बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Friday, April 2, 2010

कुछ समय का अनुभव

मेरे एक मित्र ने मुझे बताया था कि उसका वजन काफी बढ़ चुका है। मैंने उसे सलाह दी कि वह रोज लंबी दौड़ लगाया करे। मैंने उसे यह भी बताया कि सबसे बेहतरीन व्यायाम दौड़ को ही बताया गया है। वह राजी हो गया, लेकिन अगले ही पल उसने अपना दिमाग दौड़ाया। उसने कहा कि सुबह उठना उसके लिए टेड़ी खीर के बराबर है। काफी समझाने के बाद मुझे लगा कि वह सुबह पांच बजे मेरे घर आ जायेगा और हम दोनों दौड़ के लिए चलेंगे। घड़ी में अलार्म लगा मैं सो गया। ठीक पांच बजे अलार्म बजा भी, लेकिन मैंने उसे बंद कर दिया। सोचा बाद में उठ जाऊंगा। न मेरा मित्र आया और न हम दौड़ के लिए जा सके। इसी तरह तीन दिन हो गए। रात में प्लान कुछ होता और सुबह होते ही सब फुर्र।

  हम योजनाएं बना तो लेते हैं लेकिन अमल करने की जब बारी आती है तब हम ऐसा करने में असमर्थ रहते हैं। हम इंसानों में ज्यादातर की यह खासियत है।

  कई दिन के बाद वह मित्र शाम के समय आया। दोनों पहले एक दूसरे को देखकर मुस्कराये, फिर नयी योजना के बारे में चर्चा की। इस बार उसने कहा कि शाम के समय बैडमिंटन खेला जाए तो बेहतर व्यायाम हो जायेगा। सुबह उठने का झंझट लगभग खत्म।

  चूंकि नींद से हम दोनों को बेहद प्यार है (सभी को होता होगा)। बैडमिंटन खेलने के लिए जगह चाहिए थी। एक जगह मिली लेकिन वह स्थान ऊबड़खाबड़ था। उसे समतल करने की जरुरत थी। हमने मिट्टी डलवायी और उस स्थान को समतल बनाने के लिए खुद ही जुट गए। एक घंटा फावड़ा चलाने के बाद मालूम पड़ गया कि वाकई श्रम क्या होता है? वैसे पसीने की खारी बूंदों का कुछ तो मतलब होता होगा। जब आपके हाथों में छाले पड़ कर फूट जायें और आप जुटे रहें, तो कैसा महसूस होता होगा? रात को करवट बदलते हों तो कितनी मशक्कत करनी पड़ती होगी। कई अनुभव एक साथ दे गया वह एक घंटा।

  लगभग तीन दिन लगे हमें उस जमीन को समतल बनाने में। लेकिन एक बात जरुर बताना चाहूंगा कि नींद बड़ी अच्छी आयी।

  कुछ दिनों में हम सोच रहे हैं कि वहां नियमित खेलना प्रारंभ किया जाये। मैंने सुना है कि ऐसे खेल से पूरे शरीर का व्यायाम हो जाता है। दौड़ना अपनी जगह है और बाकी खेल अपनी जगह।

-harminder singh

4 comments:

  1. आदत तो सब की यही है. हम भी यही करते है

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  2. aapki bat ne "main nahi karti hu" ki gilt mita di .hahaha......

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  3. haan need to acchi aati hai sahi kha apny

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>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
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...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

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>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
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बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

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गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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