पूरी तरह तो याद नहीं कि जैस्सी जी ने हमारी क्लास कब ज्वाइन की थी। जब वे हमारी क्लास में पहली बार आईं थीं तो हम ज्यादातर बच्चों ने उन्हें अजीब समझा था। वे दक्षिण भारतीय पृष्ठभूमि से नाता रखती हैं। साइंस की क्लास में उनका घंटा शुरु होते ही उतनी फुर्ती से आना कई बार आगे बैठे लोगों का बैंड बजा देता था। मेरा पाला वैसे उनसे कम ही पड़ा। वैसे भी मेरा नेचर कुछ शर्मीला था। मैं शायद टीचरों से बचने में ही समझदारी समझता था। क्या पता कब कौन सा सवाल दाग दें और आपसे न बात बने, न सवाल उचरे। मतलब रोटी गले में ही अटकी रह जाये। फिर पानी पीने को अंधों की तरह ग्लास ढूंढते फिरो।
जब जैस्सी जी का घंटा आता तो मैं थोड़ा बेआराम महसूस करता। पता नहीं स्टूडेंट्स के साथ ऐसा क्यों होता है? टीचर के सामने चूहे और बाद में शेर। वैसे मुझे न ही गुर्राना आता था और न ही दुम दबा कर भाग जाना। और हां,...न ही मैं अपने समय में खरगोश हुआ करता था। वैसे मेरे कुछ साथी खुद को चीता समझते थे, पर बाद में वे भी भीगी बिल्ली बन गये थे। जैस्सी जी क्लास में प्रवेश बाद में करतीं सवाल का प्रहार पहले शुरु हो जाता। मेरे कुछ साथी कलम या पैंसिल गिराकर छिपने की असफल कोशिश करते। क्योंकि टीचर की निगाह से वे बच नहीं पाते थे। एक टीचर के सामने सारे बच्चे शायद चूहे की तरह ही होते हैं, जिन्हें एक कुर्सियों और मेजों वाले शानदार फर्श वाले बिल में कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है। लेकिन ऐसा मुझे कभी लगा नहीं। आज जब मैं पुराने दिनों को याद करता हूं तो पाता हूं कि वाकई वे दिन शानदार थे। शिक्षकों की एक-एक बात आज बिल्कुल साफ हो रही है। शायद वे हमारे भविष्य के लिए हमें बिल में बंद किये थे। वैसे बिल में पंखे भी लगे थे। अरे हां...खिड़िकयां तो मैं भूल ही गया। लेकिन अगर किसी ने खिड़की का कांच जानबूझकर या धोखे में तोड़ दिया तो जुर्माना देने के लिए प्रिसिंपल तैयार हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई जानबूझकर खिड़की का कांच तोड़ेगा।
एक बात बहुत महत्व रखती है कि आप खुद पर कितना भरोसा करते हैं। हम कहते हैं कि आत्मविश्वास भी कोई चीज होती है। जैस्सी जी में वह आज भी उतना ही बरकरार है। मुझे उनके विषय में सुनने को मिल जाता है। वे उस दिन मेरे पास से मुस्कराते हुए गुजरी थीं। कमाल है न कि हम कई बार ऐसे हो जाते हैं कि पता ही चलता कि कहां हैं? इतने सालों बाद मुलाकात करने जा रहे हैं उन लोगों से जिनसे आपने जिंदगी के पायदान पर चलना सीखा। उनके सामने आने पर आप उनसे चंद शब्द नहीं कह पाये। क्या मुस्कराकर आप उनका उधार चुकता कर सकते हैं? शायद नहीं, लेकिन उस समय मैं शायद खुद को कुछ ज्यादा ही भावुक कर बैठा था।
कैमिस्ट्री मुझे उतनी बेहतर कभी नहीं लगी। मगर जैस्सी जी ने हमारी क्लास में बच्चों में एक उत्साह जगाने की कोशिश की। एक तरह की एनर्जी का संचार करने की कोशिश की गयी। कुछ बातें जो उन्होंने बताई थीं शायद ही कोई मेरा साथी भूला होगा। कैमिकल्स से दोस्ती करना हमें आ ही गया था। एक बात ओर मेरे दसवीं में सांइस में सर्वाधिक नंबर आये थे। बायोलोजी के एक्सपैरिमेंट भी उन्होंने कई कराये थे।
एक बार की बात है हमें बायो लैब ले जाया गया। हमें आनियन पील (प्याज की छील) को माइक्रोस्कोप से देखना था। जैस्सी जी ने पहले हमें खुद करके दिखाया कि किस तरह माइक्रोस्कोप को सैट किया जाता है, बगैरह, बगैरह। स्लाइड को किस तरह तैयार किया जाता है, यह भी हमने सीखा। उन्होंने साथ में यह भी हिदायत दी कि स्लाइड को तोड़ मत देना। मैं खासकर काफी उत्साहित था। मेरे तमन्ना थी कि जो मैंने किताबों में देखा है, उसे आज वास्तव में देखने का मौका मिल रहा था। था न अजीब अहसास। हमने स्लाइड तैयार कर ली थी। माइक्रोस्कोप से एक्सपैरिमेंट को किया भी। मेरे पास के एक लड़के ने पता नहीं कैसे अपनी स्लाइड चटका दी और धोखे से मेरी जगह रख दी। मुझे सब पता था पर यह वह जानता था या मैं या फिर भगवान जिसके किसी अदालत में कभी बयान नहीं लिये गये। मैं मन की मन डर रहा था कि अगर जैस्सी जी को पता लग गया तो मैं तो गया काम से। उन्होंने शायद ही मुझे कभी डांटा था। मगर डर तो सबको लगता है। यहां उस समय माउंटन ड्यू नहीं थी जो कह सकता कि डर से मत डरो, डर के आगे जीत है।
घबराहट सिमटने का नाम नहीं ले रही थी। तभी जैस्सी जी की नजर चटकी हुई स्लाइड पर पड़ गयी। उन्हें लगा कि मैंने स्लाइड को तोड़ दिया। उन्होंने यह कहा,‘हरमिन्दर यह क्या कर दिया?’। आसपास के सभी बच्चे मेरी तरफ देख रहे थे। जब नजरें घूरती हैं भरी महफिल में तो कैसा एहसास होता है, यह हम जानते हैं। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। आज भी मेरे वह बात याद है और शायद जिंदगी भर याद रहे। शुभांगी और सुमित को मैंने यह एक बार बताया भी था। बाद में क्लास में आकर भी उन्होंने उस बात को दोहराया कि बच्चे अपना एक्सपैरिमेंट ढंग से नहीं कर सकते। ऐसा आगे से नहीं हो। मैं क्या कह सकता था? मैंने उनसे कहा भी कि मैंने ऐसा नहीं किया। कोई गवाह भी तो नहीं था। अब भगवान को तो उनके सामने पेश नहीं किया जा सकता था। जो देखा था, वह दिख गया था। मेरा पूरा दिन खराब ही गया होगा और क्या? अब मैं उनसे कभी मिलूंगा तो इस बात को जरुर बताउंगा कि आपने मुझे धोखे में ऐसा कह दिया था। उस समय तो बुरा लगा मगर आज समझ आता है कि उनका कहना सही था। जो उन्होंने देखा कहा और उनकी जिम्मेदारी बनती थी लैब के रखरखाव की। आगे उन्हें जबाव देना था, हमें नहीं।
वक्त के साथ काफी कुछ धुंधला पड़ जाता है। लेकिन कुछ लोग फिर भी उसी तरह कभी न कभी याद आ ही जाते हैं। हम उनसे बहुत कुछ सीखे थे और उनकी सीखें शायद ही कभी भूल पायें। जैस्सी जी से आप कुछ सीख सकते हैं तो वह बिना थके पढ़ना। उनमें समझाने की एक अलग तरह की खूबी है जिसे मैं समझता हूं कि विज्ञान के शिक्षकों में होना बहुत जरुरी है। मुझे पता है कि हम उनकी क्लास में कभी बोर नहीं हुए, हां कई बार सहम जरुर गये। वैसे वे आपको डराती नहीं, आप खुद घबरा जाते हैं। भई उनके मुताबिक जो सही है, वह तो सही ही है। कुछ खरी बातें कह देंगी, लेकिन उनसे पढ़ाई बेहतर ही होगी क्योंकि वे बातें आपके भले के लिए ही होंगी। उन्होंने मुझे काफी प्रभावित किया। यही कारण था कि कुछ शिक्षकों को मैं कभी भूल नहीं सकता। वे किसी न किसी तरह जेहन में रहेंगे ही।
मैं चाहता हूं कि एक दिन उनकी क्लास में बैठकर फिर से पुराने दिनों को याद करुं। शायद इसी बहाने कुछ पहले जैसा हो जाये। स्कूल के दिन तो स्कूल के ही होते हैं। पता नहीं क्यों जब हम उन्हें जीते हैं तो उतने अच्छे नहीं लगते, जबकि याद करने पर बड़े ही शानदार लगते हैं। यकीनन।
वैसे जैस्सी जी के बारे में एक बात कहना चाहूंगा-‘‘सीधी बात नो बकवास।’’
-harminder singh
Saturday, May 29, 2010
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
harminder,
ReplyDeleteसान्नूं वी साड्डी बायो टीचर दी याद आ गई।
nice rememberance.
गोवेर्धन पूजा के अवसरपर सभी देश वासियों को भारतीय डाक कर्मचारी संघ की तरफ से ढेर सारी शुभकामनायें
ReplyDeleteजय-हिन्द
अशोक यादव रीजनल सेक्रेटरी
भारतीय डाक कर्मचारी संघ कानपुर