
मुझे पता है मैं गली के बच्चों को देखकर थोड़ा मुस्कराता हूं। उनकी अठखेलियां मुझे ऊर्जा से भर देती हैं। एक पल को मैं खुद को भूल जाता हूं। मैं उनमें खो जाता हूं।
लोग मुझे मिलते हैं, उलझी हुई बातें होती हैं, पर ढेर सारी। कुछ समय आती हैं, कुछ उनके नहीं। फिर भी मन खामोश रहता है। ‘बूढ़ा ऊंचा सुनता है’- कहीं से आवाज आती है। मुझे बुरा नहीं लगता क्योंकि बुढ़ापा बेपरवाह है, लापरवाह नहीं।
चाय की दुकान पर सबुह अखबार पढ़ लेता हूं। तब चाय की चुस्की और.........., एक बिस्कुट भिगो कर खा लेता हूं। बीच-बीच में अपने कुरते से चश्मे को साफ करता रहता हूं। मोटी छपाई को आसानी से पढ़ लेता हूं। बारीक लिखे अक्षरों को पढ़ने के लिए अखबार को करीब लाना पड़ता है। थोड़े समय में शब्द धुंधले पड़ जाते हैं।
-harminder singh
एक दिन सोच रहा था कि यह सारे ब्लॉगर एक दिन बूढ़े हो जायेंगे तब कैसा लिखेंगे कि आज यह ब्लोग नज़र आया । मै आपकी सोच और इस प्रयास को सलाम करता हूँ ।
ReplyDeleteमुझे लगता है कि जब सारे ब्लोगर बूढ़े हो जायेंगे तो सभी बुढ़ापे पर लिखने की कोशिश करेंगे।
ReplyDeleteधन्यवाद।
"मुझे बुरा नहीं लगता क्योंकि बुढ़ापा बेपरवाह है".....इक इतमीनान सा है… तजुर्बे……तजुर्बे
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