बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Sunday, August 9, 2009

बुढ़ापे को सब्र कितना है

कौन कहता है बूढ़े कमजोर हैं? नहीं है ऐसा, बस हालातों ने उन्हें ऐसा बनाया है। उनकी स्थिति कभी खराब न हो, यदि बुढ़ापा उन्हें न घेरे। हम जानते हैं कि उनमें अनुभव भरा है, उनमें सीखों का भंडार है और वे ही नई पीढ़ी का उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। फिर क्यों हम उनसे किनारा करने की कोशिश करते हैं?

समस्या नौजवान पीढ़ी में है। समस्या संस्कारों में है, तभी व्यवहार बदल रहे हैं। जनरेशन गैप एक बहाना भर है। मेरे नाना और दादा मेरे लिए मित्र की तरह हैं। जितने वृद्धों से मेरी मुलाकात होती है, वे मुझसे और मैं उनसे घुलमिल जाता हूं। होना भी यही चाहिए। बूढ़े हमसे अलग नहीं हैं। उनके साथ हमें उतनी ही खुशी का अनुभव करना चाहिए जितना हम नौजवान आपस में करते हैं। फिर देखिये जीवन में आपको बदलाव के संकेत मिलते हैं कि नहीं।

बुजुर्गों से उनके जीवन के अनगिनत पहलुओं पर चर्चा बहुत कुछ सिखा सकती है। उन्होंने जीवन को काफी जी लिया। संसार छोड़ने से पहले हम उनके अनुभवों को जरुर जानें।

बुजुर्गों का हौंसला हमसे अधिक होता है। वे इतना सहते हैं, पर चुपचाप रहते हैं। यहीं आकर ज्ञान होता है कि बुढ़ापे को कितना सब्र है। बर्दाश्त करने की भी कोई हद होती है, लेकिन बुढ़ापा अंतिम समय तक बर्दाश्त ही तो करता है।

वृद्धों की आंखें सारा नजारा देखती हैं, बिना किसी से कुछ कहे। कहकर फायदा ही क्या? उधर नया खून कुलाचें मारता है। मालूम है कि बुढ़ापा राह देख रहा है, लेकिन खुली आंखें धुंधली नहीं और जानकर अनजान बन रही है जवानी।

दुख होता है जब बुढ़ापे को ठसक लगती है। उसे सबकी चिंता है, उसकी किसी को नहीं। वह आज भी अपनों के मोह में जकड़ा है। अपने उससे कब की दूरी बना चुके। मोह का खेल पुराना है। बच्चों को खुश देखकर वृद्ध खुश हैं। अपनों की खुशी ऐसी ही होती है।

प्रेम और इतना प्रेम छलकता है उनकी आंखों से। कुछ बूंदें इतराती-सी गिर पड़ती हैं आंचल में। प्रेम के मायने तब समझ आते हैं।

हर समय तैयार है बुढ़ापा अपनों के लिए। उन्हें मरते दम तक समृद्ध करने की कोशिश में, ताकि उन्हें दुख न हो। चाहें वह कितनी पीड़ा सह जाए।

जीवन कितना लंबा है, यह सोचने की जरुरत नहीं। जीवन में किया क्या जाए, महत्व यह रखता है। हमारे बड़े-बूढ़े थक कर भी हमारे साथ हैं, सिर्फ साथ नहीं हैं हम।

-harminder singh

1 comment:

  1. Sir, Your all most all posts are very realistic and full of soft emotions.
    MAVARK

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coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



[ghar+se+school.png]
>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

[horam+singh.jpg]
वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
[ARUN+DR.jpg]
वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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