मगर एक बूढ़ा वहां रोज घंटों बैठकर नदी से आंखें मिलाता है। उसे न भय है, न संशय। नदी जानती है कि एक मामूली लहर में वह ढह जायेगा। पर वर्षों से वह नहीं डूबा, न बहा क्योंकि उसे पास एक लाठी है- हौंसले की लाठी। वह कहता है,‘‘नदी झूठ बोलती है। भला बुढ़ापा इतना कमजोर कहां?’
बुढ़ापा जर्जर है, थका है, ऊबा है, पर लड़ाई जारी है खुद से और अपनों से।
बूढ़ा आगे कहता है,‘‘शरीर पुराना हुआ क्या हुआ, इंसान और मजबूत हुआ है।’’
तभी नदी का ऊफान उसे क्षति पहुंचा नहीं सका। तभी वह तना खड़ा है। तभी वह खोखले मुंह के साथ मुस्करा रहा है। तभी वह नदी से आंख मिला रहा है।
-harminder singh
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