बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

LATEST on VRADHGRAM:

Saturday, May 29, 2010

सीधी बात नो बकवास

पूरी तरह तो याद नहीं कि जैस्सी जी ने हमारी क्लास कब ज्वाइन की थी। जब वे हमारी क्लास में पहली बार आईं थीं तो हम ज्यादातर बच्चों ने उन्हें अजीब समझा था। वे दक्षिण भारतीय पृष्ठभूमि से नाता रखती हैं। साइंस की क्लास में उनका घंटा शुरु होते ही उतनी फुर्ती से आना कई बार आगे बैठे लोगों का बैंड बजा देता था। मेरा पाला वैसे उनसे कम ही पड़ा। वैसे भी मेरा नेचर कुछ शर्मीला था। मैं शायद टीचरों से बचने में ही समझदारी समझता था। क्या पता कब कौन सा सवाल दाग दें और आपसे न बात बने, न सवाल उचरे। मतलब रोटी गले में ही अटकी रह जाये। फिर पानी पीने को अंधों की तरह ग्लास ढूंढते फिरो।

जब जैस्सी जी का घंटा आता तो मैं थोड़ा बेआराम महसूस करता। पता नहीं स्टूडेंट्स के साथ ऐसा क्यों होता है? टीचर के सामने चूहे और बाद में शेर। वैसे मुझे न ही गुर्राना आता था और न ही दुम दबा कर भाग जाना। और हां,...न ही मैं अपने समय में खरगोश हुआ करता था। वैसे मेरे कुछ साथी खुद को चीता समझते थे, पर बाद में वे भी भीगी बिल्ली बन गये थे। जैस्सी जी क्लास में प्रवेश बाद में करतीं सवाल का प्रहार पहले शुरु हो जाता। मेरे कुछ साथी कलम या पैंसिल गिराकर छिपने की असफल कोशिश करते। क्योंकि टीचर की निगाह से वे बच नहीं पाते थे। एक टीचर के सामने सारे बच्चे शायद चूहे की तरह ही होते हैं, जिन्हें एक कुर्सियों और मेजों वाले शानदार फर्श वाले बिल में कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है। लेकिन ऐसा मुझे कभी लगा नहीं। आज जब मैं पुराने दिनों को याद करता हूं तो पाता हूं कि वाकई वे दिन शानदार थे। शिक्षकों की एक-एक बात आज बिल्कुल साफ हो रही है। शायद वे हमारे भविष्य के लिए हमें बिल में बंद किये थे। वैसे बिल में पंखे भी लगे थे। अरे हां...खिड़िकयां तो मैं भूल ही गया। लेकिन अगर किसी ने खिड़की का कांच जानबूझकर या धोखे में तोड़ दिया तो जुर्माना देने के लिए प्रिसिंपल तैयार हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई जानबूझकर खिड़की का कांच तोड़ेगा।

एक बात बहुत महत्व रखती है कि आप खुद पर कितना भरोसा करते हैं। हम कहते हैं कि आत्मविश्वास भी कोई चीज होती है। जैस्सी जी में वह आज भी उतना ही बरकरार है। मुझे उनके विषय में सुनने को मिल जाता है। वे उस दिन मेरे पास से मुस्कराते हुए गुजरी थीं। कमाल है न कि हम कई बार ऐसे हो जाते हैं कि पता ही चलता कि कहां हैं? इतने सालों बाद मुलाकात करने जा रहे हैं उन लोगों से जिनसे आपने जिंदगी के पायदान पर चलना सीखा। उनके सामने आने पर आप उनसे चंद शब्द नहीं कह पाये। क्या मुस्कराकर आप उनका उधार चुकता कर सकते हैं? शायद नहीं, लेकिन उस समय मैं शायद खुद को कुछ ज्यादा ही भावुक कर बैठा था।

कैमिस्ट्री मुझे उतनी बेहतर कभी नहीं लगी। मगर जैस्सी जी ने हमारी क्लास में बच्चों में एक उत्साह जगाने की कोशिश की। एक तरह की एनर्जी का संचार करने की कोशिश की गयी। कुछ बातें जो उन्होंने बताई थीं शायद ही कोई मेरा साथी भूला होगा। कैमिकल्स से दोस्ती करना हमें आ ही गया था। एक बात ओर मेरे दसवीं में सांइस में सर्वाधिक नंबर आये थे। बायोलोजी के एक्सपैरिमेंट भी उन्होंने कई कराये थे।

एक बार की बात है हमें बायो लैब ले जाया गया। हमें आनियन पील (प्याज की छील) को माइक्रोस्कोप से देखना था। जैस्सी जी ने पहले हमें खुद करके दिखाया कि किस तरह माइक्रोस्कोप को सैट किया जाता है, बगैरह, बगैरह। स्लाइड को किस तरह तैयार किया जाता है, यह भी हमने सीखा। उन्होंने साथ में यह भी हिदायत दी कि स्लाइड को तोड़ मत देना। मैं खासकर काफी उत्साहित था। मेरे तमन्ना थी कि जो मैंने किताबों में देखा है, उसे आज वास्तव में देखने का मौका मिल रहा था। था न अजीब अहसास। हमने स्लाइड तैयार कर ली थी। माइक्रोस्कोप से एक्सपैरिमेंट को किया भी। मेरे पास के एक लड़के ने पता नहीं कैसे अपनी स्लाइड चटका दी और धोखे से मेरी जगह रख दी। मुझे सब पता था पर यह वह जानता था या मैं या फिर भगवान जिसके किसी अदालत में कभी बयान नहीं लिये गये। मैं मन की मन डर रहा था कि अगर जैस्सी जी को पता लग गया तो मैं तो गया काम से। उन्होंने शायद ही मुझे कभी डांटा था। मगर डर तो सबको लगता है। यहां उस समय माउंटन ड्यू नहीं थी जो कह सकता कि डर से मत डरो, डर के आगे जीत है।

घबराहट सिमटने का नाम नहीं ले रही थी। तभी जैस्सी जी की नजर चटकी हुई स्लाइड पर पड़ गयी। उन्हें लगा कि मैंने स्लाइड को तोड़ दिया। उन्होंने यह कहा,‘हरमिन्दर यह क्या कर दिया?’। आसपास के सभी बच्चे मेरी तरफ देख रहे थे। जब नजरें घूरती हैं भरी महफिल में तो कैसा एहसास होता है, यह हम जानते हैं। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। आज भी मेरे वह बात याद है और शायद जिंदगी भर याद रहे। शुभांगी और सुमित को मैंने यह एक बार बताया भी था। बाद में क्लास में आकर भी उन्होंने उस बात को   दोहराया कि बच्चे अपना एक्सपैरिमेंट ढंग से नहीं कर सकते। ऐसा आगे से नहीं हो। मैं क्या कह सकता था? मैंने उनसे कहा भी कि मैंने ऐसा नहीं किया। कोई गवाह भी तो नहीं था। अब भगवान को तो उनके सामने पेश नहीं किया जा सकता था। जो देखा था, वह दिख गया था। मेरा पूरा दिन खराब ही गया होगा और क्या? अब मैं उनसे कभी मिलूंगा तो इस बात को जरुर    बताउंगा कि आपने मुझे धोखे में ऐसा कह दिया था। उस समय तो बुरा लगा मगर आज समझ आता है कि उनका कहना सही था। जो उन्होंने देखा कहा और उनकी जिम्मेदारी बनती थी लैब के रखरखाव की। आगे उन्हें जबाव देना था, हमें नहीं।

वक्त के साथ काफी कुछ धुंधला पड़ जाता है। लेकिन कुछ लोग फिर भी उसी तरह कभी न कभी याद आ ही जाते हैं। हम उनसे बहुत कुछ सीखे थे और उनकी सीखें शायद ही कभी भूल पायें। जैस्सी जी से आप कुछ सीख सकते हैं तो वह बिना थके पढ़ना। उनमें समझाने की एक अलग तरह की खूबी है जिसे मैं समझता हूं कि विज्ञान के शिक्षकों में होना बहुत जरुरी है। मुझे पता है कि हम उनकी क्लास में कभी बोर नहीं हुए, हां कई बार सहम जरुर गये। वैसे वे आपको डराती नहीं, आप खुद घबरा जाते हैं। भई उनके मुताबिक जो सही है, वह तो सही ही है। कुछ खरी बातें कह देंगी, लेकिन उनसे पढ़ाई बेहतर ही होगी क्योंकि वे बातें आपके भले के लिए ही होंगी। उन्होंने मुझे काफी प्रभावित किया। यही कारण था कि कुछ शिक्षकों को मैं कभी भूल नहीं सकता। वे किसी न किसी तरह जेहन में रहेंगे ही।

मैं चाहता हूं कि एक दिन उनकी क्लास में बैठकर फिर से पुराने दिनों को याद करुं। शायद इसी बहाने कुछ पहले जैसा हो जाये। स्कूल के दिन तो स्कूल के ही होते हैं। पता नहीं क्यों जब हम उन्हें जीते हैं तो उतने अच्छे नहीं लगते, जबकि याद करने पर बड़े ही शानदार लगते हैं। यकीनन।

वैसे जैस्सी जी के बारे में एक बात कहना    चाहूंगा-‘‘सीधी बात नो बकवास।’’

-harminder singh

Tuesday, May 25, 2010

मन कहता है

[jail+diary.jpg]



आज सुबह से सादाब का चेहरा रुखा नहीं लग रहा। उसने मुझे बताया कि उसकी अम्मी ने उसे हौंसला रखने को कहा है। वह उसे अच्छी तरह याद रहता है, लेकिन वक्त उसका हौंसला तोड़ता है। वक्त से लड़ने की ताकत किसी में नहीं। सादाब ने कई जबाव मुस्कराहट के साथ दिये।

ऐसा क्यों होता है कि किसी की मुस्कान आपके चेहरे की खोई रौनक लौटा देती है। हमें एहसास करा देती है कि हम अभी भी खिल सकते हैं। उन लोगों के साथ मित्रता किसी के जीवन को बदल सकती है जो सुख-दुख में एक समान रहते हैं। वे हर छोटी उपलब्धि का जश्न मनाने से नहीं चूकते। उन्हें लगता है कि हंसी-खुशी जीवन को बेहतर बना सकती है। ऐसा ही होता है जब हम उन लोगों से मुखातिब होते हैं जो हमें मुस्कराहट का मतलब बताते हैं।

मैं खुद को देखता हूं तो पाता हूं कि क्या मैं जीना भूल गया? क्योंकि मैं हंसना भी भूल गया।

जीवन तो जीवन है। यह आया है जाने के लिए। एक हवा का झोंका आया और हम वहां नहीं थे। पता नहीं क्यों नीरसता पीछा नहीं छोड़ती?

मन को उग्र और शांत करने के तरीके हमारे पास मौजूद हैं। हम उनका कितना उपयोग कर पाते हैं, यह हम स्वयं नहीं जानते। यह लिखते हुए सहज लगता है कि मन बैरागी हो गया। यह कहते हुए सहज लगता है कि हम कुंठा से पार पा सकते हैं। मेरा विचार है कि खुद की ऊर्जा को अच्छी तरह पहचाना जाए ताकि हर परेशानी का हल निकल सके। लेकिन मैं ऐसा करने में असमर्थ हूं। यह उतना आसान भी तो नहीं। अक्सर कुछ चीजें देखने में अच्छी लगती हैं, कहने में भी, लेकिन जब करने की बारी आती है तो उनसे पीछा छुड़ाने का मन करता है।

मन ये कहता है, मन वह कहता है। मन का काम ही कहना है। उसकी मान मानकर इंसान क्या से क्या हो जाता है। मेरी सोच यह कहती है मन के आगे हम बेबस हैं। यह बिल्कुल गलत नहीं है। मन की गलतियां इंसान को भुगतनी पड़ती हैं। आखिर हम इतने बेबस क्यों बनाए गए हैं? हमारे भीतर का इंसान कभी कमजोर है, तो कभी ताकतवर बन जाता है। यह अजीब ही तो है।

बाहर का प्रभाव हमें अंदर तक प्रभावित करता है। वह वक्त किसी भी तरह से उतना बेहतर नहीं कहा जा सकता।


-to be contd....

-harminder singh

Monday, May 17, 2010

इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी




मैं एकांत में कुछ बुन रहा हूं,

शायद ये वक्त ने मुझे सिखलाया है,

खुद से जूझ रहा हूं,

शायद यह भी वक्त की वजह से है,

शरीर से कुछ कह नहीं सकता,

वह तो केवल सहना जानता है,

चलो इस बहाने खुद से कुछ बातें तो हो जायेंगी।


-harminder singh

Friday, May 14, 2010

हम प्यार क्यों करते हैं?

[boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg]


‘‘मुझे आज तक समझ नहीं आया कि हम प्यार क्यों करते हैं? इतना जरुर जानते हैं कि कोई रिश्ता ऐसा है जो हमें दिख नहीं पाता और हम प्यार करते हैं।

कई लोग ऐसे होते हैं जिनके साथ हम अलग-अलग तरह से प्रेम करते हैं। माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त, आदि प्यार के बंधन में जकड़े हैं और हम उनके। यह प्यार ही तो है जो हमें अपनों से जोड़े रहता है।

प्यार एक अनजाना, न दिखने वाला एहसास है जो हमें बांधे रखता है।’’ इतना कहकर बूढ़ी काकी चुप हो गयी।

मैंने कहा,‘वाकई यह अजीब होता है, कि हम प्यार करते हैं और फिर उसका एहसास करते हैं। खुशी मिलती है आंतरिक तौर से। कई बार दर्द का भी एहसास होता है। खुशी और गम दोनों से ही प्रेम आगे बढ़ता है.’

’मैंने किसी से प्यार नहीं किया। मगर मुझे ऐसा कई बार लगा कि मैं प्यार करने लगा हूं। जब सब बिखर गया, तब मुझे एहसास हुआ कि अरे! वह तो प्रेम था। मैं फिर क्यों अनजान रहा? मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि एहसास बहुत अच्छा था। एक अजीब तरह का एहसास। मुझे इसका अध्ययन करने का समय ही नहीं मिला काकी। मैं अपने कामों में ही उलझा रहा। मैं प्यार करना चाहता था, मगर कर न सका। जब सोची तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लेकिन मैंने खुद को समझा लिया और मना भी लिया कि प्यार उन से किया जा सकता है जो हमेशा आपके पास रहें। मेरा परिवार है, कुछ स्पेशल लोग हैं जिन्हें मैं चाहता हूं। पर काकी मुझे नहीं लगता कि हमें कहीं दूसरी जगह प्यार तलाशने की आवश्यकता है क्योंकि इतना कुछ तो हमारे पास है।’

इसपर काकी बोली,‘तुम ठीक कहते हो। मगर बेटा प्यार का रहस्य बड़ा ही गहरा है। इसे शायद भगवान भी समझकर और समझने की कोशिश करे। यह तो कहीं भी, किसी को भी, किसे से भी हो सकता है। हां, हमारा परिवार हमें चाहता है, हम उन्हें और कुछ अहम लोग भी हमें चाहते हैं। इस तरह हम एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। भाव बहते रहते हैं, हम प्यार करते रहते हैं।’

‘तुम्हें पता है हम प्यार जाने-अनजाने में भी कर लेते हैं। वह प्यार कई बार इतना गहरा हो जाता है कि हम समझ नहीं पाते कि अब क्या करें? पशोपेश आड़े आता है और इंसान को बिखरने पर मजबूर भी कर देता है। तब अपने ही होते हैं हमें संभालने के लिए। यह विषय इतना व्यापक है कि मैं खुद उलझन में हूं कि कहां से शुरु करुं। खैर, तुमने कभी किसी अनजाने से प्यार किया हो तो इसका मतलब शायद समझ जाओ।’

मैंने कहा,‘मुझे नहीं लगता कि मैं कभी प्रेम-पाश में पड़ा हूं, मगर ऐसा कई बार लगता भी है। अधिकतर बार हम प्रेम में तब पड़ जाते हैं जैसा मैंने सुना है, जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो हमें दूसरों से अलग लगता है। मुझे ऐसे कई लोग मिले। मुझे नहीं लगता कि मैंने उनसे प्रेम किया, पर हां, इतना जरुर हुआ कि मैं उनसे हद से अधिक लगाव कर बैठा था। आजतक उनसे दूरी का दर्द मुझे सालता है। इसे प्रेम कहा जाये या कुछ ओर, मैं नहीं जानता।’

‘आकर्षण हुआ जरुर था, लेकिन वह अधिक समय तक नहीं रहा। बाद में शायद मैं उतना घुलमिल नहीं सका, या मैं घबरा गया।’

काकी ने मुझे गौर से देखा, फिर बोली,‘ओह! तो तुमने भी प्यार किया है। शायद वह प्यार की तरह था या उसे तुम सच में प्रेम कह सकते हो। आकर्षण हुआ और तुमने उसे सबकुछ मान लिया। ऐसा होता है, क्योंकि शुरुआत अक्सर ऐसे ही होती है। हृदय में उथलपुथल होती है और इंसान में कशमकश। कई बार एक झलक में बहुत कुछ हो जाता है, कई बार वर्षों लग जाते हैं। वैसे प्रेम का भाव काफी मजबूत होता है, यदि उसे ढंग से निभाया जाये।’

’मैं खुद से जूझ रही हूं लेकिन खुद से प्रेम भी कर रही हूं। जीवन से भी तो हम प्रेम कर सकते हैं। बुढ़ापे से भी प्रेम किया जा सकता है। बात सिर्फ नजरिये की है। कोई किसी से भी प्यार कर सकता है। प्यार का मतलब भाव से है, जब भाव से भाव का मिलन होता है तो एक और भाव उत्पन्न होता है। वह है प्यार का भाव जिसका अदृश्य होना उसकी खासियत है। वैसे भाव दिखते ही नहीं, महसूस किये जाते हैं।’

-harminder singh


related post:
प्रेम कितना मीठा है

Saturday, May 8, 2010

युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध



 



सत्तर साल की आयु के एक वृद्ध को पत्नि मर जाने के बाद जब दुनिया नीरस और बेगानी दिखाई देने लगी तो उसने अपनी आयु से आधी आयु की एक विधवा महिला से शादी रचा ली। इस शादी को अब आठ साल हो गये। उसके लिए अब यह शादी एक अभिशाप बनकर रह गयी। गजरौला थाना क्षेत्र के गांव महमूदपुर सल्तानठेर का यह बूढ़ा जहां सौतेले बेटों की मार खा रहा है, वहीं कौड़ी-कौड़ी का मोहताज हो गया है। हालांकि जब उसने दूसरी शादी की थी तो उस समय वह पचास लाख रुपयों से अधिक की संपत्ति का स्वामी था। दूसरी शादी से जहां वह संपत्ति गंवा बैठा वहीं अब सौतेले बेटों से उसे बराबर जान का खतरा बना हुआ है। दूसरी बहू (43 वर्ष) उसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट की तैयारी में है। अपने जीवन की सुरक्षा की गुहार को वृद्ध ने दिसंबर में थाने में तहरीर भी दी थी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई बल्कि महिला और उसके दो बेटों ने वृद्ध पर और भी अत्याचार करने शुरु कर दिये।

  थाने में अपनी फरियाद लेकर आये 78 वर्षीय वृद्ध मुंशी पुत्र रामचंदर ने बताया,‘दस वर्ष पूर्व पत्नि की मौत हो गयी थी। मेरे कोई पुत्र नहीं था। केवल चार लड़कियां थीं जिनकी शादी हो चुकी। सभी अपने घर हैं।’

  पत्नि की मौत के एक साल बाद वृद्ध ने दूसरी शादी करने का पक्का इरादा किया। वृद्ध के अनुसार उसे किसी के माध्यम से किसी अन्य गांव की 35 वर्षीय एक विधवा महिला मिली। वह एक शर्त पर तैयार हो गयी। उसकी शर्त थी कि वृद्ध उसके नाम दस बीघा जमीन कराये। वृद्ध महिला के लिए बेचैन था। उसने भूमि लिखाकर महिला से पुनर्विवाह रचा लिया।

  वृद्ध का कहना है कि तीन साल उनके बीच बहुत मधुर प्रेम रहा। जिसके बाद उसने बताया कि उसके पहले पति से दो बेटे हैं। वह उन्हें यहां लाना चाहती है। वृद्ध के अनुसार उसने दोनों लड़के प्रेमदेव और भगवानदास जो छह वर्ष पूर्व क्रमश: 14 और 11 वर्ष के थे (आज 20 और 17 वर्ष के हैं) अपने पास बुला लिए।

  वृद्ध का कहना है कि शादी के समय महिला ने उसे लड़कों के बारे में कुछ नहीं बताया था।

  गांव के लोग कहते हैं कि लड़कों के आने पर वृद्ध की बेटियों और दामादों ने समझा कि वृद्ध की कृषि भूमि (कुल 60 बीघा) कहीं दोनों लड़के न हथिया लें अत: उन्होंने वृद्ध से सारी भूमि बराबर-बराबर अपने नाम करा ली। वृद्ध का यह निर्णय उसके गले का फंदा बन गया।

  वृद्ध के पास ट्रैक्टर, टिलर, हैरो आदि कृषि यंत्र थे जिन्हें उसके पीछे आये बेटों प्रेमदेव और भगवानदास ने जबरन बेच दिया। वृद्ध मुंशी का कहना है कि उसे गत वर्ष से दोनों सौतेले बेटे इस लिए यातनायें दे रहे हैं कि उसने अपनी जमीन उनके बजाय अपनी बेटियों के नाम क्यों की।

  मुंशी (78) का कहना है कि उसका जीवन नारकीय बन गया है। वह पेट भर खाने के लिए भी अपनी बेटियों पर आश्रित है। कई बार प्रेमदेव और भगवानदास उसपर कातिलाना हमला कर चुके। उसका जीवन तार-तार हो चुका। वह उस दिन को कोस रहा है जिस दिन उसने राजवती से शादी रचाई थी।

  वृद्ध ने दुखी होकर गत वर्ष 18 दिसंबर को सौतेले बेटों और पत्नि के अत्याचारों से तंग आकर थाने में न्याय के लिए तहरीर दी थी। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वृद्ध अपने एक दामाद को साथ लिए लोगों से अपने दर्द की दवा ढूंढ रहा है। और आठ वर्ष पूर्व किये अपने पुनविर्वाह की गलती का खामियाजा भी भुगत रहा है। जिस महिला को अपनी हमराह बनाकर खुशी-खुशी घर लाया था वही आज उसके लिए खतरा बन गयी है।

-harminder singh

pics by guddu singh

Wednesday, May 5, 2010

सूनापन दुनिया है

[jail+diary.jpg]


संसार को बनाने की कोशिश की जाती रही, लेकिन हर बार इंसान हार गया क्योंकि जीत उतनी आसान नहीं। मैंने खुद को प्रभावित होने से बचाने की तमाम कोशिशें की हैं। ऐसा हो नहीं सका। मैं इंसानों के बीच एक इंसान ही रहा। बदलाव को पकड़ता हुआ चल रहा हूं। यह एक जबरदस्ती सी लगती है, जैसे कुछ थोपा जा रहा हो। पल्लू पकड़ने की आदत नहीं, फिर भी चले जा रहा हूं। आदतें हमें ऐसा करने पर मजबूर करती हैं।

व्यक्ति हमेशा इतना तय करता है कि वह एक दिन मंजिल को पा लेगा जिसकी वह कामना करता है। मेरी मंजिल कोई नहीं। मैं बिना हौंसले के चलने वाला सवार हूं। मंजिल को शायद मुझे तलाशने की जरुरत न पड़े।

यह काफी निराशापूर्ण समय है। ऐसे में बहुत कुछ सोचने की फुर्सत नहीं है। अपने बारे में बस इतना मालूम हो जाए कि मेरा भविष्य मुझे मेरे अपनों से कब मिलायेगा या ऐसे ही कोरा रह जाएगा। हिम्मत को जुटाने के लिए उपाय करने की जरुरत महसूस नहीं होती। मेरे अंदर का इंसान शांत और सूना-सूना पड़ा है। उसे यह मालूम है कि सूनापन ही उसकी दुनिया है। यह मन के लगभग मर जाने के बराबर है। हां, मेरा मन कांप कर ठंडा पड़ चुका है। उसमें इतना साहस नहीं कि वह सांस ले सके, पर वह सांस लेता नहीं और मेरा साथ जैसा मैं जीता हूं, वैसा उसका हाल है। उसका इरादा और ख्वाहिशें मुझसे मिलकर चलते हैं।

सादाब मेरी तरफ बड़े गौर से देखता है। मुझे लगता है कि वह मुझ पर तरस खा रहा है या पता नहीं बात क्या है? उसका चेहरा गंभीर हो जाता है। मैं उससे नजरें मिला नहीं सकता, यह भी मैं नहीं जानता। वह एक अलग किस्म का इंसान लगा मुझे, बिल्कुल अलग।

हम उन्हें अलग मान लेते हैं जो कुछ जुदा अंदाज में होते हैं, सादाब वाकई अनोखा है। उसके चेहरे के भावों को हालांकि मैं पढ़ नहीं पाया और पढ़ भी न पाउं। वह सूने चेहरे से बहुत कुछ कह जाता है। हां, वह चुप जरुर है, लेकिन उसका चेहरा इतना अधिक कह जाता है कि मैं हैरान हो जाता हूं। वह हैरानी इस तरह की होती है कि मैं कई बार देर रात तक उसके विषय में सोचता रहा। मैंने सोचा कि वह ऐसा क्यों है? कम बोलने वाला व्यक्ति गहराई समेटे होता है। सादाब उतना बोलता नहीं क्योंकि प्रवृत्ति को बदला नहीं जा सकता और वह ऐसा चाहता भी नहीं। खुश है वह इसी तरह दुख में। यह भी पता नहीं कि कष्टों पर किस तरह की प्रसन्नता का अहसास होता है। लेकिन सादाब कहता है कि वह इतने दुखों के बाद दुखी नहीं। यह शायद झूठ भी हो, या वह मुझे दुखी नहीं देखना चाहता। मेरे दर्द को अपना समझता है। उसकी निराशा इसे लेकर भी है कि वह पशोपेश में पड़ गया है। अपनी अम्मी और बहनों से वह कई दिनों से नहीं मिला है। पहले वह दूसरे बैरक में था। वह बताता है कि वे उससे मिलने समय-समय पर आते रहते हैं।


to be contd........

-harminder singh

Saturday, May 1, 2010

अनदेखा अनजाना सा



अंजलि की बातों में उस दिन मैं खो गया था। वैसे ऐसा लगभग रोज होता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि शायद वह परेशान है। कभी लगता है कि वह कुछ कहना चाहती है, लेकिन उसकी हालत मेरी तरह है क्योंकि में उससे हजारों बातें कहना चाहता हूं, पर उसके सामने जाकर सकपका जाता हूं। ऐस उन लोगों के साथ अधिक होता है जिनकी जन्मतिथि के हिसाब से कन्या राशि हो। राशियों का मेल मजेदार होता है और लोगों का भी।

मैं कहा रहा था कि अंजलि काफी गुस्से में है, मुझे कभी-कभी लगता है। वह चुप है क्योंकि वह बहुत सोचती है। वह शांत है क्योंकि वह संतुष्ट है। वह हर चीज को बारीकी से परखती है, बिल्कुल मेरी तरह। भीड़ में रहने के बावजूद वह उसमें खोना नहीं चाहती। उसकी ख्वाहिश भीड़ से अलग दिखने की है।

हम विचारों को महत्व इसलिए देते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि उनसे हम सीख सकते हैं। हम दोनों एक-दूसरे के विचारों की कद्र करते हैं। शायद यह हमें अच्छा लगता है। हमें घंटों बैठकर बातें करने में कोई बुराई नहीं, जबकि आजतक ऐसा हुआ नहीं। पन्द्रह-बीस मिनट तक हम काफी विचार कर चुके हैं। समय की पाबंदी के कारण कई बातें अधूरी रह गयीं। उनकी भरपाई के लिए अगला दिन था, पर ऐसा हुआ नहीं।

अंजलि के कारण मुझे एक नया दोस्त मिल गया। हालांकि मैंने उसे कभी देखा नहीं, न ही मैं उसे जानता। लेकिन हमारी दोस्ती लंबी चलने वाली है। मैं यह जानता हूं कि वह काफी भला है। उसकी हंसी को करीब से देखने की तमन्ना है। जब वह मुस्कराता होगा तो कैसा लगता होगा, बगैरह, बगैरह। मेरे मन में कल्पनाओं का पूरा ढेर इकट~ठा है। हम सोचते बहुत हैं। सोच कभी थमती नहीं।

मैं खुद को अकेला मानता हूं। मुझे बरसों से एक अच्छे दोस्त की तलाश थी। कई लोग जिन्हें मैं हद से अधिक लगाव करता था, उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैं सूनसान इलाके का वासी हो गया। बताने को कुछ खास नहीं। सच कहूं तो वह दौर खराब था।

जिंदगी की पटरी पर मैं दौड़ रहा हूं। मैं कितनी दूर और जाउंगा, नहीं जानता। सफर को छोटा करना मेरे बस में नहीं। पागलों की तरह दहाड़े मार नहीं सकता। चुपचाप चलना बेहतर है। मुझे उसका साथ मिला है, तो कुछ आस बंधी है। एक गीत मुझे याद आता है-

‘‘यूं ही कट जायेगा सफर साथ चलने से,
मंजिल आयेगी नजर साथ चलने से।’’

जिस व्यक्ति को मैं झलक भर देख नहीं सका, उसपर इतना विश्वास। शायद हद से ज्यादा विश्वास कितना ठीक है, यह मैं जानने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी दुनिया बदल रही है। नजरिया पहले सा नहीं रहा। झिलमिलाते सितारे आसमान को अनगिनत मुस्कराहटों से भर रहे हैं। मानो हर कोई खिला हो, पत्ते खुश हों और फूल महक रहे हों। सुनहरापन हो, जैसे जीवन जगमगा रहा हो। कहने को पता नहीं क्या-क्या बदल रहा है, मैं भी।

उसे मैंने बताने की सोची कि वह मेरे जीवन के कोरे कागज पर पल भर में हजारों चित्र उकेर गया। वाकई जीवन रंगों से भर गया। बिना एक मुलाकात के इतना सब मैं कह गया। जब वह पढ़ेगा तो उसे कैसा लगेगा।

मैं इतना जानता हूं कि उसकी प्रतिक्रिया जो भी रहे, पर सच को वह झुठला नहीं सकता क्योंकि मैंने सच को उकेरा है। शब्द स्पष्ट हैं, उन्हें मोड़ने की कोशिश मैंने नहीं की। शब्द सीधे हैं, उन्हें बिगाड़ने की कोशिश मैंने नहीं की।

हृदय की आवाज शायद वह सुन सकता है, साफ-साफ और स्पष्ट। जबसे उसने अंजलि से कहा है कि वह मेरा मित्र बनने को तैयार है, तबसे मैं काफी खुश हूं। इतना कि बयान करना मुश्किल सा मालूम पड़ता है।

-आपका
राम


-harminder singh
Blog Widget by LinkWithin
coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
[old.jpg]

इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com