उस ठूंठ को मैं देख रहा हूं। वह मेरे सामने है। उसकी काया मेरी तरह है। फर्क इतना है कि वह जीवन से हार गया, मेरी जंग जारी है।
पता है पहले वह हरा-भरा था। चिड़ियां चहचहाती थीं उसपर। कितना आंनद था। कितना सुहानापन था।
आज वह सूना है। कोई पास नहीं, लेकिन देखो न फिर भी वह खड़ा है। यह जीवन की दास्तान है- कभी शुरु हुई थी, अब खत्म हो रही है।
रुखापन सिमटा हुआ मेरे साथ चल रहा है। विवशता का आदि होना पड़ता है। समय ही ऐसा है।
अगर कोई चौराहा है, तो सभी रास्ते एक से हैं। वही वीरान राहे हैं जहां हमेशा सूखी हरियाली शरण लिए रहती है। एहसास होता है कि कुछ नमी अभी बाकी है।
-harminder singh
Friday, June 4, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
|
हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
|
|
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
|
|
|
अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
वृद्धों की सोच पर आधारित...अच्छी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजो आज नया है कल पुराना होगा ही और यही चिरंतन सत्य है…………………बहुत सुन्दर लेख्।
ReplyDeleteनमी बाकी होने का एहसास भी कहाँ कम है ...!!
ReplyDeleteकुछ कहते नहीं बन रहा ...वो क्या चीज है जो चलाती है जीवन को ...
ReplyDelete