अपने अध्यापन काल में उन्होंने बहुत परिश्रम तथा लग्न के साथ पढ़ाया। उनके अनेक शिष्य आज भी उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। वे जहां कहीं भी गये लोगों ने उनका सम्मान किया। वे बहुत ही सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले महानुभाव हैं। उन्हीं की प्रेरणा और शिक्षा का प्रभाव था कि उनके बड़े पुत्र वीरेन्द्र सिंह आइ.ए.एस. बने।

मा. होराम सिंह बहुत ही सादगी से अपने गांव बल्दाना में जीवन व्यतीत कर रहे हैं तथा लंबी आयु के बावजूद कृषि कार्य में अधिकांश समय लगाते हैं।

ग्राम छीतरा निवासी स्व. मुंशी निर्मल सिंह उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं। अध्यापक के रुप में उन्होंने छीतरा के प्राथमिक विद्यालय का कार्यभार ग्रहण किया था। मा. साहब ने केवल छात्र-छात्राओं को ही नहीं बल्कि ग्रामीण लोगों के कार्य व्यवहार में भी सुधार किया। वे हमेशा न्याय का पक्ष लेते हैं। उनके जीवन आदर्शों पर लिखा जाये तो एक बड़ा ग्रंथ तैयार हो सकता है। यहां तो उनके बारे में एक अंश मात्र भी नहीं लिखा गया।

हरमिन्दर सिंह द्वारा

10 comments:

  1. स्वागत है !
    अच्छा है हाशिये की आवाज़ें यहाँ गूंजने लगी हैं ...
    उम्मीद है आपकी दुनिया की हकीकत और अनुभव समझ पायेंगे ।

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  2. सुस्वागतम ,उम्मीद है बुजुर्गो से हमे भी काफ़ी कुछ सीखने समझने को मिलेगा :०

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  3. bahut prashansniya paryas hai ....kammar kaske jute rahiye...

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  4. इतने अच्छे ब्लॉग की शुरुआत के लिए बधाई और शुभकामनाएं ।

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  5. वृद्धों का ब्लाग आरम्भ करने के लिये साधुवाद और बधाई! यह बहुत ही पवित्र विचार है। हमारे वृध माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी उतने ही प्यार और सेवा के अधिकारी हैं जितना उन्होने अपने बच्चों के लिये किया है।


    खुशी की बात है कि ४५ वर्ष से उपर के लोगों के समग्र हित को ध्यान में रखकर बनायी गयी हिन्दी में एक और साइट उपलब्ध है।

    http://45plusindia.com/default.aspx

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  6. वाकई इस तरह के लेख की आज सक्त आवश्यकता है। स्वागत है आपका, जल्द नई पोष्ट दें, इंतजार रहेगा।

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  7. बहुत उम्दा पहल है. हार्दिक स्वागत है. आपके अनुभवों का लाभ उठायेंगे और मार्गदर्शन भी करते रहें.

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  8. आपका पोस्ट पढ़कर बरसों पहले पढ़ा गया वागर्थ के वृद्ध विशेषांक की याद आ गई...अच्छी शुरुआत है...बधाई स्वीकार करें...

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  9. हरमिन्दर सिंह जी, बहत अच्छा लगा आपने यह ब्लाग प्रारम्भ किया. वृद्धों का अनुभव अगर नौजवानों की राह बने तो परिवार मजबूत होंगे, समाज सशक्त बनेगा, उसमें समरसता आएगी. भारतीय समाज परिवार पर आधारित है. परिवार टूट रहे हैं इस से समाज में टूटन आ रही है. यदि वृद्धों को सम्मान मिलेगा तो सब का भला होगा. एक बार फ़िर वधाई और शुभकामनाएं.

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कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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