बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Saturday, June 5, 2010

दूसरों का साथ

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मैंने बूढ़ी काकी से पूछा,‘‘हमें दूसरों की जरुरत क्यों पड़ती है?’’

काकी बोली,‘‘देखने में सवाल कितना सरल है। उत्तर तलाशने की जरुरत है जो उतना सरल नहीं। कुंए का तल छूने वाले कम होते हैं जबकि पानी कोई भी पी सकता है। मैंने हमेशा गहराई से विचार किया है।’’

कुछ समय बाद काकी ने कहा,‘‘हौंसला देते हैं हमें दूसरे। सहारा देते हैं हमें दूसरे। ........और जीवन जुड़कर जिया जाता है, न कि अकेले। अकेले रहकर नीरसता की बाहों में सिमटने से बेहतर है, लोगों के बीच रहना। हम नीरस क्यों रहें? अकेले क्यों रहें? अब जब कोई साथ न हो तो खुद से ही दोस्ती कर लेनी चाहिए। शायद कुछ लाभ मिले। मगर जीवन कहता है कि जब लोग आसपास हैं तो उनके साथ जिया जाये।’’

‘‘मैं आज अकेली हूं। कल ऐसा नहीं था। अपने माता-पिता के घर से विदाई के बाद तुम्हारे काका और मेरा साथ था। एक परिवार से दूसरे परिवार का सफर नई जिंदगी की शुरुआत थी। अब मैं अकेली हूं, लेकिन तुमसे बातें कर शायद खालीपन को दूर करने की कोशिश करती हूं।’’

‘‘इंसान मुस्कराते हुए अच्छे लगते हैं। तुम्हारे साथ मैं मुस्करा सकती हूं चाहें समय कम ही सही। मुझे काफी हौंसला मिला क्योंकि मैं इस उम्र के आखिरी पड़ाव में बिल्कुल निराश हो गयी थी। बूढ़ों को समझते कम लोग हैं, तुमने समझा। बूढ़ों से दूर होते हैं सब, तुम नहीं हुए। हमारे जैसों के लिए यही काफी है कि कोई दो शब्द कहता है, हम भी कहते हैं। कोई हमारी सुनता है, हम उसकी सुनते हैं। यह इंसानी रिश्ते की व्याख्या स्वत: ही कर देता है।’’

‘‘बोझ और तसल्ली दोनों जीवन में होते हैं। बोझ कम करने या खत्म होने पर तसल्ली का अहसास होता है। इसका कारण और निवारण लोग ही हैं। इंसान को भगवान ने अकेले जीवन व्यतीत करने के लिए नहीं कहा। उसे लोगों के बीच रहकर जिंदगी का स्वाद मिलता है। रुखे हो जाते हैं अकेलेपन में लोग। दुनियादारी यही कहती है:

"बिता लो जीवन पूरा,
 रह न जाए कोई बात अधूरी,
 सिमट न जाएं हम खुद में,
 इसलिए साथ है जरुरी’’

‘‘तुम जानते हो कि अपनों का अपनापन हृदय को कितनी तसल्ली देता है। वे अपने ही होते हैं जो हर पल हमारा हाथ थामे रहते हैं। वे जब भी हमारे पास हैं, हमारे साथ हैं जब लड़खड़ाते हैं हम। गिरते हैं तो सहारा भी अपने ही बनते हैं।’’ काकी ने कहा।

मैंने सोचा कि इंसान इंसान बिना निर्जन है। वैसे ही जैसे बिन पत्तों के पेड़। हमें ठूंठ नहीं बनना जो खड़ा तो सीधा है, पर वह जीवन के सुनहरेपन की वादियों के मोड़ों से नहीं गुजरा।

एक पीड़ा जो अंतहीन है उसका असर कम होना चाहिए ताकि जीवन उपहास न करे। मैला जीवन किसने बताया। लोगों की हंसी इसे साफ कर देगी और उनका साथ भी। दुख होंगे कम। आंख होगी नम। यह नमी हर्ष की होगी।

-harminder singh

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया...जीवन में सकारात्मकता बानी रहनी चाहिए...

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  2. अच्छी सकारात्मक बात!

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>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

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हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>दुलारी मौसी

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जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
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‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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