मेरे एक मित्र ने मुझे बताया था कि उसका वजन काफी बढ़ चुका है। मैंने उसे सलाह दी कि वह रोज लंबी दौड़ लगाया करे। मैंने उसे यह भी बताया कि सबसे बेहतरीन व्यायाम दौड़ को ही बताया गया है। वह राजी हो गया, लेकिन अगले ही पल उसने अपना दिमाग दौड़ाया। उसने कहा कि सुबह उठना उसके लिए टेड़ी खीर के बराबर है। काफी समझाने के बाद मुझे लगा कि वह सुबह पांच बजे मेरे घर आ जायेगा और हम दोनों दौड़ के लिए चलेंगे। घड़ी में अलार्म लगा मैं सो गया। ठीक पांच बजे अलार्म बजा भी, लेकिन मैंने उसे बंद कर दिया। सोचा बाद में उठ जाऊंगा। न मेरा मित्र आया और न हम दौड़ के लिए जा सके। इसी तरह तीन दिन हो गए। रात में प्लान कुछ होता और सुबह होते ही सब फुर्र।
हम योजनाएं बना तो लेते हैं लेकिन अमल करने की जब बारी आती है तब हम ऐसा करने में असमर्थ रहते हैं। हम इंसानों में ज्यादातर की यह खासियत है।
कई दिन के बाद वह मित्र शाम के समय आया। दोनों पहले एक दूसरे को देखकर मुस्कराये, फिर नयी योजना के बारे में चर्चा की। इस बार उसने कहा कि शाम के समय बैडमिंटन खेला जाए तो बेहतर व्यायाम हो जायेगा। सुबह उठने का झंझट लगभग खत्म।
चूंकि नींद से हम दोनों को बेहद प्यार है (सभी को होता होगा)। बैडमिंटन खेलने के लिए जगह चाहिए थी। एक जगह मिली लेकिन वह स्थान ऊबड़खाबड़ था। उसे समतल करने की जरुरत थी। हमने मिट्टी डलवायी और उस स्थान को समतल बनाने के लिए खुद ही जुट गए। एक घंटा फावड़ा चलाने के बाद मालूम पड़ गया कि वाकई श्रम क्या होता है? वैसे पसीने की खारी बूंदों का कुछ तो मतलब होता होगा। जब आपके हाथों में छाले पड़ कर फूट जायें और आप जुटे रहें, तो कैसा महसूस होता होगा? रात को करवट बदलते हों तो कितनी मशक्कत करनी पड़ती होगी। कई अनुभव एक साथ दे गया वह एक घंटा।
लगभग तीन दिन लगे हमें उस जमीन को समतल बनाने में। लेकिन एक बात जरुर बताना चाहूंगा कि नींद बड़ी अच्छी आयी।
कुछ दिनों में हम सोच रहे हैं कि वहां नियमित खेलना प्रारंभ किया जाये। मैंने सुना है कि ऐसे खेल से पूरे शरीर का व्यायाम हो जाता है। दौड़ना अपनी जगह है और बाकी खेल अपनी जगह।
-harminder singh
Friday, April 2, 2010
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
आदत तो सब की यही है. हम भी यही करते है
ReplyDeleteaapki bat ne "main nahi karti hu" ki gilt mita di .hahaha......
ReplyDeleteबढ़िया ...
ReplyDeletehaan need to acchi aati hai sahi kha apny
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