बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Monday, April 12, 2010

खुशी बिखेरता जीवन

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‘खुशी जीवन का हिस्सा है। यह अहम है।’ मैंने काकी से कहा।

बूढ़ी काकी हर बात को बहुत ध्यान से सुनती है। मैं भी उसकी बातों पर उतना ही गंभीर हो जाता हूं। काकी ने कुछ पल बाद कहा,‘हमारा जीवन हंसी-खुशी को पाकर सुकून महसूस करता है। हम उन लोगों संग खुद को भूल जाते हैं जो अपनी हंसी बिखेर हमें तृप्त करते हैं। शायद जिंदगी का सबसे अनमोल उपहार है हंसी। अगर हंसी-खुशी न होती तो जीवन नीरस होता।’

‘धरती पर बसा जीवन किसी न किसी बहाने तृप्त होना चाहता है। मैं भी तृप्ती की कामना करती हूं, तुम भी। खुशी एक एहसास है, एक खूबसूरत अनुभव। यह हमारे भीतर तक प्रवेश करता है। हमारा अंग-अंग इससे प्रभावित होता है। हम खुद को ताजा पाते हैं। नयी ऊर्जा का संचार होता और जीवन में बहार आ जाती है। कलियां खिलने लगती हैं, महक से हम पुलकित हो उठते हैं। वातावरण का रंग बदल जाता है। मन का दर्द छिप जाता है।’

‘फिर तो बुढ़ापा भी खुश होता होगा?’ मैंने काकी से पूछा।

‘क्यों नहीं?’ काकी बोली।

‘बुढ़ापा भी तो इस संसार का हिस्सा है। वृद्धों के पास केवल दुखों का ही पिटारा नहीं। उनकी कमजोर आंखें भी खुशी के आंसू छलकाती हैं। वे भी खुशी का अनुभव करते हैं। हर किसी के लिए हर किसी चीज के मायने अलग-अलग हैं। जीवन को चलने का रास्ता चाहिए, खुशी को फैलने का।’

‘मेरा अपना अनुभव कहता है कि इंसान दूसरों के कार्यों में यदि सहयोग दे तो उसका जीवन सफल हो जायेगा। कष्टों का निर्धारण कर्म करते हैं और इंसान अंत समय तक कर्म करता है। सही मायने में कर्मों का फल मिलता है। हमें यह लगता है कि हम अपनी खुशी बढ़ा रहे हैं। और जब हम दूसरों की खुशी छीनकर अपने घर में सजाने की कोशिश करते हैं तब हम भविष्य की पोथी में खुद सुराख कर रहे होते हैं।’

‘जो कार्य हमें आंतरिक शांति का एहसास कराते हैं उनसे हमें कई प्रकार के अनुभव होते हैं। खुशी उनमें से एक होती है। दुखी इंसान की हालत कितनी दयनीय होती है, यह हम जानते हैं। लंबे समय के दुख के बाद इंसान सुख की अनुभूति करता है। वह उसके लिए खुशी का समय होता है। यह कोई ऐसी वस्तु नहीं तो बाजार में मिल जाए। यह केवल सद कार्यों से मिलती है या फिर जीवन के सफर में उसे अलग-अलग मौकों पर हासिल किया जा सकता है। बुढ़ापा खुद को खुश देखना चाहता है। जबकि वह शायद उतना प्रसन्न रह पाये, लेकिन उम्मीद तो लगाता ही है।’

-harminder singh

2 comments:

  1. खुशी तो हर अवस्था को चाहिये.

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  2. ख़ुशी कोई ऐसी वस्तु नहीं जो बाजार में मिल जाए ...यह जीवन के अलग अलग समय में किये गए सद्कार्यों से मिलती है ..बुढ़ापा भी ख़ुशी चाहता है ...मिलती तो नसीब से ही है ...मगर उम्मीद पर दुनिया कायम है ...!!

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कैदी की डायरी......................
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>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
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हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
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>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com